Monday 31 October 2016

( भगवान का सर्वाधिक प्रिय कौन है)???

( भगवान का सर्वाधिक प्रिय कौन है)???
प्राय: संसार मे एसा देखा जाता है की मनुष्य की परमात्मा के प्रति श्रद्धा तो होती है लेकिन परमात्मा के भक्तो के प्रति,संतो के प्रति ,दीन-दुखियो के प्रति श्रद्धा नही होती--भगवान एसे व्यक्तियो से कभी प्रसन्न नही होते जो भगवान का तो पुजन करते है लेकिन भक्तो से द्वेष करते है-- दूर्वासा जी भी बहुत अच्छे भक्त थे लेकिन देखो कैसे भक्त अम्बरीष के प्रति अपराध करने पर उनको जगह जगह रक्षा के लिए जाना पडा ओर अंत मे जब भगवान के पास दूर्वासा जी गये ओर उनसे कहा की प्रभु सुदर्शन चक्र मेरा पीछा कर रहा है- ईसलिए मेरी रक्षा कीजिये- तो भगवान ने भी यही कहा की अगर तुने मेरा अपराध किया होता तो मै क्षमा कर देता लेकिन तुने मेरे भक्त का अपराध किया है ईसलिए जब तक अम्बरीष से जाकर क्षमा याचना नही करोगे तब तक मै तुम्हारी रक्षा नही कर सकता क्योकि मै भक्तो के आधीन हूं-- तो कहने का अभिप्राय: केवल ईतना है की हमारी परमात्मा के प्रति भी श्रद्धा हो ओर अन्य सब प्राणियो के प्रति भी दयाभाव हो -- क्योकि सबमे भगवान बैठे है ईसलिए ईस भावना से सबकी सेवा करनी चाहिये--
चलिये अब प्रमाणो द्वारा ईस विषय पर चर्चा करते है-- भागवत मे ग्यारहवे स्कंध मे दूसरे योगिश्वर ने राजा निमि से कहा की-- " अर्चामेव हरये पूजां य: श्रद्धयेहते---
न तद्भक्तेषु चान्येषु स भक्त: प्राकृत: स्मृत:--- अर्थात् जो भक्त परमात्मा की पुजा मे तो श्रद्धा रखता है लेकिन भगवान के भक्तो के प्रति,दीन-दुखियो के प्रति सेवा भाव अर्थात् श्रद्धा नही रखता तो वो भक्त कनिष्ठ भक्त है-- कनिष्ठ यानि निम्न श्रेणी का है--
ओर सबसे उत्तम भक्त का लक्षण बताते हूए कहा गया की-- " सर्वभुतेषु य: पश्येद् भगवद्भावमात्मन:--
भूतानि भगवत्यात्मन्येष भागवतोत्तम:-- अर्थात् जो सबमे भगवद् भावना करे अर्थात् जो सबमे भगवान को देखते हुए सबके प्रति सेवा भाव रखे वही सबसे उत्तम भक्त है-- यानि ईस श्लोक के माध्यम से सबको एक प्रेरणा दी जा रही है की अगर प्रभु का प्रिय बनना है तो सब प्राणियो मे भगवान को देखते हूए सबकी सेवा करनी चाहिये--पुज्य गुरुदेव भी कहा करते है की सेवा सबकी करो लेकिन मन प्रभु मे आसक्त रखो -- माता पिता दो बातो से बहुत प्रसन्न होते है-- पहली बात तो ये की बच्चे उनकी आज्ञा का पालन करें ओर दूसरी बात ये की मां बाप अपने बच्चो मे जिस स्वभाव को देखना चाहते है वो स्वभाव अगर बच्चो मे आ जाए तो माता पिता को बहुत प्रसन्नता होती है-- उसी प्रकार भगवान की आज्ञा का पालन ओर भगवान हमसे जिस स्वभाव की उम्मीद करते है वो स्वभाव हमारा बन जाए तो हम भी परमात्मा के सर्वाधिक प्रिय बन जाएगें-- अब देखो भगवान की भागवत मे क्या आज्ञा है"मद्भक्तपूजाभ्यधिका"- अर्थात् भगवान कहते है की मेरे भक्त की पुजा मुझसे बढकर करो-- ओर संसार वाले क्या करते है -- संतो के प्रति तो द्वेष करते है,भक्तो की निंदा करते है ओर मंदिरो मे खूब भगवान को भोग लगाते है-- तो एसा करने से भगवान को प्रसन्नता नही होती-- अगर हम भक्त की सेवा ठीक तरह से नही कर पा रहे तो कम से कम हमारी भावना तो अशुद्ध ना हो -- कम से कम हम भक्तो मे श्रद्धा तो रखें-- ईसलिए भगवान कहते है की " सर्वभूतेषु मन्मति:-" सबमे भगवद्बुद्धि हो ,अर्थात् सबमे भगवान बैठे है ये भावना रखकर भजन करना है--भगवान हमसे कैसा स्वभाव चाहते है ईस विषय मे भगवान गीता के बारहवें अध्याय मे कितनी सुंदर बात बताते हूए कह रहे है की " अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च-
निर्ममो निरंहकार समदु:खसु:ख क्षमी--
सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय:--
मय्यार्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय:---
गीता के ईस श्लोक मे पहली ही बात भगवान ने ये कह दी की " अद्वेष्टा सर्वभूतानां"-- अर्थात् किसी से भी द्वेष मत करो-- ईसलिए भगवान का प्रिय बनने के लिए द्वेष तो त्यागना ही पडेगा-- सबमे भगवान बैठे है ईस भावना से सबके प्रति शुद्ध भाव हमारे अंदर होना चाहिये--ओर ईसके बाद ईस श्लोक मे एक ओर सबसे बढिया गुण बताया की " क्षमी"-- हमे क्षमावान बनना है-- सम: मानापमानयो:-- अर्थात् मान ,अपमान मे भी मन भटक ना पाये ईसलिए निन्दा स्तुति ,मान - अपमान मे सम रहते हुए भजन करना है--" मय्यार्पितमनोबुद्धिर्यो -- मन बुद्धि भगवान ने लगा रहना चाहिये --तो एसा करने वाले भक्त से भगवान बहुत प्रेम करते है --ओर भी बहुत सारे स्वभाव भगवान ने बारहवें अध्याय मे बताये है--तो कहने का अभिप्राय: की कुछ लोग भगवान मे तो श्रद्धा रखते है लेकिन भक्तो की निंदा करते है ,भक्तो से द्वेष करते है -- तो एसे लोगो से भगवान प्रसन्न नही होते क्योकि भगवान अपने भक्तो के आधीन है-- देखो अगर कोई भाई अपने दुसरे भाई की खूब सेवा करता है तो माता पिता बहुत प्रसन्न होते है उसी प्रकार हम सब भगवान के अंश है ओर भगवान हमारे माता पिता है ईसलिए जब हम दुसरो की सच्चे भाव से सेवा करेंगे तो भगवान भी बहूत प्रसन्न होते है-- बोलिए श्रीमद्भागवत महापुराण की जय-- सद्गुरुदेव भगवान की जय-- जय जय श्री राधे

किस पथ पर चलने से होगा कल्याण...

मार्गदर्शक चिंतन-

 
जीवन में पद से ज्यादा महत्व पथ का है। इसलिए पदच्युत हो जाना मगर भूलकर भी कभी पथच्युत मत हो जाना। पथच्युत हो जाना अर्थात उस पथ का त्याग कर देना जो हमें सत्य और नीति के मार्ग से जीवन की ऊंचाईयों तक ले जाता है।
 
पथच्युत होने का अर्थ है, जीवन की असीम संभावनाओं की ओर बढ़ते हुए क़दमों का विषय- वासनाओं की दलदल में फँस जाना। महान लक्ष्य के अभाव में जीना केवल प्रभु द्वारा प्राप्त इस मनुष्य देह का निरादर ही है और कुछ नहीं।
 
महानता के द्वार का रास्ता मानवता से होकर ही गुजरता है। मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्मं और उपासना है। मानवता रुपी पथ का परित्याग ही तो पथच्युत हो जाना है।

Saturday 29 October 2016

दीपावली पर्व का संदेश...

🌷 दीपावली की बधाई आपको 🌹
दीपावली अंतर्मन के दीप जलाने का पर्व है। काम-क्रोध-लोभ और मोह जैसी घनघोर अमावस में ज्ञान रुपी दीप प्रज्वलित कर भीतर के तम का नाश करना ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है।
जहाँ प्रेम रूप दीए जले हों श्री राम उसी हृदय रुपी अयोध्या में विराजते हैं। या तो हृदय में प्रेम की ज्योत जलने पर श्री राम आयेंगे अथवा तो श्री राम के विराजमान होने पर हृदय में स्वतः ही प्रेम का प्रकाश विखरने लगेगा।
अतः इस दीपावली पर मिठाई ही नहीं प्रेम भी बाँटो। पटाखे ही नहीं दुर्गुणों को भी जलाओ। घर को ही नहीं ह्रदय को भी सजाओ। फिर जीवन को राममय होते देर ना लगेगी। और जहाँ राम (धर्म) हैं वहाँ लक्ष्मी तो आती ही हैं।
आप सबके स्वस्थ, समृद्ध एवं आनंदमय जीवन की शुभकामनाओं सहित पुनः दीपोत्सव की बधाई।

पांच अक्षर का मंत्र बनाएगा मालामाल By Hari Gopal Sharma

Friday 28 October 2016

छोटी दीपावली की शुभकामनाएं

छोटी दीपावली की शुभकामनाएं
आप भाग्यशाली होते हैं तो जीवन में सुख साधन प्राप्त होते हैं लेकिन सौभाग्यशाली तब होते हो जब साधनों के साथ-साथ ये सब भी प्राप्त हों। परम सौभाग्यशाली हैं वो जिनके पास भोजन है और भूख भी है। मखमल की सेज है और नींद भी है।
जिनके पास धन है साथ में धर्म भी है। जिनके पास विशिष्टता तो है साथ में शिष्टता भी है। जिनके पास सुन्दर रूप है तो सुन्दर चरित्र भी है। जिनके पास सम्पत्ति है तो स्वास्थ्य भी है। जिनके घर में मन्दिर है तो हृदय में भाव भी है
जिनके पास अच्छा व्यापार है साथ में अच्छा व्यवहार भी है। जिनके पास विद्वता है तो साथ में सरलता भी है। जिनके पास प्रसिद्धि है तो निरहंकारता भी है। जिनके पास वुद्धि है तो विवेक भी है। जिनके पास परिवार है तो साथ में प्यार भी है। यह सब अगर आपके पास हैं तो आप वास्तव में धनवान हैं और सौभाग्यशाली हैं।
छोटी दीपावली की बधाई।

जानिए क्या हैं धनदा यक्षिणी..महालक्ष्मी जी के साथ करें धनदा यक्षिणी की पूजा

दीपावली पर्व- दीपावली पर करें महालक्ष्मी के साथ धनदा यक्षिणी की पूजा..भरा रहेगा खजाना..


दिवाली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष पूजा की जाती है। ये विशेष पूजा रात को लक्ष्मी गणेश पूजन के बाद की जाती है। कहा जाता है कि इस पूजा को करने से दरिद्रता का नाश होता है और परिवार में कभी भी पैसों का कमी नहीं होती। इस पूजा को करने वाले के सभी काम आसानी से बिना किसी रुकावट के पूरे होते हैं। आइए जानें इस पूजा के बारे में:दीपावली के पावन पर्व पर धनदा यक्षिणी के माध्यम से आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। यंत्रशास्त्र, शक्ति पुराण और श्री महालक्ष्मी उपास्य प्राचीन धर्मग्रंथों में इसका उल्लेख विस्तारपूर्वक किया गया है। वास्तव में यक्षिणी श्री महालक्ष्मी के ही अधीन हैं। शास्त्रों में 108 यक्षिणी के नाम निहित हैं, जिसमें धनदा यक्षिणी सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। यह जीवन में वैभव, उल्लास, उमंग, जोश, यौवन, धन, सम्मान, प्रतिष्ठा, कीर्ति, श्रेष्ठता प्रदान करने में सक्षम हैं। आर्थिक समस्याओं के समाधान और अज्ञात धन की प्राप्ति के लिए दीपावली पर धनदा यक्षिणी एक श्रेष्ठ साधना है। अज्ञात धन यानी वह धन, जिसके आगमन के किसी निश्चित स्रोत के विषय में कोई ज्ञान न हो कि धन किस स्रोत से प्राप्त होगा। इस प्रकार का धन साधना से प्राप्त होगा। इसके साथ यह आवश्यक है कि यह साधना पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करें।
'
धनदा यक्षिणी' की साधना दीपावली के दिन श्री गणेश, लक्ष्मी, कुबेर आदि का पूजन संपन्न करने के बाद रात्रि दस बजे के बाद महानिशीथ काल में प्रारम्भ की जाती है। इसके लिए पीला आसन, पीली धोती, पीला दुपट्टा धारण करें। इस साधना में कोई सिला हुआ वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए। आसन ग्रहण कर किसी भी तेल का दीपक और सुगंधित धूपबत्ती प्रज्जवलित कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें। इसके बाद श्रद्धा, विश्वास और एकाग्रतापूर्वक 'ऊं श्रीं धनदायै यक्षिणी हुं श्री ऊं' मंत्र का 21 माला जाप करें। जप प्रक्रिया समाप्त कर अग्नि में गाय के घी में हल्दी का मिश्रण कर इसी मंत्र के अंत में स्वाहा जोड़ कर 108 आहुतियां दें। इसके बाद प्रतिदिन माला का जाप 21 दिन तक कर अनुष्ठान पूर्ण कर लें। अर्पित सामग्री सहित यंत्र को किसी नदी या नहर में पीले वस्त्र में लपेट कर अर्पित करें।

Tuesday 25 October 2016

क्यों कहा जाता है भगवान कृष्ण को बालबह्मचारी..

बालब्रह्मचारी श्रीकृष्ण

एक बार सभी गोपियों ने मिलकर प्रेमपूर्वक अपने हाथ से सुन्दर-सुन्दर पकवान बनाकर श्रीकृष्ण को खिलाने का निश्चय किया। सबने विविध प्रकार के सुस्वादु व्यंजन बनाए और यमुनातट पर श्रीकृष्ण के पास पहुंचकर प्रार्थना करने लगीं–’हे श्यामसुन्दर!  हमारे हाथों से बने हुए स्वादिष्ट भोजन का आस्वादन कीजिए। स्वयं संतुष्ट होकर हम सबके मन को भी आनन्द प्रदान करें।’
श्रीकृष्ण ने कहा–’गोपियो! आज तो मैं नन्दबाबा के साथ भोजन करके आ रहा हूँ। पेट में तिलमात्र भी स्थान नहीं है। अत: मैं भोजन नहीं कर सकूंगा। यदि तुम लोग मुझे संतुष्ट करना चाहती हो तो यह भोजन किसी साधु या ब्राह्मण को खिला दो।’ प्रेमस्वरूपा गोपियां अपने प्रियतम श्यामसुन्दर की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकती थीं। अत: वे बोलीं–’हम लोग किस साधु या ब्राह्मण को यह भोजन करा दें, यह आदेश भी आप ही दीजिए।’
आज्ञाकारिणी गोपियों की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा–’यमुना के दूसरे तट पर दुर्वासा मुनि विराज रहे हैं, तुम लोग उन्हीं को यह भोजन खिला दो।’ गोपियों ने कहा–’यमुनाजी पूर्ण वेग से प्रवाहित हैं। वहां कोई नौका नहीं है, जिस पर बैठकर हमलोग उस पार जा सकें। भोजन लेकर जल का स्पर्श किए बिना हम लोग उस पार भला कैसे जा सकती हैं।’
श्रीकृष्ण बोले–’जल का स्पर्श किए बिना सहज में ही उस पार जाया जा सकता है।’ गोपियों ने प्रश्न किया–’वह कैसे?’ श्रीकृष्ण ने बतलाया–’तुम लोग जाकर श्रीयमुनाजी से कहो–’यदि कृष्ण सदा का बालब्रह्मचारी हो तो तुम उस पार जाने के लिए हमें मार्ग दे दो। बस, इतना कहते ही तुम्हारा मार्ग सहज हो जाएगा।’
श्रीकृष्ण का यह कथन सुनकर गोपियां खिलखिलाकर हँस पड़ी। रास रचाने वाले श्रीकृष्ण की इस बात पर उन्हें आश्चर्य हुआ। फिर भी उन्हें अपने प्रियतम पर पूर्ण विश्वास था। वे उनके कथनानुसार श्रीयमुनाजी से प्रार्थना करने लगीं। यमुनाजी का प्रवाह तुरन्त रुक गया और बीच में सुन्दर मार्ग दिखायी पड़ा। गोपियां प्रसन्नतापूर्वक उस पार चली गईं।
दुर्वासा मुनि के आश्रम में पहुंचकर गोपियों ने उन्हें श्रद्धा से प्रेमपूर्वक भोजन कराया। पचासों थाल भोजन करने के बाद मुनि ने गोपियों को आशीर्वाद देकर विदा किया। गोपियों ने देखा–यमुनाजल पूर्ववत् वेग से बह रहा है। जिस मार्ग से वह इस पार आईं थीं, वह ओझल हो गया है। वे अब किस प्रकार उस पार जाएं। इस चिन्ता में वह खड़ी रह गईं।
दुर्वासा मुनि ने पूछा–’गोपियो! तुम सब चिन्तित क्यों खड़ी हो? तुम्हें अब अपने घरों की ओर प्रस्थान करना चाहिए।’ गोपियों ने कहा–’महाराज! पार जाने का कोई साधन नहीं है। आप कृपा करके मार्ग बतलाइए कि बिना जल का स्पर्श किए हुए हम सब उस पार पहुंच जाएं।’ दुर्वासा मुनि बोले–’देवियो! जिस रीति से आप लोग आयीं थीं, उसी प्रकार चली भी जाओ। यमुना से जाकर कहो कि यदि दुर्वासा मुनि सदा निराहारी ही रहे हों तो आप हमें मार्ग दे दें।’
अनेक प्रकार के रास रचाने व लीला करने वाले श्रीकृष्ण बालब्रह्मचारी और थोड़ी देर पहले ही पचासों थाल भोजन आत्मसात् कर जाने वाले दुर्वासा सदा के निराहारी! यह कैसा आश्चर्य? गोपियां बोलीं–’श्रीकृष्ण बालब्रह्मचारी कैसे? और आपने अभी-अभी इतना भोजन किया है, फिर आप निराहारी कैसे हुए? कृपया स्पष्ट कीजिए।’
दुर्वासा मुनि ने कहा–’हे गोपियो!  मैं शब्दादिक गुणों से तथा आकाशादिक पंचमहाभूतों से भिन्न हूँ और उसके अंदर भी हूँ। ये आकाशादि मुझे नहीं जानते। वे मेरे अंतर में भी हैं और बाह्य में भी। मैं सर्वसंगरहित आत्मा हूँ, तो फिर किस प्रकार भोक्ता हो सकता हूँ। व्यवहार दशा में ही मन विषयों को ग्रहण करता है, किन्तु परमार्थ दशा में जब सर्वत्र आत्मा है, तब मन किस विषय का मनन करे। किस विषय में मन लिप्त हो। श्रीकृष्ण भी तीनों गुणों से रहित हैं। जो इच्छा से विषयों का सेवन करे, वह कामी है, जो इच्छारहित होकर अथवा इच्छा के पूर्ण अभाव से विषयों का सेवन करता है, वह सदा ही अकामी है, सदा ही निष्काम है, सदा ही ब्रह्मचारी है, सदा ही निराहारी है। जो परमात्मा को अर्पण करके विषयों को क्षुद्रवत् जान करके अभाव से भोगता है, अभाव से ही भोजन करता है–वह सदा ब्रह्मचारी और सदैव निराहारी है।’
दुर्वासा मुनि के वचन सुनकर गोपियों की शंका का समाधान हो गया। जिस प्रकार जल का स्पर्श किए बिना वे आईं थीं, उसी प्रकार वापस चली गयीं। श्रीकृष्ण के बालब्रह्मचर्यव्रत को जानकर उनकी निष्ठा और प्रेम अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के चरणों में और भी दृढ़ हो गया।

ब्रह्मवादियों के अनुसार श्रुतिसार प्रणव के ऊपर अवस्थित अर्धमात्रा ही श्रीकृष्ण हैं, जिनमें विश्व प्रतिष्ठित है। व्रजगोपियों के प्रेम के कारण ही निर्गुण अर्द्धमात्रा का श्रीकृष्णरूप में व्रज में अवतरण हुआ।

Monday 24 October 2016

दीपावली पर कैसी लक्ष्मीजी की मूर्ति लाएं घर और व्यापार स्थान पर..

दीपावली पर्व- घर और व्यापार स्थान पर कैसे लक्ष्मी विग्रह का करें पूजन..जिससे कभी न हो धन की कमी...

दीपावली पर्व धन की अधिष्ठात्री देवी , विष्णु प्रिया श्रीमहालक्ष्मी का जन्मोत्सव पर्व है..कार्तिक मास की अमावस्या को महालक्ष्मी पूजन का विधान है...धर्मशास्त्रों के मुताबिक दीपावली पर्व यानि अमावस्या तिथि को महालक्ष्मी जी का विधि विधान के साथ पूजन करने से घर और व्यापार स्थल पर धन की कमी नहीं रहती...तिजोरी हमेशा भरी रहती है...लेकिन सबके मन में यह प्रश्न बना रहता है कि दीपावली पर्व पर किस तरह के विग्रह की पूजा की जाए..तो आज हम बता रहे हैं कि आप घर पर और व्यापार स्थल पर कैसे लक्ष्मी विग्रह का पूजन करें..जिससे आपके घर और व्यापार स्थान पर धन वर्षा होती रहे....शास्त्रों में यूं तो दीपावली पर्व पर पंचदेवों की पूजा करने का विधान बताया गया है..इनमें महालक्ष्मी जी, गणेश जी, महासरस्वती जी, देवाधिदेव महादेव और संकटमोचन हनुमान जी की पूजा की जाती है...लेकिन हम ज्यादातर महालक्ष्मी जी और गणपति की पूजा करते हैं...घर पर जब आप पूजा कर रहे हों तो लाल वस्त्राभूषणों से विभूषित..लाल कमल पर बैठी हुई महालक्ष्मी जी के छायाचित्र या प्रतिमा या विग्रह का पूजन करें...घर में कमल पर विराजमान लक्ष्मी जी का पूजन करने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है...वहीं यदि आप व्यापार स्थल पर पूजा कर रहे हों तो लाल कमल पर खड़ी मुद्रा में महालक्ष्मी जी के छायाचित्र या प्रतिमा या विग्रह का पूजन करें...खड़े हुए महालक्ष्मी जी का पूजन करने से चर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है..यानि मां महालक्ष्मी की कृपा से व्यापार चलायमान रहता है..जिससे व्यापार में हमेशा वृद्धि होती रहती है....
मां महालक्ष्मी जी के श्रीविग्रह के साथ लक्ष्मीपुत्र गणेश जी के श्रीविग्रह की भी पूजा का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए...अपने घर और व्यापार स्थल पर हमेशा गणपति के उस छायाचित्र, प्रतिमा या श्रीविग्रह की स्थापना करनी चाहिए..जिसमें गणपति कमल पुष्प पर विराजमान हों...साथ ही उनकी सूंड का अंतिम शिरा मोदक की ओर हो...शास्त्रों के मुताबिक इस तरह के गणपति विग्रह की पूजा करने से विघ्नहर्ता की कृपा घर और व्यापार स्थल पर मिलती है...क्योकि गणपति के मोदक आनंद का स्वरुप हैं...गणपति की सूंड़ यदि मोदक की ओर होगी तो गणपति उससे जीवन में आनंद की बर्षा करते हैं...गणपति की कृपा से जीवन में विद्या-बुद्धि के साथ जीवन की सारी बाधाएं सहज रुप में दूर हो जाती है...


तो ध्यान रखिए जब आप दीपावली पर्व पर महालक्ष्मी जी और महागणपति की प्रतिमा, छायाचित्र को पूजा के लिए ला रहे हैं तो....जिससे आपको हमेशा मिलती रहे..महालक्ष्मी और महागणपति कृपा...न रहे आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कमी...भरी रहे आपके घर और व्यापार स्थल की तिजोरी...

दीपावली पर किस समय न करें पूजा ... रूठ जाएंगी महालक्ष्मी होगी धन हानि B...

कैसा हो आपका आचरण..जिससे बन जाए सबके प्रिय

मार्गदर्शक चिंतन-

आचरण के अभाव में केवल आवरण से भारतीय बनना, वास्तव में माँ भारती से छल करना ही है। भारत केवल एक राष्ट्र का ही नाम नहीं अपितु एक जीवन पद्धति का नाम भी है। 
प्राणी मात्र से प्रेम, अपने से छोटों से प्यार व बड़ों की सेवा, अतिथि सत्कार की भावना, सम्पूर्ण प्रकृति का ही परमेश्वर के रूप में पूजन, पूर्ण निष्ठा से कर्तव्यों का पालन, नारी से मित्रवत नहीं, मातृवत व्यवहार व पीडित में ही परमेश्वर दर्शन,यही तो वास्तविक तौर पर एक सच्चे भारतीय होने का अर्थ है।
भारत, यानि जीवन जीने की एक श्रेष्ठतम जीवन पद्धति, जहाँ कण-कण में परमात्मा का दर्शन किया जाता है। केवल भारत में रहना पर्याप्त नहीं, हमारे भीतर भारतीयता भी रहनी चाहिए। अतः केवल आवरण से ही नहीं, आचरण से भी भारतीय बनो।

Sunday 23 October 2016

क्या है दीपावली पूजा का अनिष्टकारी समय...इस समय न करें लक्ष्मी पूजा

दीपावली पर्व- किस समय पूजा से होगा अनर्थ..
रुठ जाएंगी मां लक्ष्मी..चला जाएगा सारा धन

दीपावली पर्व धन की देवी मां महालक्ष्मी से धन का वरदान मांगने का महापर्व है...
दीपावली के पूजन से हमें धन की देवी मां महालक्ष्मी का आशीष मिलता है
मां महालक्ष्मी की कृपा से जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं रहती
लेकिन मां महालक्ष्मी पूजा सही और शुभ मुहूर्त करने से मिलती है
यूं तो पूरे दिन महालक्ष्मी पूजा का समय है लेकिन पूरे दिन का 1 घंटा 30 मिनट अनिष्टकारी है
इस समय में पूजा करने से रुठ जाएंगी मां महालक्ष्मी और चला जाएगा सारा धन
शाम 4.30 बजे से 6 बजे तक पूजा करने से हो जाएगा अनर्थ
यह समय राहुकाल का है
राहुकाल में नहीं की जाती है कोई भी शुभ पूजा और शुभ कार्य

इस समय पूजा करने से बचें और पाएं मां महालक्ष्मी का आशीष

घर से यदि ये चीजें न हटाई तो नहीं बनेंगे अमीर

इस दिवाली अमीर बनने के लिए जल्द हटा दें घर की ये चीजें

हर कोई अमीर बनने का ख्वाब देखता है, दरिद्रता का जीवन जीना कोई नहीं चाहता है। एक दौर वो भी था जब पैसा केवल इंसान की जरूरते पूरी करता था लेकिन आजकल यह ना सिर्फ आपकी जरूरतों को पूरा करता है बल्कि यह आपका स्टेटस भी निर्धारित करता है।
हो सकता है आपके घर में कुछ ऐसा हो जो आपके धन के आगमन से ज्यादा उसके व्यय का जिम्मेदार हैं। आपको शायद यह बात पता ना हो लेकिन वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में कुछ ऐसी अनचाही चीजें आ जाती हैं जिनकी वजह से परिवार को निर्धनता का सामना करना पड़ता है। आइए जानते हैं क्या हैं वो
कबूतर का घोंसला
मधुमक्खी का छत्ता
मकड़ी का जाल
टूटा शीशा
दीवारों पर निशान
पानी का टपकना
सूखे फूल

बिजली का सामान

श्रद्धा-भक्ति और भाव है तो भगवान हैं...मन में भाव हो तो प्रकट होते हैं भगवान

मार्गदर्शक चिंतन-

भगवान् नहीं ह्रदय में पहले भाव आता है। भाव आ जाएगा तो भगवान् को आते देर ना लगेगी। भाव से ही भव बंधन कटते हैं। भाव से भव सागर पार होता है। पदार्थ को नहीं भक्त के भाव को ठाकुर जी ग्रहण करते हैं।
भाव भगवान् की कृपा से प्रगट होता है या सत्संग और संतों की कृपा से प्रगट होता है। दुनिया में कुछ भी छूटे छूट जाने देना, कथा का त्याग मत करना। शास्त्रों के सूत्र संत की कृपा से जल्दी ह्रदय में उतरकर आचरण बन जाते हैं। 
रसिक बनना है तो भैया संतों के चरणों में बैठना आना चाहिए। संत सत तक पहुंचा देता है। उर ( ह्रदय ) के मैल को संत कृपा करके दूर कर देते हैं। भाव भी संत की कृपा से प्रगट होता है। सत के आश्रय के साथ-साथ संत आश्रय और हो जाये तो कल्याण होते देर ना लगेगी।

Saturday 22 October 2016

देवराज इंद्र ने किन सरल मंत्रों के पाठ से मनाया रुठी महालक्ष्मी को..जानिए देवराज इंद्र रचित महालक्ष्मी के 8 महामंत्र

इंद्र ने किन सरल मंत्रों के पाठ से पायी अक्षय राजलक्ष्मी की कृपा..

पद्मा, पद्मालया, पद्मवनवासिनी, श्री, कमला, हरिप्रिया, इन्दिरा, रमा, समुद्रतनया, भार्गवी और जलधिजा आदि नामों से पूजित देवी महालक्ष्मी वैष्णवी शक्ति हैं। ये सम्पूर्ण ऐश्वर्यों की अधिष्ठात्री और समस्त सम्पत्तियों को देने वाली हैं। इनकी कृपा के बिना मनुष्य में ऐश्वर्य का अभाव हो जाता है और इनकी कृपादृष्टि से गुणहीन मनुष्य को भी शील, विद्या, विनय, ओज, गाम्भीर्य और कान्ति आदि समस्त गुण प्राप्त हो जाते हैं। मनुष्य सम्पूर्ण विश्व का आदर और प्रेम प्राप्तकर श्रद्धा का पात्र बन जाता है।

इन्द्र कृत महालक्ष्मी स्तोत्र से सम्बन्धित कथा

एक बार देवराज इन्द्र ऐरावत हाथी पर चढ़कर जा रहे थे। रास्ते में दुर्वासा मुनि मिले। मुनि ने अपने गले में पड़ी माला निकालकर इन्द्र के ऊपर फेंक दी। जिसे इन्द्र ने ऐरावत हाथी को पहना दिया। तीव्र गंध से आकर्षित होकर ऐरावत हाथी ने सूंड से माला उतारकर पृथ्वी पर फेंक दी। यह देखकर दुर्वासा मुनि ने इन्द्र को शाप देते हुए कहा–’इन्द्र! ऐश्वर्य के घमण्ड में तुमने मेरी दी हुई माला का आदर नहीं किया। यह माला नहीं, लक्ष्मी का धाम थी। इसलिए तुम्हारे अधिकार में स्थित तीनों लोकों की लक्ष्मी शीघ्र ही अदृश्य हो जाएगी।’

महालक्ष्म्यष्टकम्

इन्द्र उवाच
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।१।।
इन्द्र बोले–श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मि! तुम्हें प्रणाम है।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।२।।
गरुड़ पर आरुढ़  हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मि! तुम्हें प्रणाम है।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।३।।
सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्ष्मि! तुम्हें नमस्कार है।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।४।।
सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मि! तुम्हें सदा प्रणाम है।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।५।।
हे देवि! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ति! हे महेश्वरि! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मि! तुम्हें नमस्कार है।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।।
हे देवि! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मि! तुम्हें नमस्कार है।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।७।।
हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि! हे परमेश्वरि! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मि! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।८।।
हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मि! तुम्हें मेरा प्रणाम है।

स्तोत्र पाठ का फल

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।९।।
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राजवैभव को प्राप्त कर सकता है।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।१०।।
जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।११।।
जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।