मार्गदर्शक चिंतन-
जगत में सत्य क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर बताते हुए भगवान शिव माँ पार्वती से कहते हैं।
उमा कहहु मैं अनुभव अपना।
सत्य हरि भजन जगत सब सपना॥
यद्यपि
देखने में तो यह सारा दृश्य
जगत सत्य ही मालूम पड़ता है।
सत्य तो केवल और केवल उस प्रभु
का नाम स्मरण ही है,
बाकी
सारे जगत को आप सपने के समान
ही समझो। जैसे सपने में होता
तो बहुत कुछ है मगर उस होने और
न होने का कोई मूल्य ही नहीं।
सपने में बहुत कुछ पाया भी तो
क्या पाया ?
और
बहुत खोया भी तो क्या खोया
? यहाँ
पर बात अनुमान की नहीं अपितु
अनुभव की हो रही है। अनुमान
अर्थात संभावना और अनुभव
अर्थात वो सत्य जिससे आदमी
गुजर चुका है। अत:
इस
असत्य दुनियाँ से प्रेम जरूर
रखना मगर इतना भी नहीं,
जिससे
कि उस परम सत्य प्रभु का भजन
ही छूट जाए।
No comments:
Post a Comment