Monday 1 January 2018

कौन है सच्चा हितैषी...

मार्गदर्शक चिंतन-

श्रीमदभागवत जी में श्री शुकदेव जी कहते हैं अपनों से श्रेष्ठों की हमारे जीवन निर्माण में भूमिका हो तभी वो बड़े कहलाने लायक हैं।
वे गुरु, गुरु नहीं - पिता, पिता नहीं - माता, माता नहीं - पति, पति नहीं - स्वजन, स्वजन नही और तो और आपके द्वारा पूजित वो देव भी देव नहीं हैं। जो आपके सदगुणों से सींचकर, चरित्र को सुधारकर एक दिन प्रभु नारायण के चरणों में स्थान ना दिला सकें।
नर सेवा और पर सेवा के अलावा कोई दूसरी सीढ़ी नहीं जो नर से नारायण तक जाती हो। कोई सिखाने वाला और दिखाने वाला ज़रूर हो, वाकी ऊंचाइयों को प्राप्त करना कोई असम्भव काम नहीं है।

हर पत्थर की तकदीर बदल सकती है।
पर शर्त, उसे सलीके से संवारा जाये ॥

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