भगवान्
विष्णु ने लक्ष्मी जी की अचल
स्थिरता हेतु निम्न उपाय बताये
है:

➡जहां,
शंख
ध्वनि,
भगवान्
शिव की पूजा,
ब्राह्मण
भोजन तथा तुलसी नहीं होती,
वहाँ
लक्ष्मी जी का वास नहीं होता
हैं।
➡जहाँ
मेरी तथा मेरे भक्त की निंदा
होती हैं,
वहाँ
से लक्ष्मी रुष्ट हो कर चली
जाती हैं।
➡जो
मनुष्य मेरे भक्ति से रहित
हैं तथा एकादशी तथा मेरे जन्मदिन
को भोजन करता हैं,
वहाँ
से भी लक्ष्मी चली जाती हैं।
➡जो
व्यक्ति मेरे नाम का तथा अपनी
कन्या का विक्रय करता हैं,
अतिथि
भोजन नहीं करते हैं,
वहाँ
से भी लक्ष्मी चली जाती हैं।
➡जो
ब्राह्मण अशुद्ध ह्रदय वाला,
क्रूर,
हिंसक,
दूसरों
की निंदा करने वाला,
व्रत-उपवास
तथा संध्या वंदन न करने वाला,
होता
हैं उसके घर से भी लक्ष्मी चली
जाती हैं।
➡जो
नखों से निष्प्रयोजन अंग
तोड़ता हैं या नखों को खुरेद्ता
रहता हैं,
जिसके
यहाँ से ब्राह्मण निराश हो
कर चला जाये,
उस
का भी लक्ष्मी जी त्याग कर
देती हैं।
➡जो
ब्राह्मण दिन में मैथुन करता
हैं,
सूर्योदय
के समय भोजन करता हैं तथा दिन
में शयन करता हैं उस के यहाँ
से लक्ष्मी चली जाती हैं।
➡जो
ब्राह्मण आचार विहीन,
दीक्षा
हीन हैं उस के घर से भी लक्ष्मी
जी चली जाती हैं।
➡जो
नग्न हो कर अथवा भीगे पैर सोता
हैं तथा वाचाल कि भाति निरंतर
बोलता ही रहता हैं,
वहाँ
से भी लक्ष्मी जी चली जाती
हैं।
➡जो
व्यक्ति ब्राह्मण की निंदा
करते हैं तथा द्वेष भाव रखते
हैं,
अन्य
प्राणियों के प्रति दया भाव
नहीं रखता,
जीवों
की हिंसा करता हैं,
उसके
घर का भी लक्ष्मी जी त्याग कर
देती हैं।
➡जिस
जिस स्थान पर भगवान् विष्णु
की पूजा अर्चना होती हैं,
संकीर्तन
आदि होता हैं,
भगवती
लक्ष्मी उस स्थल का कभी त्याग
नहीं करती हैं।
➡जहाँ
श्री कृष्ण तथा उनके भक्तों
का यशोगान होता हैं,
वहाँ
से लक्ष्मी जी कभी अंतर्धान
नहीं होती हैं।
➡जिस
स्थल पर शालग्राम,
तुलसीदल
तथा शंख रहते हैं,
वहाँ
पर लक्ष्मी जी सर्वदा निवास
करती हैं।
➡जहाँ
शिव-लिंग
की पूजा तथा भगवती दुर्गा का
नाम कीर्त्तन होता हैं,
वहाँ
से भी लक्ष्मी जी कही नहीं
जाती।
➡जहाँ
ब्राह्मणों की सेवा होती हैं,
उन्हें
भोजन कराया जाता हैं,
वहाँ
से भी लक्ष्मी जी कही नहीं
जाती हैं।
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