Thursday 4 January 2018

मन की तृष्णा (इच्छाएं ) कैसे समाप्त हो सकती हैं..

मार्गदर्शक चिंतन-

यहाँ प्रत्येक वस्तु , पदार्थ और व्यक्ति एक ना एक दिन सबको जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना है। जरा ( जरा माने - नष्ट होना, बुढ़ापा या काल) किसी को भी नहीं छोड़ती।
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तृष्णैका तरुणायते "लेकिन तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती सदैव जवान बनी रहती है और ना ही इसका कभी नाश होता है। घर बन जाये यह आवश्यकता है, अच्छा घर बने यह इच्छा है और एक से क्या होगा ? दो तीन घर होने चाहियें , बस इसी का नाम तृष्णा है।
तृष्णा कभी ख़तम नहीं होती। विवेकवान बनो, विचारवान बनो, और सावधान होओ। खुद से ना मिटे तृष्णा तो कृष्णा से प्रार्थना करो। कृष्णा का आश्रय ही तृष्णा को ख़तम कर सकता है।
ख्वाव देखे इस कदर मैंने
पूरे होते तो कहाँ तक होते

Wednesday 3 January 2018

क्या है ज्ञानी और संसारी व्यक्ति में अंतर..

मार्गदर्शक चिंतन-

एक ज्ञानी व्यक्ति और संसारी में यही फर्क है कि ज्ञानी मरते हुए भी हँसता है और संसारी जीते हुए भी मरता है। ज्ञान हँसना नहीं सिखाता, बस रोने का कारण मिटा देता है। ऐसे ही अज्ञान रोना नहीं देता बस हँसने के कारणों को मिटा देता है।
ज्ञानी इसलिए हर स्थिति में प्रसन्न रहता है कि वो जानता है जो मुझे मिला, वह कभी मेरा था ही नहीं और जो कुछ मुझसे छूट रहा है, वह भी मेरा नहीं है। परिवर्तन ही दुनिया का शाश्वत सत्य है।
संसारी इसलिए रोता है, उसकी मान्यता में जो कुछ उसे मिला है उसी का था और उसी के दम पर मिला है। जो कुछ छूट रहा है सदा सर्वदा यह उस पर अपना अधिकार मान कर बैठा है। बस यही अशांत रहने का कारण है। मूढ़ता में नहीं, ज्ञान में जियो ताकि आप हर स्थिति में प्रसन्न रह सको।

Tuesday 2 January 2018

क्या है शास्त्रों में दंड़ का प्रावधान...

मार्गदर्शक चिंतन-

जिस प्रकार एक माँ का हाथ में डंडा लेने का उद्देश्य अपनी संतान को पीटना नहीं अपितु उसे थोडा सा भय दिखाकर गलत काम करने से रोकना होता है। ठीक इसी प्रकार हमारे शास्त्रों में भी दंड विधान का मतलव किसी को आतंकित करना अथवा भयभीत करना नहीं, थोडा सा भय दिखाकर मनुष्यों को कुमार्ग पर चलने से बचा लेना है।
शास्त्रों का काम डराना नहीं है , जीवन को अराजकता से बचाना है। शास्त्र पशु बने मनुष्यों के लिए उस चाबुक के समान है जो सही दिशा में जाने को बार- बार प्रेरित करता है। शास्त्रों का उद्देश्य भयभीत करना नहीं आपितु भयमुक्त कर देना है।
शास्त्र घर में सजाकर रखने के लिए नहीं होते, जीवन में उतारकर कर्मों को सुन्दर बनाने के लिए होते हैं। अतः शास्त्रों से डरो नहीं बल्कि उनके बताये मार्ग पर चलो। ताकि आपको समझाने के लिए कोई विरोध रुपी शस्त्र का सहारा ना ले।

Monday 1 January 2018

कौन है सच्चा हितैषी...

मार्गदर्शक चिंतन-

श्रीमदभागवत जी में श्री शुकदेव जी कहते हैं अपनों से श्रेष्ठों की हमारे जीवन निर्माण में भूमिका हो तभी वो बड़े कहलाने लायक हैं।
वे गुरु, गुरु नहीं - पिता, पिता नहीं - माता, माता नहीं - पति, पति नहीं - स्वजन, स्वजन नही और तो और आपके द्वारा पूजित वो देव भी देव नहीं हैं। जो आपके सदगुणों से सींचकर, चरित्र को सुधारकर एक दिन प्रभु नारायण के चरणों में स्थान ना दिला सकें।
नर सेवा और पर सेवा के अलावा कोई दूसरी सीढ़ी नहीं जो नर से नारायण तक जाती हो। कोई सिखाने वाला और दिखाने वाला ज़रूर हो, वाकी ऊंचाइयों को प्राप्त करना कोई असम्भव काम नहीं है।

हर पत्थर की तकदीर बदल सकती है।
पर शर्त, उसे सलीके से संवारा जाये ॥