मार्गदर्शक चिंतन-
मधुर बोलना अच्छी बात है मगर मधुरता के लिए झूठ बोलना कदापि अच्छा नहीं है। दूसरों को प्रसन्न रखने के लिए बोला गया स्वार्थवश झूठ अपने व दूसरे दोनों के कल्याण में अति बाधक सिद्ध होता है।
शास्त्रों का आदेश है कि " ब्रुयात सत्यम प्रियम " अर्थात प्रिय और मधुर ही बोलो लेकिन केवल मधुर ही नहीं अपितु सत्य भी बोलो। अपनी प्रकृति को इस तरह बनाओ कि लोगों को तुमसे सत्य कहने में संकोच न करना पड़े और झूठ कहने का साहस भी न हो।
जो लोग मधुर सुनना तो पसंद करते हैं मगर सत्य सुनने का साहस नहीं जुटा पाते वो लोग आत्मोन्नति से भी वंचित रह जाते हैं। अतः मधुर प्रिय ही नहीं सत्यप्रिय भी बनो।
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