Tuesday 26 December 2017

कब बोला जाए और कितना बोला जाए ?

मार्गदर्शक चिंतन-

न बोलना बड़ी बात है और न चुप रहना बड़ी बात है मगर कब बोलना और कब चुप रहना इसका विवेक रखना ही बड़ी बात है।
अगर बोलना ही बड़ी बात होती तो दुनिया का हर वाचाल मनुष्य प्रशंसा का पात्र होता एवं अनावश्यक बोलने वाली द्रौपदी को कभी भी महाभारत के लिए जिम्मेदार न ठहराया जाता।
इसी प्रकार केवल चुप रहना ही बड़ी बात होती तो भरी सभा में अपनी कुलवधू का अपमान होते देखकर भी मौन साधने वाले पितामह भीष्म को कभी मंत्री बिदुर द्वारा, कभी भगवान श्रीकृष्ण द्वारा तो कभी समाज द्वारा न कोसा गया होता।

अतः कब बोला जाए और कितना बोला जाए ? व कब चुप रहा जाए और कब तक चुप रहा जाए तथा कितना चुप रहा जाए ? जिसे इन बातों को समझने का विवेक आ गया निश्चित ही उसने एक शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण जीवन की नीव भी रख ली।

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