Thursday 30 November 2017

जीवन में कैसी हो..शर्म...

मार्गदर्शक चिंतन-

शर्म से जिन्दगी जिओ मगर शर्म की जिन्दगी नहीं। परस्पर सम्मान पूर्वक व्यवहार करते हुए, सबसे विनम्रता पूर्वक आचरण रखना और अपने से बड़ों के साथ नीची आवाज में बात करना, इसी का नाम तो शर्म से जिन्दगी जीना है।
इसके ठीक विपरीत अपने दुष्कृत्यों द्वारा समाज में तिरष्कृत रहना अथवा अपने दुर्व्यवहार व दुश्चरित्र के कारण पग-पग पर अपमानित रहना, ऐसी जिन्दगी जीना ही शर्म की जिन्दगी जीना है। विनय ही जीवन में विजय का मार्ग प्रशस्त करता है।
जो लोग शर्म से तथा विनय पूर्वक जीना जानते हैं , सफलता उनके द्वार को अवश्य खटखटाया करती है। स्वयं शर्म करना अच्छी बात है मगर दूसरे तुम पर शर्म करें ऐसे कर्म करने से बचना ही जीवन की महानता है।

Wednesday 29 November 2017

जानिए कौन है सन्यासी और योगी...

मार्गदर्शक चिंतन-


गीता जी में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के समक्ष सन्यासी और योगी की जो परिभाषा रखी है, वह बड़ी ही अदभुत और विचारणीय है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन सन्यास आवरण का नहीं अपितु आचरण का विषय है।
जिह्वा क्या बोल रही यह सन्यासी होने की कसौटी नहीं अपितु जीवन क्या बोल रहा है, यह अवश्य ही सन्यासी और योगी होने की कसौटी है।
अनाश्रित: कर्म फलं कार्यं कर्म करोति य:स सन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चा क्रिया।

जो पुरुष कर्म फल की इच्छा का त्याग कर सदैव शुभ कर्म करता रहता है, परोपकार ही जिसके जीवन का ध्येय है, वही सच्चा सन्यासी है। कर्मों का त्याग सन्यास नहीं, अपितु अशुभ कर्मों का त्याग सन्यास है। दुनियाँ का त्याग करना सन्यास नहीं है अपितु दुनियाँ के लिए त्याग करना यह अवश्य सन्यास है।

Tuesday 28 November 2017

कैसा है सत्य पर चलने का मार्ग..

मार्गदर्शक चिंतन-

सत्य का अर्थ शांति का मार्ग नहीं शाश्वत का मार्ग है। जिसे सुख और शांति की चाहना है, वह भूलकर भी सत्य का वरण नहीं कर सकता क्योंकि सत्य का मार्ग अवश्य ही एक राजपथ है मगर ऐसा राजपथ, जिसमे पग-पग पर विरोध और अवरोध के नुकीले काँटों की भरमार है।
एक बात और जिसके जीवन में मान और सम्मान की इच्छा हो उसके लिए सत्य का मार्ग सदैव बंद ही समझो क्योंकि एक सत्य के पथिक को पग - पग पर अपमान व सामाजिक व्यंग्य के सिवाय और मिलता ही क्या है ?जिसे मीरा की तरह जहर पीना और कबीर की तरह कटुता में जीना आ गया, वही सत्य के मार्ग का सच्चा पथिक है और उसी को निश्चित ही शाश्वत की उपलब्धि भी है। अतः शाश्वत तक पहुँचाने वाले मार्ग का नाम ही तो सत्य है।

Monday 27 November 2017

जानिए जीवन जीने का एक सुंदर उपाय...

मार्गदर्शक चिंतन-

जीवन को केवल तमन्ना में ही मत जिओ अपितु इसे तन्मयता के साथ जीने की आदत भी बनाओ। जो लोग केवल तमन्नाओं में जिया करते हैं यह जिन्दगी उनकी नासमझी पर हंसा करती है। एक इच्छा पूरी नहीं हुई कि उससे पहले और अनेक इच्छाओं का जन्म होना ही तमन्ना में जीना है।
तन्मयता में जीना अर्थात अपने द्वारा संपन्न प्रत्येक कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ सावधानी पूर्वक इस प्रकार करना कि कर्म ही पूजा और आत्म संतुष्टि ही परिणाम बन जाए।
तन्मयता के कारण ही एकलव्य अर्जुन से भी आगे निकल गया और केवल तमन्ना के कारण ही दुर्योधन को कुलनाशक होना पड़ा। अतः तमन्ना नाश का कारण और तन्मयता ही जीवन के विकास का कारण है।

Sunday 26 November 2017

दूसरों के दोषों को देखने से पहले अपने आपको देखें..

मार्गदर्शक चिंतन-

चाहे गलती कोई भी हो और किसी की भी हो मगर दूसरों को दोष देना, यही आज के इस आदमी की फितरत बन गयी है। आदमी गिरता है तो पत्थर को दोष देता है, डूबता है तो पानी को दोष देता है और कुछ नहीं कर पाता तो क़िस्मत को दोष देता है।
दूसरों को दोष देने का अर्थ ही मात्र इतना सा है कि स्वयं की गलती को स्वीकार करने का सामर्थ्य न रख पाना और अपने में सुधार की भावी संभावनाओं को स्वयं अपने हाथों से कुचल देना।
खुद के जीवन में दोष होने से भी ज्यादा घातक है दूसरों को दोष देना क्योंकि इसमें समय का अपव्यय व आत्मप्रवंचना दोनों होते हैं। अतः आत्मसुधार का प्रयास करो, जहाँ आत्म सुधार की प्रवृत्ति है, वहीँ परमात्मा से मिलन भी है।

Thursday 23 November 2017

जिंदगी में कुछ भी आपका नहीं..किसी न किसी की अमानत है..

मार्गदर्शक चिंतन-

इस दुनिया में जो कुछ भी आपके पास है, वह बतौर अमानत ही है और दूसरे की अमानत का भला गुरुर कैसा ? बेटा बहु की अमानत है, बेटी दामाद की अमानत है, शरीर शमशान की अमानत है और जिन्दगी मौत की अमानत है।
अमानत को अपना समझना सरासर बेईमानी ही है। याद रखना यहाँ कोई किसी का नहीं। तुम चाहो तो लाख पकड़ने की कोशिश कर लो मगर यहाँ आपकी मुट्ठी में कुछ आने वाला नहीं है। अमानत की सार-सम्भाल तो करना मगर उसे अपना समझने की भूल मत करना और जो सचमुच तुम्हारा अपना है, इस दुनियां की चमक - दमक में उसे भी मत भूल जाना।
यह सच है कि इस दुनिया में कोई तुम्हारा अपना नहीं मगर दुनिया बनाने वाला जरुर अपना है फिर उस अपने से प्रेम न करना बेईमानी नहीं तो और क्या है।

Wednesday 22 November 2017

कहां मिलेंगे परमात्मा..

मार्गदर्शक चिंतन-

दीन दुखियों की सेवा करो और पड़ोसियों से प्रेम, ताकि आपको परमात्मा को ढूँढने कहीं दूर न जाना पड़े। यह अनमोल वचन हमें बहुत कुछ सन्देश दे जाते हैं बशर्ते हम समझने का प्रयास करें। हमारे जीवन की विचित्रिता तो देखिये ! हम तीर्थ स्नान के लिए कोसों दूर जाते हैं और पड़ोस का कोई दुखियारा केवल इस कारण मर गया कि उसे एक घूँट जल की न मिल सकी।
हम बड़े-बड़े भंडारे लगाने मीलों दूर जाते हैं और मुहल्लों के कई किशोर पढने- लिखने की उम्र में सिर्फ इसलिए अमानवीय व्यवहार सहकर भी रात- दिन मजदूरी करते हैं ताकि उनके परिवार को कम से कम एक वक्त तो भर पेट भोजन मिल सके।
काश ! अब भी इस समाज में कोई एकनाथ और नामदेव जैसे चैतन्य पुरुष प्रकट होते, जिन्हें पशु में ही पशुपति नाथ और कुत्ते में ही कुल देव के दर्शन हो गये।

Tuesday 21 November 2017

कैसा हो जीवन जीने का मार्ग..

मार्गदर्शक चिंतन-

? जीवन में पद से ज्यादा महत्व पथ का है। इसलिए पदच्युत हो जाना मगर भूलकर भी कभी पथच्युत मत हो जाना। पथच्युत हो जाना अर्थात उस पथ का त्याग कर देना जो हमें सत्य और नीति के मार्ग से जीवन की ऊंचाईयों तक ले जाता है।
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पथच्युत होने का अर्थ है, जीवन की असीम संभावनाओं की ओर बढ़ते हुए क़दमों का विषय- वासनाओं की दलदल में फँस जाना। महान लक्ष्य के अभाव में जीना केवल प्रभु द्वारा प्राप्त इस मनुष्य देह का निरादर ही है और कुछ नहीं।
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महानता के द्वार का रास्ता मानवता से होकर ही गुजरता है। मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्मं और उपासना है। मानवता रुपी पथ का परित्याग ही तो पथच्युत हो जाना है।

Monday 20 November 2017

जानिए कैसा धन जीवन में देगा लाभ..

मार्गदर्शक चिंतन-

धन तो सभी कमाते हैं मगर जो लोग धन के अर्जन में पवित्रता, धन के रक्षण में अनासक्ति, उपयोग में संयम और विवेक रखते हैं। शास्त्रों की दृष्टि में उन्ही का धनार्जन सार्थक माना गया है।
अगर धन कमाने में नैतिकता और पवित्रता का ध्यान रखा जाता है तो फिर सच समझना यह आपके जीवन को कभी भी अनैतिक नहीं होने देगा। इसी प्रकार अगर कमाए गये धन में आसक्ति भाव छोडकर उसका रक्षण किया जाए तो समझ लेना फिर आपकी कीर्ति और यश को फैलने से रोकना किसी के भी सामर्थ्य में नहीं।
साथ ही धन का उपयोग यदि विवेकपूर्ण संयम से किया जाए तो फिर निश्चित ही आपका धन ही सार्थक नहीं हो जाता अपितु सम्पूर्ण जीवन भी सार्थक हो जाता है।

Sunday 19 November 2017

जानिए आप किस श्रेणी के मनुष्य हैं..

मार्गदर्शक चिंतन-

नीति शास्त्र कहते हैं कि नीच और अधम श्रेणी के मनुष्य- कठिनाईयो के भय से किसी उत्तम कार्य को प्रारंभ ही नहीं करते। मध्यम श्रेणी के मनुष्य - कार्य को तो प्रारंभ करते हैं मगर विघ्नों को आते देख घबराकर बीच में ही छोड़ देते हैं। ये विघ्नों से लड़ने की सामर्थ्य नहीं रख पाते।
उत्तम श्रेणी के मनुष्य- विघ्न बाधाओं से बार- बार प्रताड़ित होने पर भी प्रारंभ किये हुए उत्तम कार्य को तब तक नहीं छोड़ते, जब तक कि वह पूर्ण न हो जाए। कार्य जितना श्रेष्ठ होगा बाधाएं भी उतनी ही बड़ी होंगी। आत्मबल जितना ऊँचा होगा तो फिर सारी समस्याए स्वतः उतनी ही नीची नज़र आने लगेंगी।
ध्यान रहे इस श्रृष्टि में श्रेष्ठ की प्राप्ति उसी को होगी जिसने सामना करना स्वीकार किया, मुकरना नहीं। अतः जीवन में उत्कर्ष के लिए संघर्ष जरुरी है।

Thursday 16 November 2017

क्या है विनम्रता का सही मतलब...

मार्गदर्शक चिंतन-

विनम्रता का अर्थ सबकी सुन लेना नहीं अपितु स्वयं की सुन लेना है। विनम्र मनुष्य का अर्थ ही वह मनुष्य है, जो दूसरों की कम और स्वयं की आत्मा की आवाज को ज्यादा सुनता हो। स्वयं की आवाज सुनने वाला मनुष्य कभी भी उग्र नहीं हो सकता क्योंकि उग्रता का कारण ही केवल इतना सा है, कि स्वयं की आवाज को अनसुना कर देना।
जो मनुष्य सबकी सुने मगर स्वयं की न सुने, तो समझ लेना वह व्यक्ति कभी भी वास्तविक विनम्र नहीं हो सकता। उसकी वह विनम्रता केवल और केवल दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं।
विनम्रता झुकना नहीं सिखाती अपितु स्वाभिमान के साथ जीना सिखाती है। सबको सुनना फिर स्वयं को सुनना फिर उसे गुनना और फिर कुछ कहना, इसी का नाम तो विनम्रता है।

Wednesday 15 November 2017

कैसे मिलते हैं भगवान..

मार्गदर्शक चिंतन-

भगवान् नहीं ह्रदय में पहले भाव आता है। भाव आ जाएगा तो भगवान् को आते देर ना लगेगी। भाव से ही भव बंधन कटते हैं। भाव से भव सागर पार होता है। पदार्थ को नहीं भक्त के भाव को ठाकुर जी ग्रहण करते हैं।
भाव भगवान् की कृपा से प्रगट होता है या सत्संग और संतों की कृपा से प्रगट होता है। दुनिया में कुछ भी छूटे छूट जाने देना, कथा का त्याग मत करना। शास्त्रों के सूत्र संत की कृपा से जल्दी ह्रदय में उतरकर आचरण बन जाते हैं। 
रसिक बनना है तो भैया संतों के चरणों में बैठना आना चाहिए। संत सत तक पहुंचा देता है। उर ( ह्रदय ) के मैल को संत कृपा करके दूर कर देते हैं। भाव भी संत की कृपा से प्रगट होता है। सत के आश्रय के साथ-साथ संत आश्रय और हो जाये तो कल्याण होते देर ना लगेगी।

Tuesday 14 November 2017

किसी की मदद करने से क्या लाभ मिलता है जानिए...

मार्गदर्शक चिंतन-

जो मनुष्य दूसरों का भला करके भूल जाते हैं उनका हिसाब प्रकृति स्वयं याद रखा करती है मगर जो मनुष्य आदतन अपने पुण्यों का बही खाता लिए फिरते हैं इस प्रकृति द्वारा फिर उनके पुण्य कर्मों को विस्मृत कर दिया जाता है।
जो भी पुण्य तुम्हारे द्वारा संपन्न किये जाते हैं, सत्य समझ लेना यह प्रकृति निश्चित ही उन्हें संचित कर देती है और आवश्यकता पड़ने पर तुम्हारी विस्मृति के बावजूद भी उनका यथा योग्य फल अवश्य ही दे दिया करती है।
याद रखना मनुष्य केवल खाता रख सकता है मगर उसका परिणाम घोषित नहीं कर सकता। वह अधिकार तो केवल और केवल इस प्रकृति के पास ही सुरक्षित है। अतः भला करो और भूल जाओ उचित समय आने पर प्रकृति स्वयं पुरुस्कृत कर देगी।

Monday 13 November 2017

पत्थर दिल इंसान को कैसे पिघलाया जा सकता है..

मार्गदर्शक चिंतन-

सत्य है कि लोहे से ही लोहे को काटा जा सकता है और पत्थर से ही पत्थर को तोडा जा सकता है। मगर ह्रदय चाहे कितना भी कठोर क्यों ना हो उसको पिघलने के लिए कभी भी कठोर वाणी कारगर नहीं हो सकती क्योंकि वह केवल और केवल नरम वाणी से ही पिघल सकता है।
क्रोध को क्रोध से नहीं जीता जा सकता, बोध से जीता जा सकता है। अग्नि अग्नि से नहीं बुझती जल से बुझती है। समझदार व्यक्ति बड़ी से बड़ी बिगड़ती स्थितियों को दो शब्द प्रेम के बोलकर संभाल लेते हैं। हर स्थिति में संयम रखो, संयम ही आपको क्लेशों से बचा सकता है।
आँखों में शर्म रहे और वाणी नरम रहे तो समझ लेना परम सुख आपसे दूर नहीं।
रूठते हैं शब्द भी अपने गलत इस्तेमाल होने पर,देखा है हमने शब्दों को भी अकसर रूठते हुए।

Sunday 12 November 2017

क्या है बोलने से ज्यादा सुनने का लाभ..

मार्गदर्शक चिंतन-

वक्ता तो हर कोई बनना चाहता है मगर श्रोता कोई भी नहीं क्योंकि यहाँ पर हर आदमी दूसरों को सुनाना ज्यादा पसंद करता है बजाय खुद सुनने के। एक अच्छा वक्ता बनना जितना श्रेष्ठ है, एक अच्छा श्रोता बनना भी उससे भी श्रेष्ठ। 
एक अच्छे श्रोता होने का अर्थ है अपने विवेक के बल पर यह तय करने की क्षमता रखना कि मेरे स्वयं के लिए कौन सी बात सुननी हितकर है और कौन सी अहितकर ? केवल बोलने की सामर्थ्य रखना ही नहीं अपितु सुनने की सामर्थ्य रखना भी एक कला है।
केवल सुना जाए यही श्रोता का लक्षण नहीं है अपितु क्या सुना जाए ? और उसमे से कितना चुना जाए ? यही एक श्रेष्ठ श्रोता का लक्षण है। एक अच्छा वक्ता होने के लिए साधक का बहुश्रुत होना बहुत जरुरी है।

Saturday 11 November 2017

कौन है गुलाम..

मार्गदर्शक चिंतन-

गुलामी की वजह से हम कमजोर नहीं बनते अपितु कमजोरी हमें गुलाम बना देती है। दूसरों के नियंत्रण में रहने का नाम गुलामी नहीं अपितु स्वनियंत्रित न हो पाना, यही महागुलामी है।
गुलामी का मतलब यह नहीं कि आप दूसरों की इच्छा से काम कर रहे हैं अपितु यह है कि आप अनिच्छा से काम कर रहे हैं।
गुलामी का अर्थ शरीरगत बंधन नहीं अपितु विचारगत पराधीनता है।
किसी भी दशा में आपके श्रेष्ठ विचारों का अतिक्रमण न हो इसी का नाम स्वतंत्रता है !

मंजर बदल देती है जीने की अदा,कोई पिंजरे के बाहर भी कैद रहा, कोई पिंजरे के भीतर भी आज़ाद जिया।

Thursday 9 November 2017

जानिए कैसा है देवाधिदेव महादेव का जीवन..

मार्गदर्शक चिंतन-

 शिव होने का अर्थ है, एक ऐसा जीवन जो मैं और मेरे से ऊपर जिया गया हो। जहाँ जीवन तो है मगर जीवन के प्रति आसक्ति नहीं और जहाँ रिश्ते तो हैं मगर किसी के भी प्रति राग और द्वेष नहीं।
जहाँ प्रेम तो है मगर मोह नहीं और जहाँ अपनापन तो है मगर मेरापन नहीं। जहाँ ऐश्वर्य तो है मगर विलास नहीं और जहाँ साक्षात माँ अन्नपूर्णा है मगर भोग नहीं। जहाँ नृत्य भी है, संगीत भी है, त्याग भी है और योग भी है मगर अभिमान नहीं।
जीवन की वह स्थिति जब हम विषमता में भी जीना सीख जाएँ, जब हम निर्लिप्त रह कर बांटकर खाना सीख जाएँ और जब हम काम की जगह राम में जीना सीख जाएँ, वास्तव में शिव हो जाना ही है।

Wednesday 8 November 2017

कैसी होती है भगवान कृपा...

मार्गदर्शक चिंतन-

जिस प्रकार एक वैद्य के द्वारा दो अलग-अलग रोग के रोगियों को अलग अलग दवा दी जाती है। किसी को मीठी तो किसी को अत्याधिक कडवी दवा दी जाती है। लेकिन दोनों के साथ भिन्न - भिन्न व्यवहार किये जाने के बावजूद भी उसका उद्देश्य एक ही होता है, रोगी को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करना।
ठीक इसी प्रकार उस ईश्वर द्वारा भी भले ही देखने में भिन्न -भिन्न लोगों के साथ भिन्न - भिन्न व्यवहार नजर आये मगर उसका भी केवल एक ही उद्देश्य होता है और वह है, कैसे भी हो मगर जीव का कल्याण करना।
सुदामा को अति दरिद्र बनाके तारा तो राजा बलि को सम्राट बनाकर तारा। शुकदेव जी को परम ज्ञानी बनाकर तारा तो विदुर जी को प्रेमी बना कर। पांडवों को मित्र बना कर तारा व कौरवों को शत्रु बनाकर। स्मरण रहे, भगवान केवल क्रिया से भेद करते हैं भाव से नहीं।

Tuesday 7 November 2017

कैसा हो उपहार..

मार्गदर्शक चिंतन-

मूल्य उपहार का नहीं उसकी उपयोगिता का होता है। जिस प्रकार एक प्यासे व्यक्ति के लिए स्वर्ण अलंकारों और एक भूखे व्यक्ति के लिए स्वर्ण पात्रों का तब तक कोई मूल्य नहीं, जब तक उन्हें पानी और भोजन की प्राप्ति न हो जाए।
यह बात मायने नहीं रखती कि आपने सामने वाले को क्या दिया ? अपितु यह बात मायने रखती है कि वह वस्तु उसके किस काम आई। किसी गरीब बच्चे को किताब देने से ज्यादा श्रेष्ठ है, उसे इस काबिल बनाने का प्रयास किया जाए कि वह उस किताब को पढ़ भी सके।
किसी अंधे को लाठी पकडा देने से श्रेष्ठ है, वह उन हाथों का दर्शन कर सके जिसने उसे लाठी पकड़वानी चाही। अतः उपहार मूल्यवान ही हो यह जरुरी नहीं मगर उपयोगी हो यह जरुरी है। याद रखना निर्मल भाव के आगे किसी मूल्य की कोई कीमत भी नहीं।