Wednesday 6 December 2017

जानिए क्या है भगवान कृष्ण में विशिष्टता..

मार्गदर्शक चिंतन-

विशिष्टता में शिष्टता, महानता में सहजता, उच्चता में उदारता, विषमता में समता, व्यवहार में मृदुता व प्रतिकूलताओं में धैर्य, यही तो कृष्ण होने की परिभाषा है। जीवन की सम्पूर्णता का नाम ही तो कृष्ण है।जीवन की ऐसी कोई सम्भावना नहीं जो कृष्ण में आकर पूर्ण न हुई हो।
युद्ध के मैदान में शस्त्रकार, कुरुक्षेत्र के मैदान में शास्त्रकार तो असंख्य गोपियों के मध्य में नृत्यकार की भूमिका निभाना उनके बहु आयामी व्यक्तित्व को ही दर्शाता है। कृष्ण अर्थात एक ऐसा जीवन जहाँ न पाने का निषेध है न खोने का भय।
जहाँ न राजसी सुखों का परित्याग है न विलासिता की इच्छा और जहाँ न किसी से द्वेष है न अपनों का मोह। कृष्ण न बन सको कोई बात नहीं कृष्ण के बन जाओ 

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