तुलसी की माला जरूर पहने

'तुलसी जी की काष्ठ को ब्रह्म काष्ठ कहा गया है। वर्षों पहले साधारण लकड़ी के स्लीपर (स्लीपर यानी लकड़ी के लठ्ठे) को जोड़कर उस दौर में यूं ही नदी में बहा दिया जाता था, जिनको नियत स्थान पर पानी से निकाल भी लिया जाता था।उनके साथ उन पर बैठे-खड़े छोटे बच्चे तथा बड़े मीलों मील तक सफर करते थे। साधारण लकड़ी भी जब आपको जल में डूबने नहीं देती तो यह तो कल्याणी ब्रह्मकाष्ठ है तुलसी की माला।कल्याणी इसलिए कि यह जगत का कल्याण करती है। महाविष्णु के चरण कमलों की शोभा हैं, प्रिया हैं तुलसी जी। तुलसी की माला पहनकर घर पर साधारण स्नान करने वालों को तमाम तीर्थों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त होता है। यदि मृत्यु के समय किसी के गले में तुलसी की माला का एक मनका भी मौजूद रहता है तो सुनिश्चित जानो वह नरक (निम्नतर योनियों ) में नहीं जाएगा, ऐसा हमारे शास्त्र कहते हैं। पद्मपुराण, गरुण एवं स्कन्दपुराण में तुलसी की महिमा का बखान आया है। मान्यता है तुलसी की माला पहनने के लिए सुपात्र बनना ज़रूरी है। आपका आचरण शुद्ध हो, खानपान शुद्ध हो यानी आप वही खाएं जिसे आप ठाकुर जी पर भी अर्पित कर सकते हों। है न फायदा आपका खानपान शुद्ध हो जाएगा तो आपका स्वास्थ्य भी ठीक बना रहेगा और मन भी।स्वस्थ चित्त में ही स्वस्थ मन का आवास होता है। तुलसी की माला मानसिक परेशानियों को घटाने तथा स्मरण शक्ति को बढ़ाने की असली औषधि है। संकोच न करें तुलसी माला पहनने में। कई सभ्रांत महिलाएं ऐसा सोचतीं हैं की रज का तिलक और तुलसी की माला सुहागिन स्त्रियों को नहीं पहननी चाहिए। मगर हमारे शास्त्रों में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि सुहागिन स्त्रियों को तुलसी माला नहीँ पहनी चाहिए। इसलिए सभी स्त्रियों ,पुरुषों एवं बच्चों को बगैर किसी शंका और संकोच के तुलसी माला को धारण करना चाहिए।
जय श्रीराधे
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