भगवान नारायण द्वारा श्रीराधा की स्तुति
नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।
रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।
रासमण्डल
में निवास करने वाली हे परमेश्वरि
!
आपको
नमस्कार है। श्रीकृष्ण को
प्राणों से भी अधिक प्रिय हे
रासेश्वरि !
आपको
नमस्कार है।
नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।
ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।।
ब्रह्मा,
विष्णु
आदि देवताओं के द्वारा वन्दित
चरणकमल वाली हे त्रैलोक्यजननी
!
आपको
नमस्कार है। हे करुणार्णवे
!
आप
मुझ पर प्रसन्न होइए।
नम: सरस्वतीरूपे नम: सावित्रि शंकरि।
गंगापद्मावनीरूपे षष्ठि मंगलचण्डिके।।
हे
सरस्वतीरूपे !
आपको
नमस्कार है। हे सावित्रि !
हे
शंकरि !
हे
गंगा-पद्मावतीरूपे
!
हे
षष्ठि !
हे
मंगलचण्डिके !
आपको
नमस्कार है।
नमस्ते तुलसीरूपे नमो लक्ष्मीस्वरुपिणी।
नमो दुर्गे भगवति नमस्ते सर्वरूपिणी।।
हे
तुलसीरूपे !
आपको
नमस्कार है। हे लक्ष्मीस्वरूपिणि
!
आपको
नमस्कार है। हे दुर्गे !
हे
भगवति !
आपको
नमस्कार है। हे सर्वरूपिणि
!
आपको
नमस्कार है।
मूलप्रकृतिरूपां त्वां भजाम: करुणार्णवाम्।
संसारसागरादस्मदुद्धराम्ब दयां कुरु।। (श्रीमद्देवीभागवत ९।५०।४६-५०)
हे
अम्ब !
मूलप्रकृतिस्वरूपिणी
तथा करुणासिन्धु आप भगवती की
हम उपासना करते हैं,
संसार-सागर
से हमारा उद्धार कीजिए,
दया
कीजिए।
स्तोत्र पाठ का फल
जो
मनुष्य तीनों कालों (प्रात:,
मध्याह्न
और सायं)
में
श्रीराधा का स्मरण करते हुए
इस स्तोत्र का पाठ करता है,
उसके
लिए कभी कोई भी वस्तु अलभ्य
(दुर्लभ)
नहीं
रहती और देह-त्याग
के बाद वह गोलोकधाम में रासमण्डल
में निवास करता है।
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