मार्गदर्शक चिंतन-
सत्य है कि लोहे से ही लोहे को काटा जा सकता है और पत्थर से ही पत्थर को तोडा जा सकता है। मगर ह्रदय चाहे कितना भी कठोर क्यों ना हो उसको पिघलने के लिए कभी भी कठोर वाणी कारगर नहीं हो सकती क्योंकि वह केवल और केवल नरम वाणी से ही पिघल सकता है।
क्रोध को क्रोध से नहीं जीता जा सकता, बोध से जीता जा सकता है। अग्नि अग्नि से नहीं बुझती जल से बुझती है। समझदार व्यक्ति बड़ी से बड़ी बिगड़ती स्थितियों को दो शब्द प्रेम के बोलकर संभाल लेते हैं। हर स्थिति में संयम रखो, संयम ही आपको क्लेशों से बचा सकता है।
आँखों में शर्म रहे और वाणी नरम रहे तो समझ लेना परम सुख आपसे दूर नहीं।
रूठते
हैं शब्द भी अपने गलत इस्तेमाल
होने पर,देखा
है हमने शब्दों को भी अकसर
रूठते हुए।
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