Wednesday 12 July 2017

जीवन में मिलने वाले सुख-दुख रुपी भोगों को कैसे जीएं..

मार्गदर्शक चिंतन-

भोग बुरे नहीं हैं अपितु उनकी आसक्ति बुरी है। भोगों को इस प्रकार भोगो कि समय आने पर इन्हें छोड़ा भी जा सके। श्री कृष्ण से बड़ा अनासक्त कोई नहीं हुआ। द्वारिका में राजसी सुखों में रहे तो वहीं जरुरत पड़ने पर अर्जुन का रथ भी हाँकने लगे। कभी सुदामा के चरणों में बैठ गए तो कभी विदुर की झोंपड़ी में डेरा डाल दिया।
जब तक द्वारिका की सत्ता पर आसीन रहे पूरी प्रजा को पुत्रवत पाला पर जब स्थिति, कुल और धर्म दोनों में से किसी एक को चुनने की आ गई तो बिना कुलासक्ति के धर्म को चुन लिया। विवाह किये तो इतिहास ही रच ड़ाला और त्यागने का समय आया तो ऐसे त्याग दिया जैसे उनसे कभी कोई सम्बन्ध ही ना रहा हो।
यह अनासक्ति ही भगवान् श्री कृष्ण की प्रसन्नता का कारण बनी। इस दुनिया में जो भी अनासक्त भाव से कर्म में लिप्त रहते हैं उन्हें आनंद प्राप्ति से कोई नहीं रोक सकता।

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