मार्गदर्शक चिंतन-
वर्तमान समय में हर आदमी आपको यह कहता हुआ मिलेगा कि लोग उसे समझ नहीं रहे है। जबकि यह चिंता का विषय बिलकुल भी नही है। तुम स्वयं अपने आप को अगर नहीं समझ पा रहे हो तो यह जरूर चिंता का विषय है।
प्रकृति ने सबको अलग स्वभाव, अलग उद्देश्य और अलग आदतें प्रदान की हैं। हर आदमी अपने जैसा स्वभाव वाला, समान उद्देश्य वाला व्यक्ति ही ढूँढता है। एक प्रकार से कहें कि वह खुद अपने अक्स को हर शख्स में देखना चाहता है। यहीं से सही गलत की धारणाएं प्रारम्भ हो जाती हैं। जो दुःख ना होने पर भी दुःख का अकारण आभास कराती रहती हैं।
दूसरों को ज्यादा जानने में व्यक्ति स्वयं से बहुत दूर हो जाता है। "स्वस्मिन् तिष्ठति इति स्वस्थः"। जो स्वयं में स्थित है वहीँ स्वस्थ है। खुद को जाने बिना खुदा को नहीं जाना जा सकता है।
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