
जो प्रभु का विस्मरण करादे वह दौलत किसी काम की नहीं। वह बाहर से तो तृप्त करती है पर भीतर का खालीपन नहीं जाता। 9 दिन के ये व्रत, अनुष्ठान व्यक्ति को शारीरिक और आत्मिक रूप से शुद्ध करते हैं। जिसका जीवन शुद्ध है वही वुद्ध है और वही सच्ची सिद्धि को प्राप्त कर पाता है।
शैल ( पत्थर ) पुत्री अर्थात जड़त्व से प्रारम्भ होने वाला यह पर्व सिद्धिका पर जाकर सम्पन्न होता है। जीवन का प्रारम्भ चाहे मूढ़ता से हो कोई बात नहीं पर समाप्ति सिद्धि (ज्ञान प्राप्ति) से हो, यही जीवन की वास्तविक उन्नति है। माँ से प्रार्थना, हमें गोविन्द चरणों में प्रेम हो, ऐसी सिद्धि दे दो।
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