भीष्म
पितामह ने सुनाई युधिषिठर को
ये कथा ..
एक बार लक्ष्मी जी ने मनोहर रूप यानि बहुत ही अध्भुत रूप धारण करके गायों के एक झुंड में प्रवेश कर लिया और उनके इस सुंदर रूप को देखकर गायों ने पूछा कि, देवी . आप कौन हैं और कहां से आई हैं? गायों ने ये भी कहा कि आप पृथ्वी की अनुपम सुंदरी लग रही हो . तब गायों ने एकदम से कहा कि सच सच बताओ, आखिर तुम कौन हो और तुम्हे कहाँ जाना है ?
तब
लक्ष्मी जी ने विन्रमता से
गायों से कहा कि .
तुम्हारा
कल्याण हो .
असल
में मैं इस जगत में अर्थात
संसार में लक्ष्मी के नाम से
प्रसिद्ध हूं और सारा जगत मेरी
कामना करता है .
मुझे
ही पाना चाहता है .
मैंने
दैत्यों को छोड़ दिया था और
इसलिए वे सदा के लिए नष्ट हो
गए .
इतना
ही नहीं मेरे आश्रय में रहने
के कारण इंद्र,
सूर्य,
चंद्रमा,
विष्णु,
वरूण
तथा अग्नि आदि सभी देवता सदा
के लिए आनंद भोग रहे हैं। इसके
बाद माँ लक्ष्मी ने कहा कि
जिनके शरीर में मैं प्रवेश
नहीं करती,
वे
सदैव नष्ट हो जाते हैं और अब
मैं तुम्हारे शरीर में ही
निवास करना चाहती हूं .
लेकिन
इसके बाद भी कथा अभी खत्म नहीं
हुई क्योंकि गायों ने अब तक
माँ लक्ष्मी को अपनाया नहीं
था .देवी
लक्ष्मी की इन बातों को सुनने
के बाद गायों ने कहा कि तुम
बड़ी चंचल हो,
इसलिए
कभी कहीं भी नहीं ठहरती .
इसके
इलावा तुम्हारा बहुतों के
साथ भी एक सा ही संबंध है,
इसलिए
हमें तुम्हारी इच्छा नहीं है
.
तुम्हारी
जहां भी इच्छा हो तुम चली जाओ
.
तुमने
हमसे बात की,
इतने
में ही हम अपने आप को तुम्हारी
कृतार्थ यानि तुम्हारी आभारी
मानती हैं .
गायों
के ऐसा कहने पर लक्ष्मी ने कहा
,
कि
ये तुम क्या कह रही हो ?
मैं
दुर्लभ और सती हूं अर्थात मुझे
पाना आसान नहीं ,पर
फिर भी तुम मुझे स्वीकार नहीं
कर रही,
आखिर
इसका क्या कारण है ?
यहाँ
तक कि देवता,
दानव,
मनुष्य
आदि सब कठोर तपस्या करके मेरी
सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते
हैं .
अत:तुम
भी मुझे स्वीकार करो .
वैसे
भी इस संसार में ऐसा कोई नहीं
जो मेरा अपमान करता हो .
ये
सब सुन कर गायों ने कहा ,
कि
हम तुम्हारा अपमान या अनादर
नहीं कर रही,
केवल
तुम्हारा त्याग कर रही हैं
और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि
तुम्हारा मन बहुत चंचल है .
तुम
कहीं भी जमकर नहीं रहती अर्थात
एक स्थान पर नहीं रुक सकती .
इसलिए
अब बातचीत करने से कोई लाभ
नहीं .
तो
तुम जहां जाना चाहती हो,
जा
सकती हो.
इस
तरह से गायों ने माँ लक्ष्मी
का त्याग कर दिया क्योंकि
गायों को मालूम था कि लक्ष्मी
कभी किसी एक के पास नहीं रहती
बल्कि पूरे संसार में घूमती
है .
पर
फिर भी माँ लक्ष्मी ने हार
नहीं मानी और इतना सब होने के
बाद भी वार्तालाप ज़ारी रखी
.अब
आखिर में माँ लक्ष्मी ने कहा
,
गायों.
तुम
दूसरों को आदर देने वाली हो
और यदि तुमने ही मुझे त्याग
दिया तो सारे जगत में मेरा
अनादर होने लगेगा .
इसलिए
तुम मुझ भी पर अपनी कृपा करो
.
मैं
तुमसे केवल सम्मान चाहती हूँ.
तुम
लोग सदा सब का कल्याण करने
वाली,
पवित्र
और सौभाग्यवती हो .
तो
मुझे भी बस आज्ञा दो,
कि
मैं तुम्हारे शरीर के किस भाग
में निवास करूं?
इसके
बाद गायों ने भी अपना मन बदल
लिया और गायों ने कहा,
हे
यशस्विनी .
हमें
तुम्हारा सम्मान आवश्य ही
करना चाहिए .
इसलिए
तुम हमारे गोबर और मूत्र में
निवास करो,
क्योंकि
हमारी ये दोनों वस्तुएं ही
परम पवित्र हैं।
तब
माँ लक्ष्मी ने कहा,
धन्यवाद्
और धन्यभाग मेरे,
जो
तुम लोगों ने मुझ पर अनुग्रह
किया यानि मेरे प्रति इतनी
कृपा दिखाई.
मैं
आवश्य ऐसा ही करूंगी .
मैं
सदैव तुम्हारे गोबर और मूत्र
में ही निवास करूंगी .
सुखदायिनी
गायों अर्थात सुख देने वाली
गायों .
तुमने
मेरा मान रख लिया ,
अत:
तुम्हारा
भी कल्याण हो .
बस
यही वजह है कि गाय की इन दो
वस्तुओ को लक्ष्मी का ही रूप
समझा जाता है .
इस
कथा को पढ़ने के बाद ये तो समझ
आ ही गया होगा कि गाय का धार्मिक
ग्रंथो के अनुसार कितना महत्व
है .
साथ
ही ये भी उतना ही सत्य है कि
ग्रंथो में कभी झूठ नहीं लिखा
होता .
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