?यह
दुनियाँ अगर नरक है तो केवल
उनके लिए जो नारायण को भूले
हुए हैं। यह दुनियाँ स्वर्ग
अवश्य है मगर वो भी केवल उनके
लिए जिनका प्रभु से प्रेम रुपी
सम्बन्ध बन चुका है। जिसे
प्रभु की सत्ता पर जितना कम
विश्वास होगा वह उतना ही दुखी
होगा। ?हमारा
सुख इस बात पर निर्भर नही करता
कि हमारे पास कितनी सम्पत्ति
है अपितु इस बात पर निर्भर
करता है कि हमारे पास कितनी
सन्मति है। स्वर्ग का अर्थ
वह स्थान नही जहाँ सब सुख हों
अपितु वह स्थान है जहाँ सभी
खुश रहते हों। ? भक्ति
हमें सम्पत्ति तो नहीं देती
पर प्रसन्नता जरुर देती है।
प्रसन्नता से बढकर कोई स्वर्ग
नही और निराशा से बढकर दूसरा
कोई नरक भी तो नही है
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