Monday 3 July 2017

गीता का दिव्य ज्ञान-

मार्गदर्शक चिंतन-

आज का आदमी ईश्वर पर भी आरोप लगाने से नहीं चूकता है। जिस ईश्वर ने इसे बुद्धि प्रदान की है उसी बुद्धि के बल पर यह ईश्वर को ही झुठलाना चाहता है।
बहुधा लोगों के मुख से यह बात सुनी जाती है कि भगवान् भी भेदभाव करते हैं। दूसरों को इतना दिया, हमें कुछ भी नहीं दिया।औरों को सुख ही सुख हमें इतना दुःख दिया। गीता में भगवान कहते हैं कि 
"
समोहं सर्वभूतेषु नमो द्वेष्योस्ति न प्रियः।
हे अर्जुन, मै कभी किसी से भेदभाव नहीं करता ना ही कोई प्राणी मेरे लिए विशेष है। मै सबमें समभाव रखता हूँ मगर इसके बावजूद अच्छे आचरण वाला, सबमे मेरे स्वरूप का दर्शन करने वाला और मुझसे प्रेम करने वाला जीव मेरा प्रिय तो बन ही जाता है।

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