
जो सरलता असत्य का विरोध न कर सके वह समाज व स्वयं दोनों के लिए बड़ी ही घातक है। अगर झूठ और अन्याय को सह लेना ही सरलता होती तो फिर भगवान् राम को कभी भी " शील संकोच सिन्धु रघुराई "" न कहा जाता।
श्रीराम सरल अवश्य थे लेकिन केवल सुग्रीव के लिए, बालि के लिए नही, केवल अहिल्या के लिए, ताड़का के लिए नही, केवल विभीषण के लिए, रावण के लिए कदापि नही।
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