Wednesday 28 June 2017

समय का सदुपयोग करें..

मार्गदर्शक चिंतन-

अपने काम को समय पर करने की आदत बनाओ क्योंकि आप घडी तो खरीद सकते हो मगर समय को नहीं। आप सिर्फ घड़ी को अपने हाथों में बाँध सकते हैं, वक्त को कदापि नहीं। वक़्त को कोई नहीं रोक पाया। 
घड़ी भले ही पीछे भी हो सकती है मगर वक्त पीछे नहीं हो सकता और घड़ी तो बंद भी हो जाती है मगर उससे समय चक्र नहीं बंद हो जाता। वक़्त का सम्मान ना करने वाले का एक दिन वक़्त भी सम्मान नहीं करता है। 
अतः याद रखना कि काम समय पर ही पूरा किया जाये क्योंकि घड़ी भले ही आपकी हो मगर वक्त अपनी चाल से चलता है किसी और की चाल से नहीं। दुनिया में कोई भी ऊँचे मुकाम पर पहुंचा है तो मेहनत और समय बद्धता के कारण। कोई भी कार्य हो उसकी पूरे होने की समय सीमा जरूर हो।

Tuesday 27 June 2017

जानिए दूसरों की मदद करने से क्या लाभ होता है

मार्गदर्शक चिंतन-

किसी का सहारा मिल जाना अच्छी बात है, किन्तु किसी का सहारा बन जाना, यह उससे भी अच्छी बात है। यहाँ हर कोई दूसरों से तो सहारा चाहता है मगर दूसरों को सहारा देना नहीं चाहता।
सच्ची शान्ति के लिए एक अनुष्ठान कर लेना, वह ये कि किसी बेसहारे का सहारा बन जाना। आप आश्चर्य करोगे कि जिस आनंद और शांति के लिए हम दर- दर भटके जिसके लिए हमने तीर्थों के इतने चक्कर काटे, आखिर वह आत्मसुख बहुत सस्ते में मिल गया।
जो व्यक्ति दूसरों को सहारा देता है, उसे अपने लिए सहारा माँगना नहीं पड़ता, परमात्मा स्वतः दे देता है। किसी प्यासे को पानी पिलाने का, किसी गिरे हुए को उठाने का और किसी भूले को राह दिखाने का अवसर मिल जाये तो चूकना मत, क्योंकि ऐसा करने से आप बहुत ऋणों से मुक्त हो जाओगे।

Monday 26 June 2017

जानिए मनुष्य में सबसे ज्यादा अशांति का कारण क्या है

मार्गदर्शक चिंतन-

मनुष्य कर्मों से अधिक अशांत नहीं है वह इच्छाओं से, वासनाओं से अधिक अशांत है। जितने भी द्वंद , उपद्रव, अशांति, और सबसे ज्यादा अराजकता कहीं है तो वह व्यक्ति के भीतर है। 
मनुष्य अपना संसार स्वयं बनाता है। पहले कुछ मिल जाये इसलिए कर्म करता है। फिर बहुत कुछ मिल जाये इसलिए कर्म करता है। इसके बाद सब कुछ मिल जाये इसलिए कर्म करता है। उसकी यह तृष्णा कभी ख़तम नहीं होती। जहाँ ज्यादा तृष्णा है वहाँ चिंता स्वभाविक है।
जहाँ चिंता है वहाँ कैसी प्रसन्नता ? कैसा उल्लास ? यदि मनुष्य की तृष्णा शांत हो जाये , उसे जितना प्राप्त है उसी में सन्तुष्ट रहना आ जाये तो वह कभी भी अशांत नहीं रहेगा। इंसान अपने विचार और सोचने का स्तर ठीक कर ले तो जीवन को मधुवन बनते देर ना लगेगी।

Sunday 25 June 2017

जीवन को निर्मल कैसे बनाएं

मार्गदर्शक चिंतन-

औषधि केवल रोग निवृत्ति के लिए होती है, स्वास्थ्य के लिए नहीं। स्वास्थ्य तो उपलब्ध है। साबुन से कपडे में कभी भी चमक नहीं आती, साबुन केवल कपडे पर लगी गंदगी को साफ करता है। इसी प्रकार शांति के लिए हमें कोई प्रयत्न नहीं करना, वह प्राप्त ही है। आनन्द तो नित्य है, सहज है, मिला हुआ ही है।
अशांति देने वाले, विषाद देने वाले कर्मों से हमें बचना है। जिस प्रकार रोड़ पर चलते समय हमें स्वयं गाड़ियों से बचना पड़ता है लेकिन इस नियम को हम जीवन में और बहुत जगह पर लागू नहीं करते हैं।
क्लेश की, कलह की स्थितियों से विवेकपूर्वक बचते रहो। वो उत्पन्न होंगी और रोज नए-नए रूप में आएँगी। जिस प्रकार एक कुशल नाविक तेज धार में समझदारी से अपनी नाव को किनारे लगा देता है उसी प्रकार आप भी समझदारी पूर्वक जीवन रुपी नाव को शांति और आनंद के किनारे पर रोज पहुँचाओ।

Thursday 22 June 2017

पूरा जीवन प्रार्थना बन जाए..कुछ ऐसा करो

मार्गदर्शक चिंतन-

मौन रहकर भी सत्य मिल सकता है, बोलकर भी मिल सकता है। घर में रहकर भी मिल सकता है, घर छोड़कर भी मिल सकता है। चैतन्य देव - मीराबाई की तरह हरि बोल गाते-गाते भी मिल सकता है। तुम किसी भी मार्ग के पथिक होना पर श्रद्धा और विश्वास के पथिक जरूर होना।
सूफी परम्परा में एक बात कही जाती है कि हमारे साधन में एक ही कमी है। हम खुद तो बन जाते हैं आशिक और प्रभु को बना लेते हैं माशूका, यही तो गड़वड़ है। तुम उसे कहाँ जाओगे ढूँढने, वो तो छलिया है। अब ऐसा करो , कन्हैया को बना लो आशिक और तुम बन जाओ माशूका।
वो अपने आप तुम्हें खोजते- खोजते आ जायेगा। इस प्रकार के सत्कर्म ,परमार्थ, भजन, निष्ठा, सेवा , यज्ञ , भजन हमारा बन जाये कि हमारा ठाकुर हमें खोजते- खोजते हमारे घर आ जाये। शबरी नहीं गई थी , भगवान् शबरी के यहाँ आये थे। जीवन पूरा ही प्रार्थना बन जाये, कुछ ऐसा करो।

Saturday 17 June 2017

भगवान राम के जीवन से जानिए कि धर्म क्या है...

मार्गदर्शक चिंतन-

केवल राम-राम जपने से ही कोई राम का प्रिय नहीं बन जाता। राम जैसा जीवन जीकर ही राम का प्रिय बना जा सकता है। अयोध्या की सत्ता अगर वो स्वीकार कर लेते तो राजा राम बन जाते पर सत्ता को ठोकर मारकर वो हर दिल के राजा बन गए ।
पूरी दुनिया में राम जैसा व्यक्तित्व आज तक नहीं हुआ। अच्छे शासक का यही तो गुण होता है दुखी - पीड़ितों के द्वार पर स्वयं पहुँच जाये। अच्छा पुत्र वही तो होता है जो पिता के सम्मान की रक्षा के लिए वन-न जाने को तैयार हो जाता है। अच्छे भाई का यही तो गुण होता है जो अपने भाई को सुख देंने के लिए स्वयं सुखों को छोड़ दे। 
एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श शिष्य, आदर्श मित्र, आदर्श राजा सब गुण श्रीराम के भीतर थे। उनका एक भी गुण आपके भीतर आ जाये तो समझना आपने रामायण पूरी पढ़ ली। पर करुणा यह है कि आज लोग राम को मानते हैं पर राम की नहीं मानते।
धर्म क्या है ? भगवान् राम के सम्पूर्ण जीवन को देख लो, समझ आ जायेगा।

Thursday 15 June 2017

कैसे मिलेगा मोह-माया से छुटकारा..

मार्गदर्शक चिंतन-

श्रीमद भगवद गीता में भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि मेरी बनाई हुई यह माया बड़ी दुस्तर है। इससे बड़े- बड़े ज्ञानी भी मुक्त नहीं हो पाते। लेकिन जो मेरा निरन्तर भजन , सुमिरण करते हैं वो मेरी कृपा से इससे मुक्त हो जाते हैं। 
ज्ञान मार्ग में और भक्ति मार्ग में यही अंतर है। ज्ञानी हर वस्तु को छोड़ कर मुक्त होता है। भक्त उस वस्तु को परमात्मा को अर्पित करके मुक्त होता है। माया को माया पति की और मोड़ दो तो माया प्रभाव ना डाल पायेगी। लक्ष्मी तब तक ही बांधती है जब तक वह अपनी देह के सुखों की पूर्ति में ही खर्च होती है।
लक्ष्मी को नारायण की सेवा में लगाना शुरू कर दो तो वह पवित्र तो होगी ही तुम्हें प्रभु के समीप और ले आएगी। याद रखना, माया को छोड़कर कोई मुक्त नहीं हुआ अपितु जिसने प्रभु की तरफ माया को मोड़ दिया वही मुक्त हुआ। इन्द्रियों को तोडना नहीं मोड़ना है। इन्द्रियों का साफल्लय विषयों में नहीं वासुदेव में है।

Wednesday 14 June 2017

कैसे करें बुद्धि का प्रयोग..

मार्गदर्शक चिंतन-

आज संसार में बुद्धि की कहीं कमीं नहीं है पर शुद्धि की बहुत कमीं है। बुद्ध बनने के लिए बुद्धि नहीं शुद्धि की आवश्यकता है। आज लोगों की बुद्धि सृजन में कम विध्वंश में ज्यादा लगी हुई है। बुद्धि जोड़ने में कम तोड़ने में ज्यादा लग रही है। जीवन किसी को नहीं थकाता, बुद्धि थका देती है।
संसार में कुछ बुद्धिमान तो केवल मीमांसा करने में ही लगे रहते हैं। अँधेरे को कोसने में ही जीवन लगा देते हैं। काश ! एक पल दीपक जलाने का भी बिचार उन्हें आ जाता। कुछ बुद्धिमान गतिशील नहीं है , कुछ की गतिशीलता गलत दिशा में चली गई है।
इस बुद्धि का शोधन कैसे किया जाये ? सत्संग के आश्रय से ही बुद्धि का शोधन सम्भव है। आपके पास ऊर्जा की कोई कमीं नहीं है पर चेतना की कमी है। कर्मशील भी बनो और चिन्तनशील भी बनो। जिससे संसार का उपकार हो और संसार तुम्हारा ऋणी रहे।

Tuesday 13 June 2017

भक्त के जीवन में कौन सी तीन बाते जरुरी हैं..

मार्गदर्शक चिंतन-

तीन बातें भक्त के जीवन में जरूर होनी चाहिएं , प्रतीक्षा, परीक्षा और समीक्षा। भक्ति के मार्ग में प्रतीक्षा बहुत आवश्यक है। प्रभु जरूर आयेंगे , कृपा करेंगे , ऐसा विश्वास रखते हुए प्रतीक्षा करें। बहुत बड़ी प्रतीक्षा के बाद शबरी की कुटिया में प्रभु आये थे। 
परीक्षा- संसार की परीक्षा करते रहें। इस संसार में सब अपने कारणों से जी रहे हैं। किसी के भी महत्वाकांक्षा के मार्ग पर बाधा बनोगे वही तुम्हारा अपना , पराया हो जायेगा। संसार का तो प्रेम भी छलावा है। संसार को जितना जल्दी समझ लो तो अच्छा है ताकि प्रभु के मार्ग पर तुम जल्दी आगे बढ़ो। 
समीक्षा- अपनी समीक्षा रोज करते रहो, आत्मचिन्तन करो। जीवन उत्सव कैसे बने ? प्रत्येक क्षण उल्लासमय कैसे बने ? जीवन संगीत कैसे बने, यह चिन्तन जरूर करना। कुछ छोड़ना पड़े तो छोड़ने की हिम्मत करना और कुछ पकड़ना पड़े तो पकड़ने की हिम्मत रखना। अपनी समीक्षा से ही आगे के रास्ते दिखेंगे।

Monday 12 June 2017

पाप मुक्त होने का सूत्र..

मार्गदर्शक चिंतन-

परम भागवतकार श्रीधर स्वामी जी ने भागवत जी पर टीका करते समय एक अदभुत बात कही है। संसार में सब हमारे मित्र बन जाये यह किन्चित सम्भव नहीं है लेकिन कोई हमारा शत्रु ना बनें, यह प्रयास किया जा सकता है। 
हमारे मुख से सबके लिए प्रशंसा के शब्द ना निकलें कोई बात नहीं, पर हमारे मुख से किसी की निंदा ना हो, यह तो किया जा सकता है। आप किसी को अपनी थाली में से रोटी निकलकर नहीं खिला सकते तो किसी के निवाले को छीनने वाले भी ना बनो। 
अगर हमसे पुन्य नहीं बनें तो पाप ना हो, ऐसा प्रयत्न जरूर करें। आप सत्य नहीं बोल सकते तो असत्य ना वोलने का संकल्प लें। भगवद अनुग्रह प्राप्त करने की प्रथम शर्त है पापमुक्त जीवन से जापयुक्त हो जाना। विकार से विचार की यात्रा , विषय से वसुदेव के मार्ग पर चलने वाला ही सत्य की अनुभूति कर सकता है।

Sunday 11 June 2017

कर्ता भाव छूटने पर मिलती है श्रीहरि की कृपा...

मार्गदर्शक चिंतन-

समय पर सब होता है , समय पर जन्म , समय पर सफलता , समय पर असफलता, समय से पहले कुछ नहीं होता। विपत्ति और सम्पत्ति दैवयोग से समय आने पर ही घटती है। ऐसा जो जान चुका है, समझ चुका है, वह हर हाल में , हर चाल में प्रसन्न रहता है।
चिंता पैदा होती है कर्ता भाव से , जब तुम कर्ता भाव छोड़ देते हो , ईश्वर को कर्ता मान लेते हो। फिर कैसी चिंता , कैसा तनाव , कैसा अपमान , कैसी हानि , कैसा दुःख ? समस्या तो यही है तुम कर्तृत्व छोड़ना ही नहीं चाहते हो। 
कर्ता भाव छोड़ने का केवल इतना ही अर्थ है कि तुम अकारण रूप से तनाव मत लेना। पुरुषार्थ जरूर करना, श्रम शरीर से करना लेकिन उद्विग्न और चिंतित मत होना। प्रभु पर भरोसा रखना , समय आने पर सब कुछ अच्छा हो जायेगा।

Saturday 10 June 2017

कैसी हो भक्ति...

मार्गदर्शक चिंतन-

भक्ति भय से नहीं श्रद्धा और प्रेम से होती है। भय से की गई भक्ति में जीवन कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होता है। भय से प्रगट भक्ति में भाव तो कभी पैदा हो ही नहीं सकता। बिना भाव के भक्ति का पुष्प नहीं खिलता। 
श्रद्धा प्रगट होना अति आवश्यक है। श्रद्धावान को ही ज्ञान प्राप्त होता है। बिना श्रद्धा के आदमी धर्मभीरु बन जाता है। उसे हर समय यही डर लगा रहता है कि ये देवता, फलां देवता नाराज हो गया तो क्या होगा ? प्रारब्ध में जितना लिखा है वह तो तुम्हें प्राप्त होकर ही रहेगा। उसे कोई ना रोक पायेगा। 
भगवान तो सबके ऊपर कृपा करते हैं, कोई उनकी पूजा ना करे तो वो नाराज होंगे, इस अज्ञान का त्याग कर देना। उसने तुम्हें जन्म दिया है, जीवन दिया है, सब कुछ दिया है। क्या ये सब पर्याप्त नहीं है प्रभु से प्रेम करने के लिए ? भय के कारण नहीं भाव के कारण मंदिर जाओगे तो खिले-खिले लौटोगे

Thursday 8 June 2017

जानिए क्या है धर्म...

मार्गदर्शक चिंतन-

धर्म से ही व्यक्ति का कल्याण होता है। धर्म ही व्यक्ति का उत्थान करता है। धर्म ही धारण करने योग्य है। धर्म के मार्ग से अर्थ -काम प्राप्त हो तो अंत में मोक्ष जरूर प्राप्त होता है। 
धर्म का परलोक की चिंता में होना बड़ा खतरनाक हुआ है, इसके दुष्परिणाम सामने हैं। लोग सोचते हैं जीवन अभी के लिए है धर्म कल के लिए। नहीं, धर्म इसी जीवन को विकारमुक्त, विषादमुक्त, भयमुक्त, चिन्तामुक्त, पापमुक्त बनाने के लिए है। 
ईश्वर के सामने 15 मिनट पूजा करना ही धर्म नहीं है अपितु सबके साथ सद व्यवहार करना और दूसरों के जीवन में प्रसन्नता का कारण बनना भी धर्म है। धर्म माने - प्रत्येक कर्म को सावधानी पूर्वक करना।

Wednesday 7 June 2017

जानिए जीवन में कैसे सुखी रहा जा सकता है..

मार्गदर्शक चिंतन-

भोगी के लिए वन में भी भय है और योगी के लिए घर में भी वन जैसा आनंद है। जिसका मन विकार मुक्त हो चुका है वो हर जगह , हर घड़ी आनन्द अनुभव करता है। जैसे पतंग उड़ाने वाला आकाश में बहुत ऊपर तक पतंग ले जाता है पर डोरी अपने हाथ में रखता है 
थोड़ी सी भी उलझने पर पतंग को वापिस अपने पास खींच लेता है। भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को गीता में कहते हैं कि वैसे ही जो पुरुष विवेक रुपी डोर से इन्द्रियों रुपी पतंग को वश में करके अनासक्त होकर कर्म करता है, वह कभी भी नहीं उलझता। 
आसक्ति भाव से किये जाने वाले कर्म ही दुःख का कारण बनते हैं। दुःख वाहर से प्रगट नहीं होता , वह भीतर से प्रगट होता है। समस्या बाहर नहीं भीतर है। समाधान भीतर ही मिलेगा, जब भी मिलेगा। अपने मन को समझाकर ही सुखी हुआ जा सकता है।

Tuesday 6 June 2017

जीवन में हर दिन हर पल कर्महीन जीवन मत जियो..

मार्गदर्शक चिंतन-

एक क्षण के लिए भी कर्महीन जीवन मत जियो कुछ कर्म अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए करो। कुछ कर्म अपनों को आगे बढ़ाने के लिए करो। और कुछ कर्म समाज के लिए करो , ये कर्म सत्कर्म कहलाते हैं। 
किसी-किसी दिन कर्महीन रहने पर तुम्हें पता है कि कितनी नई चीजें सृष्टि में आगे बढ़ जाती है। कई नए बीज मिटटी में मिलकर अंकुरित होकर पेड़ बनने की और बढ़ जाते हैं। कई फूल काँटों के बीच रहकर प्रकृति को सौन्दर्य युक्त बनाने के लिए खिल पड़ते है। 
कई परमार्थी चित्त आत्म- प्रेरित होकर स्वार्थ की बेड़ियों को तोड़कर परमार्थ पर चल पड़े होंगे। कई हृदयों के तारों पर ईस्वर भक्ति का संगीत झंकृत हो चुका होगा। कई मानव देव बनने की राह पर चल पड़े होंगे। 
मै कई बार सोचता हूँ कि आपने और मैंने जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन और क्षण फिर नष्ट कर दिया। आलस्य की शैया पर पड़े-पड़े समय को आज अपने हाथों से और आपके हाथों से फिर निकलता हुआ देख रहा हूँ।