Sunday 31 December 2017

जीवन आनंद का मंत्र...

मार्गदर्शक चिंतन-

ऐसी बात नहीं है कि आदमी दुखों व क्लेशों से मुक्त नहीं होना चाहता हो। वह अतिशीघ्र इन द्वंदों से छुटकारा और जीवन में परिवर्तन चाहता है मगर मन बदलकर नहीं मन्त्र बदलकर। आज का आदमी हर समस्या के लिए मन्त्र चाहता है। 
मन्त्र में भी उसे ज्यादा विश्वास नहीं है मगर वो उस समाधान से बचना चाहता है जो यथार्थ में होना चाहिए। आदमी की चतुराई तो देखो, पूरा दिन बैठे- बैठे बात निकालकर निकाल देता है और फिर कहता फिरता है कि हमें कोई ऐसा मन्त्र या दवा बतादे जिससे दिन में भूख लग जाये और रात में नींद आ जाए।
इसका एक ही मन्त्र है और वो है " परिश्रम " उन लोगों से जाकर पता करो जो सड़क पर बड़ी गहरी नीद में सोते हैं। वो किसी मन्त्र का जप नही करते, उनका दिन भर का परिश्रम ही उनकी भूख व नींद का कारण है। अतः मन बदलने का प्रयास करो मन्त्र बदलने का नहीं।

Thursday 28 December 2017

क्या है सरल-सहज होने का अर्थ..

मार्गदर्शक चिंतन-

जीतना सरल है, हारना सरल है। पाना सरल है, खोना सरल है। जीना सरल है व मरना भी सरल है मगर जीवन में सरल होना ही सबसे कठिन है। हम जिन्दगी में एक अच्छे विचारक बन जाते हैं, एक अच्छे व्यवसायी बन जाते हैं। कई पदक विजेता बन जाते हैं, एक अच्छे इंजीनियर, डाक्टर सब बन जाते हैं, बस केवल सरल ही नहीं बन पाते।
सब बन गये और सरल न बन पाए तो समझ लेना जीवन में एक बड़ी चूक रह गई।
सरल होने का अर्थ किसी को जवाब न देना तो नहीं हाँ सोच समझ कर जवाब देना जरुर है।
अगर आप की ख्वाहिश जहां में छा जाने की है तो याद रखना सब बन सको या न बन सको मगर सरल बनने का प्रयास जरुर करना। सहजता ही सबसे बड़ी सभ्यता है। जो शिष्ट नहीं है वो कभी विशिष्ट नहीं बन सकता।

Wednesday 27 December 2017

कैसी है श्रीराधारानी की कृपा और करुणा..

मार्गदर्शक चिंतन-

श्री राधा रानी जी कृपा से परिपूर्ण हैं। करुणा तो किसी के भी ह्रदय में जागृत हो सकती है मगर कृपा सब के बस की बात नहीं, वह तो हमारी किशोरी जू ही जानती हैं। करुणा और कृपा के बीच के भेद को थोडा समझ लेना होगा।
किसी गिरे हुए को देख कर मन में दया का भाव उत्पन्न होना, उसकी ऐसी दुर्दशा देख कर मन का व्यथित हो जाना, यह करुणा है। और उस गिरे हुए को हाथ पकड़ कर उठाना, उसकी यथासंभव सहायता करना और उसे अपने गंतव्य (लक्ष्यतक पहुंचा देना, यह कृपा है।
भव सागर में पड़े इस जीव की दशा को देखकर कृपा सिन्धु श्री राधे रानी से रहा नहीं जाता और वह पात्र - कुपात्र के भेद को जाने बिना ही सब को पार लगा देतीं हैं। श्री राधा ही जीव के समस्त दुखों को मिटाने वाली है। विषय- वासना में लिपटे जीव को श्री कृष्ण तक पहुँचाने वाली सीढ़ी का नाम ही राधा है।

Tuesday 26 December 2017

कब बोला जाए और कितना बोला जाए ?

मार्गदर्शक चिंतन-

न बोलना बड़ी बात है और न चुप रहना बड़ी बात है मगर कब बोलना और कब चुप रहना इसका विवेक रखना ही बड़ी बात है।
अगर बोलना ही बड़ी बात होती तो दुनिया का हर वाचाल मनुष्य प्रशंसा का पात्र होता एवं अनावश्यक बोलने वाली द्रौपदी को कभी भी महाभारत के लिए जिम्मेदार न ठहराया जाता।
इसी प्रकार केवल चुप रहना ही बड़ी बात होती तो भरी सभा में अपनी कुलवधू का अपमान होते देखकर भी मौन साधने वाले पितामह भीष्म को कभी मंत्री बिदुर द्वारा, कभी भगवान श्रीकृष्ण द्वारा तो कभी समाज द्वारा न कोसा गया होता।

अतः कब बोला जाए और कितना बोला जाए ? व कब चुप रहा जाए और कब तक चुप रहा जाए तथा कितना चुप रहा जाए ? जिसे इन बातों को समझने का विवेक आ गया निश्चित ही उसने एक शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण जीवन की नीव भी रख ली।

Monday 25 December 2017

कौन है महान व्यक्ति..

मार्गदर्शक चिंतन-

दूसरों को सुख पहुँचाने के लिए स्वयं कष्ट उठाना और दूसरों की भूख मिटाने क लिए स्वयं भूखा रहना, यही तो महानता की परिभाषा है। दुनिया तुम्हें महान कहे, यह महत्वपूर्ण नहीं अपितु दुनिया की नज़र अंदाजी के बावजूद भी तुम महान कार्य करते हो, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
प्रदर्शन महानता का लक्षण नहीं अपितु पर पीड़ा का दर्शन महानता का लक्षण है।
एक व्यक्ति समाज द्वारा पूजा जाता है और एक व्यक्ति द्वारा किसी गरीब के आँसुओं को पौंछा जाता है। एक व्यक्ति की सेवा दुनिया करती है और एक व्यक्ति दुनिया की सेवा को ही अपना ध्येय बना लेता है।
एक व्यक्ति की आरती सब लोग उतारते हैं और एक व्यक्ति सबके आर्त (दुःख) उतारने के लिए संघर्षशील बना रहता है। जिनके मन में दूसरों के लिए करुणा का भाव है वही लोग वास्तव में महान हैं।

Sunday 24 December 2017

कैसे होती है भगवत कृपा..

मार्गदर्शक चिंतन-

कुछ चीजें हमें अच्छी लगती हैं और कुछ चीजें हमारे लिए अच्छी होती हैं। यह जरुरी नहीं कि जो चीजें हमें अच्छी लगें वो हमारे लिए भी अच्छी हों और जो चीजें हमारे लिए अच्छी हों वो हमें अच्छी भी लगें।
बहुत प्रयत्न करने के बावजूद भी यदि कोई काम न बन सके तो समझ लेना कि प्रभु की नज़रों में वह जरुरी नहीं, अन्यथा प्रयत्न करने वाले को यह प्रकृति पुरुष्कृत अवश्य करती है। जिस प्रकार एक माँ अपने बीमार बालक के लिए उसके मना करने व चीखने चिल्लाने के बावजूद भी जबरदस्ती उसके आरोग्य वर्द्धन के लिए कडवी दवा का घूँट पिला देती है।
वह ये नहीं देखती कि इसे क्या अच्छा लगता है अपितु यह देखती है कि इसके लिए क्या अच्छा होता है। ठीक इसी प्रकार ईश्वर वो नहीं देते जो हमें अच्छा लगता है अपितु वो देते हैं जो हमारे लिए अच्छा होता है।

Monday 18 December 2017

गलती को समझें और उसे सुधारने का प्रयास करें..

मार्गदर्शक चिंतन-

आचार्य चाणक्य कहते हैं, अगर आप गलती करके स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं तो समय आपकी मूर्खता पर हंसेगा। गलती हो जाना तो मानव देह का स्वभाव है मगर गलती होने के बावजूद उसे स्वीकार न करना यह अवश्य एक कुभाव और दुर्भाव है।
गलती पर गलती करने के बावजूद यदि दुर्योधन और रावण आदि ने स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास न किया होता तो निश्चित ही वे जग हंसाई के पात्र बनने से बच जाते।
जो लोग गलती को एक अवसरएक सबक अथवा एक अनुभव के तौर पर लेना जानते हैं, निश्चित ही वो एक स्वर्णिम भविष्य की नींव भी रख देते हैं। अतः गलती हो जाने पर अपने को सही सिद्ध करने का प्रयास नही अपितु शुद्ध करने का प्रयास करो।

Sunday 17 December 2017

कैसा हो आपका बोलना...

मार्गदर्शक चिंतन-

मधुर बोलना अच्छी बात है मगर मधुरता के लिए झूठ बोलना कदापि अच्छा नहीं है। दूसरों को प्रसन्न रखने के लिए बोला गया स्वार्थवश झूठ अपने व दूसरे दोनों के कल्याण में अति बाधक सिद्ध होता है।
शास्त्रों का आदेश है कि " ब्रुयात सत्यम प्रियम " अर्थात प्रिय और मधुर ही बोलो लेकिन केवल मधुर ही नहीं अपितु सत्य भी बोलो। अपनी प्रकृति को इस तरह बनाओ कि लोगों को तुमसे सत्य कहने में संकोच न करना पड़े और झूठ कहने का साहस भी न हो।
जो लोग मधुर सुनना तो पसंद करते हैं मगर सत्य सुनने का साहस नहीं जुटा पाते वो लोग आत्मोन्नति से भी वंचित रह जाते हैं। अतः मधुर प्रिय ही नहीं सत्यप्रिय भी बनो।

Thursday 14 December 2017

कौन है सच्चा सन्यासी और योगी...

मार्गदर्शक चिंतन-गीता जी में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के समक्ष सन्यासी और योगी की जो परिभाषा रखी है, वह बड़ी ही अदभुत और विचारणीय है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन सन्यास आवरण का नहीं अपितु आचरण का विषय है।
जिह्वा क्या बोल रही यह सन्यासी होने की कसौटी नहीं अपितु जीवन क्या बोल रहा है, यह अवश्य ही सन्यासी और योगी होने की कसौटी है।
अनाश्रित: कर्म फलं कार्यं कर्म करोति य:स सन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चा क्रिया।
जो पुरुष कर्म फल की इच्छा का त्याग कर सदैव शुभ कर्म करता रहता है, परोपकार ही जिसके जीवन का ध्येय है, वही सच्चा सन्यासी है। कर्मों का त्याग सन्यास नहीं, अपितु अशुभ कर्मों का त्याग सन्यास है। दुनियाँ का त्याग करना सन्यास नहीं है अपितु दुनियाँ के लिए त्याग करना यह अवश्य सन्यास है।

Wednesday 13 December 2017

कैसे बचें माया के जाल से...

मार्गदर्शक चिंतन-

माया अवेद्य है, वह जाल पर जाल बुनती रहती है इसके मोहक चित्रों का कोई अंत नहीं है। यह ऐसी जादूगरनी है कि कई-कई बार धोखा खाया जीव पुनः इसके जाल में फस ही जाता है। परमात्मा जिसने सारा संसार रचा, हमें जीवन दिया, सहारा दिया इसके प्रभाव के कारण जीव को वह भी पराया लगने लगता है।
यह जानने के बाद भी कि सब कुछ यहीं छूट जाना है, साथ नहीं जाने वाला फिर भी मनुष्य मूढ़ों की तरह धन-संपत्ति-पद इत्यादि के पीछे पढ़कर जीवन गवां रहा है।
सत्संग के आश्रय से ही प्रज्ञा चक्षु खुल सकते हैं और ये भ्रम का पर्दा हट सकता है। माया के ज्यादा चिंतन के कारण ही जीव दुःख पा रहा है। माया नहीं मायापति का आश्रय करो। लक्ष्मी नहीं लक्ष्मी नारायण के दास बनो, तो ये लोक भी सुधर जायेगा और परलोक भी।

Tuesday 12 December 2017

जीवन में कभी न लाएं उदासीनता..

मार्गदर्शक चिंतन-

जिस प्रकार कमजोर नीव पर ऊँचा मकान खड़ा नहीं किया जा सकता ठीक इसी प्रकार यदि विचारो में उदासीनता, नैराश्य अथवा कमजोरी हो तो जीवन की गति कभी भी उच्चता की ओर नहीं हो सकती।
निराशा का अर्थ ही लड़ने से पहले हार स्वीकार कर लेना है और एक बात याद रख लेना निराश जीवन मे कभी भी हास (प्रसन्नता) का प्रवेश नही हो सकता और जिस जीवन में हास ही नहीं उसका विकास कैसे संभव हो सकता है ?जीवन रूपी महल में उदासीनता और नैराश्य ऐसी दो कच्ची ईटें हैं, जो कभी भी इसे ढहने अथवा तबाह करने के लिए पर्याप्त हैं। अतः आत्मबल रूपी ईट जितनी मजबूत होगी जीवन रूपी महल को भी उतनी ही भव्यता व उच्चता प्रदान की जा सकेगी।

Sunday 10 December 2017

जीवन में धैर्य धारण करने का लाभ..

मार्गदर्शक चिंतन-

धर्म अर्थात धैर्य का मार्ग। सतत यात्रा के बावजूद भी जहाँ धैर्य के प्रति इतिश्री की भावना का उदय न हो वही वास्तविक धर्म पथ है। किसी ने कटु वचन कह दिए उसके प्रति धैर्य, कभी आलोचनाएँ होने लगीं तो उसके प्रति धैर्य, कोई कार्य मन चाहे ढंग से न हुआ तो उस स्थिति में धैर्य व शारीरिक एवं मानसिक जो भी कष्ट मिले लेकिन भीतर से धैर्य का बना रहना ही धर्म है।
धर्म पथ संकटों से अवश्य भरा पड़ा है मगर इसमे शिकायत को कोई भी स्थान नहीं है। जिसके भीतर असीम सब्र (धैर्य) है, वही तो सबरी है।
जिसे सब्र में जीना आ गया, वो सबरी हो गया और जो सबरी हो गया, उसे ईश्वर तक नहीं जाना पड़ता अपितु स्वयं ईश्वर आकर उसके द्वार को खटखटाया करते हैं।

Thursday 7 December 2017

किस तरह की हो जीवन में विचारधारा...

मार्गदर्शक चिंतन-

इस दुनिया में सदैव ही दो तरह की विचारधारा के लोग जीते हैं। एक इस दुनिया को निःसार समझकर इससे दूर और दूर ही भागते हैं। दूसरी विचारधारा वाले लोग इस दुनिया से मोहवश ऐसे चिपटे रहते हैं कि कहीं यह छूट ना जाए। कुछ इसे बुरा कहते हैं तो कुछ इसे बूरा (मीठा) कहते हैं।
भगवान् वुद्ध कहते हैं जीवन एक वीणा की तरह है। वीणा के तारों को ढीला छोड़ेगो तो झंकार ना निकलेगी और ज्यादा खींच दोगे तो वो टूट जायेंगे। मध्यम मार्ग श्रेष्ठ है , ना ज्यादा ढीला और ना ज्यादा खिचाव।
अपनी जीवन रूपी वीणा से सुख - आनंद की मधुर झंकार निकले इसलिए अपने इन्द्रिय रुपी तारों को ना इतना ढीला रखो कि वो निरंकुश और अर्थहीन हो जाएँ और ना इतना ज्यादा कसो कि वो टूटकर आनंद का अर्थ ही खो बैठें। जिसे मध्यम मार्ग में जीना आ गया वो सच में आनंद को उपलब्ध हो जाता है

Wednesday 6 December 2017

जानिए क्या है भगवान कृष्ण में विशिष्टता..

मार्गदर्शक चिंतन-

विशिष्टता में शिष्टता, महानता में सहजता, उच्चता में उदारता, विषमता में समता, व्यवहार में मृदुता व प्रतिकूलताओं में धैर्य, यही तो कृष्ण होने की परिभाषा है। जीवन की सम्पूर्णता का नाम ही तो कृष्ण है।जीवन की ऐसी कोई सम्भावना नहीं जो कृष्ण में आकर पूर्ण न हुई हो।
युद्ध के मैदान में शस्त्रकार, कुरुक्षेत्र के मैदान में शास्त्रकार तो असंख्य गोपियों के मध्य में नृत्यकार की भूमिका निभाना उनके बहु आयामी व्यक्तित्व को ही दर्शाता है। कृष्ण अर्थात एक ऐसा जीवन जहाँ न पाने का निषेध है न खोने का भय।
जहाँ न राजसी सुखों का परित्याग है न विलासिता की इच्छा और जहाँ न किसी से द्वेष है न अपनों का मोह। कृष्ण न बन सको कोई बात नहीं कृष्ण के बन जाओ 

Tuesday 5 December 2017

कैसा हो कर्म का उद्देश्य..

मार्गदर्शक चिंतन-

भगवान् श्री कृष्ण एक तरफ वंशीधर हैं तो दूसरी तरफ चक्रधर, एक तरफ माखन चुराने वाले हैं तो दूसरी तरफ सृष्टि को खिलाने वाले। वो एक तरफ वनवारी हैं तो दूसरी तरफ गिरधारी, वो एक तरफ राधारमण हैं तो तो दूसरी तरफ रुक्मणि हरण करने वाले हैं।
कभी शांतिदूत तो कभी क्रांतिदूत, कभी यशोदा तो कभी देवकी के पूत। कभी युद्ध का मैदान छोड़कर भागने का कृत्य , तो कभी सहस्र फन नाग के मस्तक पर नृत्य। जीवन को पूर्णता से जीने का नाम कृष्ण है। जीवन को समग्रता से स्वीकार किया श्री कृष्ण ने। परिस्थितियों से भागे नहीं उन्हें स्वीकार किया। 
भगवान श्री कृष्ण एक महान कर्मयोगी थे, उन्होंने अर्जुन को यही समझाया कि हे अर्जुन, माना कि कर्म थोड़ा दुखदायी होता है लेकिन बिना कर्म किये सुख की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। अगर कर्म का उद्देश्य पवित्र व शुभ हो तो वही कर्म सत्कर्म बन जाता है।

Monday 4 December 2017

जानिए क्या है भगवान कृष्ण का स्वरुप..

मार्गदर्शक चिंतन-

जिसे सीमित शब्दों में परिभाषित किया जा सके वो कभी भी कृष्ण नहीं हो सकता क्योंकि कृष्ण होने का अर्थ ही यह है कि जिसके लिए सारे शब्द कम पड़ जाएं व सारी उपमाएं छोटी। जो दूसरों के चित्त को अपनी ओर आकर्षित करे वो श्रीकृष्ण है।
बाल भाव से बच्चे उनकी तरफ खिंचते हैं तो प्रौढ़ गाम्भीर्य भाव से। कान्त भाव से गोपियाँ उनको अपना सर्वस्व दे बैठीँ तो योगिराज बनकर उन्होंने योगियों को अपना बनाया। केवल बाहर ही नहीं अपितु हमें अपने भीतर भी कृष्ण को जन्म देना होगा।
अनीति व अत्याचार के विरोध की सामर्थ्य, कठिनतम परिस्थितियों में भी धर्म रक्षार्थ कृत संकल्प, पग - पग पर अधर्म को चुनौती देने का साहस व प्रत्येक कर्म का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन, वास्तव में अपने भीतर कृष्ण को जन्म देना ही है।

Sunday 3 December 2017

जीवन में किससे लें प्रेरणा..

मार्गदर्शक चिंतन-

जीवन का प्रेरणा दायक बनना बहुत अच्छी बात है मगर बिना प्रेरणा लायक बने यह कैसे संभव हो सकता है ? हम दूसरों को प्रेरणा दें उससे पूर्व यह आवश्यक हो जाता है कि हम दूसरों से प्रेरणा भी लें।
प्रेरणा पर्वत से लेनी चाहिए जिसके मार्ग में अनेक आंधी और तूफान आते हैं मगर उसके स्वाभिमान मस्तक को नहीं झुका पाते। प्रेरणा लहरों से लेनी चाहिए जो गिरकर फिर उठ जाती हैं और अपने लक्ष्य तक पहुँचे बगैर रूकती नहीं। प्रेरणा बादलों से लेनी चहिये जो समुद्र से जल लेते हैं और रेगिस्तान में बरसा देते हैं।
प्रेरणा हमें वृक्षों से लेनी चाहिए, फल लग जाने के बाद जिनकी डालियाँ स्वतः झुक जाया करती हैं। प्रेरणा उन फूलों से भी लेनी चाहिए जो खिलते भी दूसरों के लिए और टूटते भी दूसरों के लिए हैं। जो व्यक्ति प्रेरणा लेना जानता है उसका जीवन एक दिन स्वतः प्रेरणा दायक भी बन जाता है।