Wednesday 30 August 2017

क्या होता है विचारों का जीवन पर असर..

मार्गदर्शक चिंतन-

जैसे वीज के अभाव में वृक्ष का जन्म नहीं हो सकता, ठीक वैसे ही उच्च विचारों के अभाव में उच्च कर्म घटित नहीं हो सकता। शुभ कर्म और अशुभ कर्म दोनों कर्मों के पीछे जो कारण है वह विचार ही है। हमारे विचारों का स्तर जितना श्रेष्ठ और पवित्र होगा हमारे कर्म भी उतने ही श्रेष्ठ और पवित्र होंगे।
कोई चोर जब तक चोरी नहीं कर सकता, जब तक कि वह पहले उसका विचार न कर लें। अत: हमारा कोई भी कर्म कार्य करने से पहले विचारों में घटित हो जाता है। विचारों का स्तर हमारे संग पर निर्भर करता है। हमारी संगति जितनी अच्छी होगी हम उतने ही अच्छे विचारों के धनी होंगे।
जब तक हमारे विचार शुद्ध नहीं होंगे तब तक हमारे कर्म भी शुद्ध नहीं हो सकते। इसलिए विचारों को शुद्ध किये बिना कर्म की शुद्धि का प्रयास करना व्यर्थ है। जिसके विचार पवित्र हों उससे बुरा कर्म कभी हो ही नहीं सकता है।

Tuesday 29 August 2017

जीवन कैसे बनेगा आनंददायक..

मार्गदर्शक चिंतन-

जीवन में बुराई अवश्य हो सकती है मगर जीवन बुरा कदापि नहीं हो सकता। जीवन एक अवसर है श्रेष्ठ बनने का, श्रेष्ठ करने का, श्रेष्ठ पाने का। जीवन की दुर्लभता जिस दिन किसी की समझ में आ जाएगी उस दिन कोई भी व्यक्ति जीवन का दुरूपयोग नहीं कर सकता।
जीवन वो फूल है जिसमें काँटे तो बहुत हैं मगर सौन्दर्य की भी कोई कमी नहीं। ये और बात है कुछ लोग काँटो को कोसते रहते हैं और कुछ सौन्दर्य का आनन्द लेते हैं।

जीवन में सब कुछ पाया जा सकता है मगर सब कुछ देने पर भी जीवन को नहीं पाया जा सकता है। जीवन का तिरस्कार नहीं अपितु इससे प्यार करो। जीवन को बुरा कहने की अपेक्षा जीवन की बुराई मिटाने का प्रयास करो, यही समझदारी है।

Monday 28 August 2017

एक बेटे का अपने पिता को मार्गदर्शन..

मार्गदर्शक चिंतन-

श्रीमद भागवत जी में पिता आत्मदेव को उपदेश देते हुए गोकर्ण जी कहते हैं कि पिताजी दो प्रकार से ही सुखी हुआ जा सकता है। प्रथम तो विरक्त, यानि अपेक्षा रहित होकर, दूसरा मुनि बनकर। मुनेरेकान्त जीविनः।
मुनि का अर्थ घर-द्वार छोड़कर कहीं जंगल में जाकर बस जाना नहीं है। मुनि का अर्थ है मन का अनुमोदन कर लेना। अपने मन को साध लेना, मन को वश में कर लेना। मन ही जीव को नाना प्रकार के पापों और प्रपंचों में फ़साने वाला है।
इस मन को कितना भी प्राप्त हो जाए तो भी यह संतुष्ट नहीं होता। यह प्राप्त का स्मरण तो नहीं कराता अपितु जो प्राप्त नहीं है उस अभाव का बार- बार स्मरण कराता रहता है। इसलिए आवश्यक है कि सत्संग और महापुरुषों के आश्रय से तथा विवेक से इस मन की चंचलता पर अंकुश लगाया जाए।

Sunday 27 August 2017

समस्या से भागना ही समस्या है..

मार्गदर्शक चिंतन-

मानव जीवन में ना तो समस्याएं कभी खत्म हो सकती हैं और ना ही संघर्ष। समस्या में ही समाधान छिपा होता है। समस्या से भागना उसका सामना ना करना यह सबसे बड़ी समस्या है। छोटी- छोटी परेशानियां ही एक दिन बड़ी बन जाती हैं।
कुछ लोग सुबह से शाम तक परेशानियों का रोना ही रोते रहते हैं साथ ही ईश्वर को भी कोसते रहते हैं। जितना समय वो रोने में लगाते हैं उतना समय यदि बिचार करके कर्म करने में लगा दें तो समस्या ही हल हो जायेगी। 
ईश्वर ने हमें बहुत शक्तियाँ दी हैं, बस उनका प्रयोग करने की जरुरत है। सोई हुई शक्तियों को कोई जगाने वाला चाहिए। कृष्ण आकर अर्जुन को ना समझाते तो वह कभी भी ना जीत पाता। सब कुछ उसके पास था पर वह समस्या से भाग रहा था तुम्हारी तरह। 

Saturday 26 August 2017

जीवन में सुखी रहने का मंत्र..

मार्गदर्शक चिंतन-

श्रीमद भागवत जी में पिता आत्मदेव को उपदेश देते समय गोकर्ण जी ने जो ज्ञान दिया है, वह बड़ा अद्भुत है। संसार में प्रत्येक प्राणी सुख की ही तलाश में है। वह चाहे पद- धन-प्रतिष्ठा या कुछ और भी हो सबके मूल में सुख की ही कामना है।
गोकर्ण जी कहते हैं पिताजी दो तरह के लोग ही वास्तव में सुख का अनुभव कर सकते हैं। पहला जो विरक्त है। यहाँ विरक्तता का अर्थ सब कुछ छोड़कर जंगल में चले जाना नहीं है। विरक्तता का अर्थ है किसी से किसी भी प्रकार की अपेक्षा ना रखना।
हमें कोई नहीं रुलाता, हमारी चाह हमें रुलाती है। हमें कोई परेशान नहीं करता हम अपनी आसक्ति और इच्छा के कारण परेशान रहते हैं। जिस दिन आसक्ति का त्याग कर दिया, फिर कोई हमें दुःखी नहीं कर सकता। आशा छोड़ कर देखो तो एक बार जिसके कारण आप बार दुःखी हो रहे हो। 

Thursday 24 August 2017

आज क्यों परेशान है आदमी...

मार्गदर्शक चिंतन-

दुनिया में आदमी को और कोई इतना परेशान नहीं करता जितना उसकी स्वयं की कमजोरी, गलत आदतें, व्यसन, उसके स्वयं के दुर्गुण। संसार की सारी बाधाओं ने आदमी को उतना दुःखी नहीं किया होगा जितना कि स्वयं की कमजोरियों ने।
कभी किसी दूसरे व्यक्ति ने आपको आपकी कमजोरियों की ओर ध्यान दिलाया भी होगा तो उसका आभार मानने की बजाय आप उस पर क्रुद्ध हुए होंगे और आज तक उसे अपना शत्रु भी बना रखा होगा। 
इस दुनिया का बहुत मुश्किल कार्य अगर कोई है तो वह है स्वयं की कमजोरियों को पहचान लेना। आत्म निरीक्षण बड़ा कठिन है। स्वयं को दोषों को दूर करने का काम कोई साहसी ही कर सकता है। जीवन को सफलता और आनंद की ओर ले जाना है तो अपनी कमजोरियों की लिस्ट बनायें और आज से ही उन्हें दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएँ।

Tuesday 22 August 2017

आत्म विश्वास से हर बाधा को दूर करें..

मार्गदर्शक चिंतन-

लक्ष्य जितना बड़ा होगा मार्ग भी उतना बड़ा होगा और बाधायें भी अधिक आएँगी। सामान्य आत्म विश्वास नहीं बहुत उच्च स्तर का आत्म विश्वास इसके लिए चाहिए। एक क्षण के लिए भी निराशा आयी वहीँ लक्ष्य मुश्किल और दूर होता चला जायेगा।
अगर मनुष्य का सच्चा साथी और हर स्थिति में उसे संभालने वाला अगर कोई है तो वह आत्मविश्वास ही है। आत्मविश्वास हमारी बिखरी हुई समस्त चेतना और ऊर्जा को इकठ्ठा करके लक्ष्य की दिशा में लगाता है।
दूसरों के ऊपर ज्यादा निर्भर रहने से आत्मिक दुर्बलता तो आती है। साथ ही छोटी छोटी ऐसी बाधायें आती हैं जो पल में तुम्हें विचलित कर जाती हैं। स्वयं पर ही भरोसा रखें। दुनिया में ऐसा कुछ नहीं जो तुम्हारे संकल्प से बड़ा हो।

Monday 21 August 2017

इंसान को समय-समय पर अपने अंदर भी झांकना चाहिए..

मार्गदर्शक चिंतन-

यदि इंसान अपने देखने के भीतरी दृष्टिकोण को बदल ले तो बाहर सब कुछ अच्छा और सुन्दर नजर आएगा। जैसा हम स्वयं होते हैं बैसा ही हमें सर्वत्र नजर आने लगता है। सीधी सी बात है जैसा आँखों पर चश्मा लगा होगा बैसा ही नजर आने लगेगा।
संसार में बहुत लोगों को केवल बुराईयाँ, दोष, गंदगी और गलत चीजें ही नजर आती है। यह सब उनकी कट्टर धारणा के कारण होता है, स्वयं श्री कृष्ण भी सामने आकर प्रकट हो जाएँ तो उनमें भी सबसे पहले इन्हें दोष ही नजर आएगा।
संसार में अच्छे, सज्जन, सत्कर्मी और श्रेष्ठ लोग भी बहुत हैं। धरती पर कई लोग तो ईस्वर चिन्तन करते-करते तीर्थ जैसे ही हो गए हैं। दोष दर्शन की जगह हम सबमें गुण दर्शन करने लग जाएँ तो हमारा स्वयं का विकास तो होगा ही दुनिया भी बड़ी खूबसूरत नजर आने लगेगी।

Sunday 20 August 2017

मन के हारे हार है..

मार्गदर्शक चिंतन-

मन के हारे हार है मन के जीते जीत। यह बात कई बार आपके मुख से निकली होगी और बहुधा दूसरों के द्वारा भी सुनी होगी। जीवन का बहुत बड़ा रहस्य इस साधारण सी लोकोक्ति में छिपा है। 
जिसका मन हार जाता है फिर चाहे दुनिया के कितने भी साधन और शक्ति उसके पास क्यों ना हो वह जरूर पराजित होता है। कुछ ना होते हुए भी मनोबल जिसका बना हुआ है वह एक दिन जरूर विजयी होता है। इंसान की वास्तविक ताकत तो उसका स्वयं का आत्मबल ही है। मनोबल से हीन व्यक्ति तो निर्जीव ही है।
शरीर कितना भी हृष्ट पुष्ट हो, आसान सा कार्य हो लेकिन शरीर को कार्य करने के लिए प्रेरित करने वाला तो मन ही है। सारे कार्य मन के द्वारा ही तो संचालित होते हैं। मन से कभी भी हार मत मानना, नहीं तो आसान सा जीवन कठिन हो जाएगा

Saturday 19 August 2017

क्या है मानव जीवन का उद्देश्य..

मार्गदर्शक चिंतन-

यह मानव जीवन कर्म जीवन है। यह ना केवल स्वयं के कल्याण और उत्थान के लिए है अपितु और भी बहुत लोगों के जीवन का भी भला करने के लिए है। 
जिस प्रकार एक पिता उद्यमी पुत्र के प्रति विशेष प्रेम रखता है और उसकी प्रशंसा भी चहुँओर करता है। बैसे ही प्रभु को भी कर्मशील व्यक्ति बहुत प्रिय है। कर्म करते-करते ज्ञान को अनुभव करो। कई लोग सोचते हैं कि संतोष माने कर्म ना करना, जो है सो ठीक है।
संतोष रखने का अर्थ यह है कि जब मेंहनत करने पर किसी कारणवश हम सफल ना हों या कम सफल हों तब उस समय मानसिक विक्षोभ के ऊपर काबू किया जाए। चिंता, दुःख, निराशा, स्ट्रेस, और डिप्रेशन से बचने के लिए भगवान की इच्छा समझकर संतोष किया जाए। लेकिन स्मरण रखना प्रभु को अकर्मण्य बिलकुल भी प्रिय नहीं नहीं है।

Thursday 17 August 2017

क्या है मन को नियंत्रित रखने की खुराक..

मार्गदर्शक चिंतन-

मन कभी भी ख़ाली नहीं बैठ सकता, कुछ ना कुछ करना इसका स्वभाव है, इसे काम चाहिए। अच्छा काम करने को ना मिला तो ये बुरे की तरफ भागेगा। मन खाली हुआ, बस उपद्रव प्रारम्भ कर देगा। लड़ाई -झगड़ा, निंदा-आलोचना, विषय- विलास ऐसी कई गलत जगह पर यह आपको ले जायेगा जहाँ पतन निश्चित है।
पतन एक जन्म का हो तो भी कोई बात नहीं, ऐसे कई अपराध और गलत कर्म करा देता है जिसके प्रारब्ध फल को भुगतने के लिए कई कई जन्म कम पड़ जाते हैं। 
मन को सृजनात्मक और रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखिये। इससे आपका आत्मिक, साथ में भौतिक विकास भी होगा। मन सही दिशा में लग गया तो जीवन मस्त (आनंदमय) हो जायेगा। नहीं तो अस्त-व्यस्त और अपसेट होने में भी देर ना लगेगी।

Wednesday 16 August 2017

सीधे और सरल जीवन में ही आनंद होता है..

मार्गदर्शक चिंतन-

संसार में बहुधा यह बात कही और सुनी जाती है कि व्यक्ति को ज्यादा सीधा और सरल नहीं होना चाहिए। सीधे और सरल व्यक्ति का हर कोई फायदा उठाता है। यह भी लोकोक्ति कही जाती है कि टेढे वृक्ष को कोई हाथ भी नहीं लगाता सीधा वृक्ष ही काटा जाता है।
टेढ़े लोगों से दुनिया दूर भागती हैं वहीँ सीधों को परेशान किया जाता है। तो क्या फिर सहजता और सरलता का त्याग कर टेढ़ा हुआ जाए ? पर यह बात जरूर समझ लेना दुनिया में जितना भी सृजन हुआ है वह टेढ़े लोगों से नहीं सीधों से ही हुआ है। 
कोई सीधा पेड़ कटता है तो लकड़ी भी भवन निर्माण में या भवन श्रृंगार में उसी की ही काम आती है। मंदिर में भी जिस शिला में से प्रभु का रूप प्रगट होता है वह टेढ़ी नहीं कोई सीधी शिला ही होती है। जिस वंशी की मधुर स्वर को सुनकर हमें आंनद मिलता है वो भी किसी सीधे बांस के पेड़ से ही बनती है।

Monday 14 August 2017

दूसरों की कमियां देखने से अपनी संकल्प शक्ति कम होती है...

मार्गदर्शक चिंतन-

पूरे दिन दूसरों की कमियों की स्वभाव की चर्चा करते-करते हम अपने समय का तो अपव्यय करते ही हैं इससे हमारी स्वयं की संकल्प शक्ति भी कमजोर हो जाती है। गलत आचरण वाले लोगों की चर्चा करते-करते मन भी यह धारणा निर्मित कर लेता है कि दुनिया ख़राब लोगों से भरी पड़ी है वो भी असत मार्ग पर चले।
अपने जीवन को शुभ उद्देश्यों और शुभ संकल्पों के लिए तैयार करो। जो व्यक्ति सृजनात्मक , रचनात्मक कार्य में लग जाते हैं उन्हें दूसरों की बुराई और दोष देखने का वक़्त ही नहीं मिलता। 
दुनिया में जितने भी महान व्यक्ति जो वैज्ञानिक, कलाकार, चित्रकार, कवि, साहित्यकार और वैज्ञानिक हुए वो केवल इसीलिए सफल हो पाए क्योंकि वो प्रत्येक पल अपने अनुष्ठान में सतत संलग्न रहे। आप भी संसार को बहुत कुछ दे सकते हैं। क्या दे सकते है अब ये तो आप स्वयं ही जानते हैं।

Sunday 13 August 2017

सत्य जिसके पास है वो हार नहीं सकता...

मार्गदर्शक चिंतन-

मनुष्य जीवन से संघर्ष कभी भी खतम नहीं हो सकता। यह प्रत्येक घडी प्रत्येक पल चलता ही रहता है। बाहर और भीतर दोनों जगह थोड़े - थोड़े कुरुक्षेत्र के हालात बने ही रहते हैं। सब जीतना ही चाहते हैं , ऐसा कौन होगा जो हारना चाहे।
"
रामदिवत, वर्तितव्यम्। भगवान् राम जैसा व्यवहार जिसके जीवन में होगा वो कभी भी पराजित नहीं हो सकता। राम कौन हैं ? " रामो विग्रहवान धर्मः। भगवान राम धर्म के जीवंत स्वरूप् हैं। 
राम माने सत्य, शुचिता, पवित्रता, सहजता, उदारता, कर्तव्य परायणता, साधना। तो हारने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। स्मरण रखना सत्य जिसके पास है वो ना भीतर हार सकता और ना ही बाहर। असत्य के मार्ग पर चलने वाला वाला हारेगा तो पक्का, साथ ही सदैव कष्ट ही अनुभव करेगा।

Saturday 12 August 2017

प्रतिकुल परिस्थितियां ही वास्तविकता का ज्ञान कराती हैं..

मार्गदर्शक चिंतन-

जीवन की जो भी परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल नहीं रहीं, हमने चाहे कितना भी कष्ट उन क्षणों में क्यों ना पाया हो। लेकिन वस्तुतः सत्य यही है उन्हीं क्षणों ने हमें आगे बढ़ने को और जीवन के वास्तविक सत्य का अनुभव कराया होगा।
प्रतिकूल पलों में व्यक्ति के सोचने का और करने का एक अद्भुत स्तर हो जाता है। सम्मान भी आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करता है लेकिन कभी गहराई से बिचार करना, कोई आपके अस्तित्त्व को चुनौती दे तो आप पूरी निष्ठा से अपने आप को सिद्ध करने में लग जाते हो।
हम सड़क पर चलते हैं कितने भीड़ और वाहन चल रहे होते हैं फिर भी हम सावधानी पूर्वक अपनी गाड़ी को अपने गन्तव्य तक तो पहुँचा ही देते हैं। आदमी सदैव सोचता है मै कैसे करूँ समय मेरे अनुकूल नहीं है ? अवसरों का इंतिज़ार मत करो अवसरों का निर्माण करो।

Thursday 10 August 2017

अपनी शक्ति को पहचानें..

मार्गदर्शक चिंतन-

पानी को कितना भी गर्म कर लें पर वह थोड़ी देर बाद अपने मूल स्वभाव में आकर जायेगा शीतल हो जायेगा। इसी प्रकार हम कितने भी क्रोध में, भय में अशांति में रह लें थोड़ी देर बाद बोध में, निर्भयता में और प्रसन्नता में हमें आना होगा क्योंकि यही हमारा मूल स्वभाव है।
इतना ऊर्जा सम्पन्न जीवन परमात्मा ने हमें दिया है स्वयं का तो क्या लाखों-लाखों लोगों का कल्याण करने के निमित्त भी हम बन सकते है। जरुरत है स्वयं की शक्ति और स्वभाव समझने की। 
सबसे बड़ी अगर जीवन पथ में अगर कोई बाधा है तो वह है निराशा। हम थोड़ी देर में ही परिस्थिति के आगे घुटने टेककर उसे अपने ऊपर हावी कर लेते हैं। किसी संग दोष के कारण, किन्ही बातों के प्रभाव में आकर निराश हो जाना, यह संयोग जन्य स्थिति है। आनंद , प्रसन्नता, उत्साह, उल्लास और सात्विकता मूल स्वभाव तो हमारा यही ही है।

Wednesday 9 August 2017

बिना परिश्रम नहीं मिलती सफलता..

मार्गदर्शक चिंतन-

बिना परिश्रम किए कोई भी सफल नहीं हो सकता। आज का आदमी नाम तो चाहता है पर बिना काम किए। आदमी सोचता तो बहुत पर असफल हो जाने के डर से और मानसिक अकर्मण्यता के कारण वह कोई ठोस योजना नहीं बना पाता।
गीता में श्री कृष्ण यही कहते हैं कि अपने भाग्य से तुम्हें स्वयं ही लड़ना होगा। पुरुषार्थ के दम पर प्रारब्ध को बदलना होगा। जो आदमी अपने अंदर से ही असफल है वह सफल कैसे होगा ? ठोकरों से घवड़ाओ मत, वो तुम्हें गिराकर आगे बढ़ने के लिए तैयार कर रही हैं।
"जो मुस्कुरा रहा है, उसे दर्द ने पाला होगा.,जो चल रहा है, उसके पाँव में छाला होगा,बिना संघर्ष के इन्सान चमक नही सकता,जो जलेगा उसी दिये में तो उजाला होगा..

Tuesday 8 August 2017

कैसे बनाए जीवन को आनंदमय..

मार्गदर्शक चिंतन-

जीवन प्रसन्नता और आनन्द से जिया जा सकता है लेकिन देखा जाए तो लोग अकारण अपने स्वभाव और व्यवहार से इसे अशांत और क्लेशमय बना रहे हैं। छोटी - छोटी बातें जिनको प्रेमपूर्ण तरीके से सुलझाया जाया सकता है उन्हें अहम की बजह से लोग और अधिक उलझा देते हैं।
धैर्य का तो लगता है जैसे लोगों में अकाल सा आ गया हो। जबकि जीवन में धैर्य नाम का सदगुण नहीं है तो पल-पल इंसान का स्वयं तो परेशानी में बीतता है अपितु वह सम्पूर्ण वातावरण को भी परेशान सा कर देता है। 
आप स्थिति- परिस्थिति को नहीं बदल सकते हो लेकिन अपनी प्रतिक्रिया को जरूर बदल सकते हो। आपकी प्रतिक्रिया गीत के रूप में भी हो सकती है और गाली के रूप में भी, यह तो आपके ऊपर ही निर्भर है। बिचार करें, कहीं आप भी तो अज्ञानवश अकारण क्लेशों को तो जन्म नहीं दे रहे हो ?

Monday 7 August 2017

जानिए मानव जीवन का महत्व..

मार्गदर्शक चिंतन-

जीवन बड़ा अनंत है, कुछ भी तो ऐसा नहीं जो प्राप्त ना किया जा सके। प्रत्येक जीवन ईश्वर की अनुपम देन और कृपा प्रसाद है। 
यहाँ हर कोई साधारण से असाधारण होने की पात्रता रखता है। यहाँ अनेकों ऐसे उदाहरण है जिन्होंने शून्य से यात्रा प्रारम्भ की और फिर शिखर तक जा पहुंचे। उन्हें भगवान ने कोई अलग से शक्ति नहीं दी ये सब करने के लिए। परन्तु वो प्रत्येक क्षण अपने उद्देश्य में सतत संलग्न रहे।
मानव जीवन अपने आप में बड़ा शक्ति संपन्न है। आवश्यकता है स्वयं की शक्तियों को पहचानने की, एक दृण संकल्प की, एक जूनून की। नकारात्मक बिचारों को त्यागकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करो। देखो सफलता तुम्हारा आलिंगन करने को तैयार खड़ी है।