।।
कैसे बने गरुड़देव,
विष्णु
जी के वाहन ।।
भगवान
विष्णु के भक्तों में गरुड़देव
का स्थान अन्यतम है। क्योंकि
उन्हें स्वयं भगवान की सवारी
बनने का सौभाग्य प्राप्त
है।
कश्यप ऋषि और विनता के पुत्र गरुड़देव पक्षियों के राजा हैं। उन्होंने अपनी माता को दासत्व से मुक्त कराने के लिए इंद्र सहित समस्त देवताओं को युद्ध में परास्त किया और उनसे अमृत छीन लिया था। बाद में भगवान विष्णु के बीच बचाव करने के बाद उन्होंने देवताओं को वापस अमृत पाने का रास्ता बताया।
उनकी ताकत और बुद्धिमत्ता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने गरुड़देव से वरदान मांगने को कहा, तो गरुड़देव ने भगवान विष्णु का वाहन बनने का वरदान मांगा। जिससे श्रीहरि उनपर और ज्यादा प्रसन्न हुए और उन्हें अपने भक्तों में प्रथम स्थान दिया।
इसीलिए कहा जाता है, कि जहां गरुड़ पर सवार श्रीहरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, वहां समस्त शुभत्व का निवास होता है और संपूर्ण धन धान्य और समृद्धि स्थायी रुप से निवास करती है। क्योंकि माता लक्ष्मी कभी श्रीहरि और भक्तराज गरुड़ का साथ नहीं छोड़ती हैं।
कश्यप ऋषि और विनता के पुत्र गरुड़देव पक्षियों के राजा हैं। उन्होंने अपनी माता को दासत्व से मुक्त कराने के लिए इंद्र सहित समस्त देवताओं को युद्ध में परास्त किया और उनसे अमृत छीन लिया था। बाद में भगवान विष्णु के बीच बचाव करने के बाद उन्होंने देवताओं को वापस अमृत पाने का रास्ता बताया।
उनकी ताकत और बुद्धिमत्ता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने गरुड़देव से वरदान मांगने को कहा, तो गरुड़देव ने भगवान विष्णु का वाहन बनने का वरदान मांगा। जिससे श्रीहरि उनपर और ज्यादा प्रसन्न हुए और उन्हें अपने भक्तों में प्रथम स्थान दिया।
इसीलिए कहा जाता है, कि जहां गरुड़ पर सवार श्रीहरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, वहां समस्त शुभत्व का निवास होता है और संपूर्ण धन धान्य और समृद्धि स्थायी रुप से निवास करती है। क्योंकि माता लक्ष्मी कभी श्रीहरि और भक्तराज गरुड़ का साथ नहीं छोड़ती हैं।
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