Monday, 30 October 2017

जानिए प्रभु कथा की महिमा..

मार्गदर्शक चिंतन-

इस दुनियां में मात्र प्रभु कथा में वो सामर्थ्य है जो हमारे जीवन को भवसागर से भावसागर में प्रवेश कराने का सामर्थ्य रखती है। कथा के अभाव में हमारा जीवन व्यथा से ज्यादा कुछ भी नही। भवरोग मिटाने की केवल और केवल एक ही औषधि है और वह है, प्रभु कथा।
जीवन अगर नाव है तो प्रभु कथा उसे डूबने से बचाने वाली पतवार। जीवन अगर पतंग है तो प्रभु कथा उसे भटकने से बचाने वाली डोर। और जीवन अगर एक वृक्ष है तो प्रभु कथा इसे सूखने से बचाने वाला खाद-पानी।
अतः प्रभु कथा का आश्रय लो यह आप को भव सागर से बचा लेगी व भाव सागर में प्रवेश करा देगी।

Sunday, 29 October 2017

क्या है शांति और साम्राज्य में अंतर..

मार्गदर्शक चिंतन-

शांति के आगे साम्राज्य का कोई मोल नहीं। जिसके पास शांति है किन्तु साम्राज्य नहीं वह अमीर है मगर जिसके पास साम्राज्य तो है किन्तु शांति नहीं निश्चित वह गरीब ही है। यह इस जीवन की एक बड़ी विडंबना है कि कभी - कभी यहाँ साम्राज्य मिल जाता है मगर शांति नहीं मिल पाती और कभी - कभी इसके ठीक विपरीत साम्राज्य तो नहीं मिल पाता, हाँ शांति जरुर प्राप्त हो जाती है।
बाहर से हारकर भी जिसने स्वयं को जीत लिया वह सम्राट है मगर दुनियां जीतकर भी जो स्वयं से हार गया सच समझना वो कभी भी सम्राट नहीं हो सकता। सम्राट को शांति मिले यह आवश्यक नहीं पर जिसे शांति प्राप्त हो गयी वह सम्राट अवश्य है।
साम्राज्य जीवन की उपलब्धि नहीं शांति जीवन की उपलब्धि है चाहे वह धनवान बनने से मिले या धर्मवान बनने से।

Saturday, 28 October 2017

जानिए सज्जनता के लाभ...

मार्गदर्शक चिंतन-

सज्जनता जीवन को शीतलता प्रदान करने वाली समीर है। सज्जनता के अभाव में जीवन उस जलते अंगारे के सामान है जो स्वयं तो जलता ही है मगर अपने संपर्क में आने वाले को भी जलाता है।
सज्जनता ही जीवन का आभूषण और श्रृंगार है। सोने की लंका में रहने वाला रत्न जडित सिंहासन पर आरुढ़, नानालंकारों को धारण करने वाले रावण का जीवन भी शोभाहीन है। और पर्वत पर पत्थर के ऊपर व पेड़ की डालों पर बैठे सुग्रीव, हनुमान जी सहित आदि वानरों व अँधेरी गुफा में वास करने वाले जामवंत का जीवन शोभायुक्त है।
जीवन की शोभा अलंकारों में नहीं अपितु आपके उच्च विचारों से है। सज्जनता रुपी आभूषण को धारण करो ताकि स्वर्ण आभूषणों के अभाव में भी आपका सौन्दर्य बना रहे।

Thursday, 26 October 2017

भगवान शिव..विनाश के नहीं संतुलन के देव हैं..

मार्गदर्शक चिंतन-

भगवान शिव को केवल विनाश करने वाला समझना शिवतत्व को ना जानना है। भगवान शिव विनाश के देव नहीं अपितु संतुलन के देव हैं। सृजन और रक्षण जितना कठिन काम है संतुलन भी उससे तनिक कम नहीं।
जिस प्रकार हर वस्तु अपने में एक निश्चित क्षमता लिए होती है और इससे ऊपर इसके साथ की जाने वाली ज्यादती उसको अवश्य क्षति पहुंचाती है। ठीक इसी प्रकार यह सम्पूर्ण प्रकृति भी अपने आप में एक निश्चित क्षमता को धारण किये है। इसमें सृजन और रक्षण की तभी उपयोगिता है जब यह संतुलित अवस्था में आ जाए।
प्रलय का अर्थ केवल विनाश नहीं अपितु यह संतुलन की एक आवश्यक प्रकिया भी है। अतः भगवान शिव प्रलय अथवा विनाश नहीं करते अपितु संतुलन बनाये रखते हैं।

Wednesday, 25 October 2017

जानिए क्या है मोक्ष...कैसे मिलता है मोक्ष..

मार्गदर्शक चिंतन-

मरने के बाद जन्म न लेना मोक्ष नहीं अपितु जीते जी मोह में ना फँसना ही मोक्ष है। मोक्ष प्राप्ति के लिए मरना जरुरी नहीं मगर हाँ मोक्ष प्राप्ति के लिए वासनाओं को मारना आवश्यक है। मरने के बाद भला मोह और मोक्ष का क्या प्रयोजन ? इसको जीते जी ही अनुभव किया जा सकता है।
मोक्ष तो वास्तविक अर्थों में जीते जी ही घटित हो सकता है। मोक्ष तो जीवन आनंद के लिए ही है अन्यथा जीवन आनंद के अभाव में मोक्ष की कल्पना भी व्यर्थ है। शास्त्र कहते हैं कि मोह ही बंधन का कारण है और मोह का क्षय हो जाना ही मोक्ष है।
जिसे मोह से ऊपर जीना आ गया, नीचे पृथ्वी पर रहते हुए भी वह मुक्त ही है।

Tuesday, 24 October 2017

क्या है मानसिक रोग की औषधि..

मार्गदर्शक चिंतन-

जिस प्रकार शरीर की अस्वस्थता शारीरिक रोग कहलाती है, ठीक इसी प्रकार मन की अस्वस्थता भी मानसिक रोग कहलाती है। शारीरिक रोग का निदान तो मानसिक रोग के निदान की अपेक्षा आसान है। कागभुशुण्डी जी गरुड जी को समझाते हुए कहते हैं -

सुनहु तात अब मानस रोगा।
जिन्ह ते दुःख पावहि सब लोगा॥

शारीरिक रोगी तो केवल स्वयं कष्ट भोगता है मगर एक मानसिक रोगी द्वारा सारा समाज ही त्रस्त रहता है। शरीर की कमजोरी, शारीरिक रोग का लक्षण है और विवेक की कमजोरी मानसिक रोग का। 
शास्त्रों का मत है कि प्रभु कथा ही वो महौषधि है जो हमारे मानसिक रोग का समुचित नाश करने का सामर्थ्य रखती है। अतः प्रभु कथा का और श्रेष्ठ व्यक्तियों का आश्रय लो, इससे आपकी व्यथा भी जायेगी और प्रवृत्तियाँ भी सुधरेंगी।

Monday, 23 October 2017

किसमें है सच्चा सुख...

मार्गदर्शक चिंतन-

पदार्थ सुख नहीं देते अपितु परमार्थ सुख देता है। सत्य समझना अगर पदार्थों में सुख होता तो जिनके पास पदार्थों के भण्डार भरे पड़े हैं, वे ही लोग दुनियां के सबसे सुखी लोग होते। सुदामा जैसे ब्राह्मण को भागवत ग्रन्थ कभी भी' प्रशान्त्तात्मा' जैसा शब्द प्रयोग नहीं करता।
यह इस दुनियां का एक सामान्य नियम है यहाँ जिसके पास वस्तु है वे उस वस्तु के बदले पैसा कमाना चाहते हैं और जिनके पास पैसा है वे भी पैसा देकर वस्तु को अर्जित करना चाहते हैं।
मतलब साफ है कि एक को पदार्थ विक्रय में सुख नजर आ रहा है तो दूसरे को उसी पदार्थ को क्रय करने में सुख नज़र आ रहा है। जबकि दोनों ही भ्रम में हैं, स्थायी सुख तो भगवद शरणागति में और त्याग में हैं। अतः अपने जीवन को परमार्थ वादी भी बनाओ केवल पदार्थवादी ही नहीं।

Sunday, 22 October 2017

जानिए क्या है भगवान को अर्पित करने वाली सर्वश्रेष्ठ चीज..

मार्गदर्शक चिंतन-

माना कि ईश्वर परम संपदावान है फिर भी उन्हें पाने के लिए हमें उनके निमित्त कुछ तो देना ही पड़ेगा। जिस प्रकार व्यवहार में परस्पर एक दूसरे को वो वस्तु दी जाती है जो कि उसके पास न हो। जो वस्तु उसके पास पहले से मौजूद हो उस वस्तु को देने का भला क्या प्रयोजन ?ठीक ऐसे ही जो वस्तु ईश्वर के पास पहले से मौजूद हो, जिस अन्न, धन, संपत्ति को वो सब के लिये बांटते फिरते हैं, उसी अन्न, धन, संम्पति में से अगर हम एक छोटा सा भाग उन्हें अर्पित भी कर देते हैं तो बताओ भला वह उनके किस काम का ?शास्त्रों का मत है कि ईश्वर के पास सब कुछ का भंडार भरा पड़ा है, सिवाय अहंकार के और मनुष्य के पास भी अपना कुछ नहीं सिवाय अहंकार के भंडार के। स्मरण रहे, अगर ईश्वर को अगर कुछ अपना देना है तो अपने अहंकार को उनके चरणों में समर्पण कर दो।

Wednesday, 18 October 2017

दीपोत्सव पर्व की शुभकामनाएं..

शुभम करोति कल्याणम, अरोग्यम धन संपदा, शत्रु.बुद्धि विनाशाय:, दीप:ज्योति नमोस्तुते!...दीपोत्सव पर्व की मंगलमय शुभकामनाएं..आओ दीप जलाएं प्रेम और सदभाव के...

Tuesday, 17 October 2017

कब फलता है आशीर्वाद..

मार्गदर्शक चिंतन-

केवल आशीर्वाद से काम नहीं बना करते अपितु काम करने वालों को आशीर्वाद स्वयं मिल जाया करते हैं। प्रायःलोगों द्वारा यही बात कही जाती है कि हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिये कि काम बन जाए मगर श्रेष्ठता तो इसी में है कि आप ऐसा काम कीजिये जिससे आपको आशीर्वाद स्वतः मिल जाए।
आशीर्वाद माँगना कभी भी बुरा नहीं मगर प्रयास और पुरुषार्थ के अभाव में केवल आशीर्वाद का सहारा लेकर सफलता प्राप्त करना अवश्य एक मानसिक संकीर्णता ही है। जिस प्रकार विद्युत अपने आप में बहुत शक्तिशाली आवेग होता है मगर बिना किसी यन्त्र की उपस्थिति अथवा संपर्क में आये बगैर वह निष्क्रिय ही है।
ठीक इसी प्रकार आशीर्वाद भी अपने आप में बहुत शक्ति लिए है मगर पुरुषार्थ के बिना वह भी निष्क्रिय ही है। अतः पुरुषार्थ करना सीखो क्योंकि जहाँ पुरुषार्थ, वहां सफलता और सफल व्यक्ति से भला आशीर्वाद कहाँ दूर है ?

Monday, 16 October 2017

जानिए क्या है धनतेरस पर्व का रहस्य..

जानिए धनतेरस पर्व का महत्व..

धनत्रयोदशी समुद्र मंथन के समय हाथों में अमृत कलश लिए भगवान विष्णु के धन्वन्तरि रूप में प्रगट होने का पावन दिवस है। भगवान् धन्वन्तरि आयुर्वेद के जनक और वैद्य के रूप में भी जाने जाते हैं।
आज के दिन नई वस्तुएं खरीदने का भी प्रचलन है। घर में नया सामान आए ये अच्छी बात है मगर हमारे जीवन में कुछ नए विचार, नए उत्साह, नए संकल्प आएं यह भी जरुरी है। घर की समृद्धि के लिए आपके हार और कार ही नहीं आपके विचार और संस्कार भी सुंदर होने चाहिए।
हम वैष्णवों का सबसे बड़ा धन तो श्री कृष्ण ही हैं। वो धन है तो हम वास्तविक धनवान हैं। कृष्ण रुपी धन के विना दरिद्रता कभी ख़तम नहीं होती।
धन- ते- रस ..... हो सकता है कुछ लोगों को ऐसा लगता हो। पर हम तो ऐसा सोचते हैं ....
......धन (कृष्ण) - ते - रस।
धन त्रयोदशी की सभी को बधाई।

क्या है बांटकर खाने का लाभ...

मार्गदर्शक चिंतन-

आचार्य चाणक्य कहते हैं
, जिस प्रकार संग्रह करने पर मधुमक्खी को पैर पटक कर रोना पड़ता है, ठीक इसी प्रकार पदार्थों में आसक्ति रखने वाले मनुष्य का भी यही हाल होता है। संग्रह ही तो जीवन के संघर्ष का कारण और आसक्ति ही जीवन में निशक्ति का कारण है।
आसक्ति में फंसा मनुष्य उसी प्रकार असहाय बन जाता है, जिस प्रकार एक छोटे से महावत के आगे विशालकाय हाथी और कोमल कमल पुष्प के अन्दर, बांस को भी भेदने की सामर्थ्य रखने वाला भंवरा।
यह प्रकृति अगर देना जानती है तो अपने तरीके से वापस लेना भी अवश्य जानती है। इसलिए बंटकर खाना नहीं अपितु बांटकर खाना सीखो, यही तो मानव बनने की कसौटी भी है।

Saturday, 14 October 2017

क्या है सहनशीलता का मतलब..

मार्गदर्शक चिंतन-

सहनशीलता का मतलब अपने से बलवान के सामने चुप रहना नहीं है अपितु प्रतिकार का पूर्ण सामर्थ्य रखते हुए भी चुप रहना, बस इसी का नाम सहनशीलता है।
अक्सर लोगों द्वारा अपने से सामर्थ्यवान के सामने झुक जाने को ही सहनशीलता समझी जाती है मगर जिसके सामने झुक जाना ही विकल्प हो अथवा जिसके साथ चाहकर भी कुछ न किया जा सके उसके सामने चुप हो जाना कभी भी सहनशीलता नहीं हो सकती।
सहनशीलता का मतलब ही बस इतना है कि आप में प्रत्युत्तर की पूर्ण क्षमता थी बावजूद इसके आप मौन हो गये। सहनशीलता केवल बाहर की क्रिया नहीं अपितु भीतर का भाव भी है। केवल क्रिया से ही नहीं अपितु भाव से भी तर्क शून्य हो जाना, इसी का नाम सहनशीलता है।

Thursday, 12 October 2017

कैसा हो आपका व्यवहार..

मार्गदर्शक चिंतन-

अच्छे व्यापार के लिए ही नहीं अपितु अच्छे व्यवहार के लिए भी सदैव प्रयत्नशील रहो बने रहो। जहाँ अच्छा व्यापार आपको सुखी रखेगा वहीँ अच्छा व्यवहार आपको आंतरिक ख़ुशी प्रदान करेगा।
हमारे जीवन में कई क्लेशों का केवल एक ही कारण है वह है स्वभाव। कुछ ना हो तो अभाव सताता है। कुछ हो तो भाव सताता है और सब कुछ हो तो फिर स्वभाव सताता है। बुरे स्वभाव से हम आसान चीजों को भी क्लिष्ट बना लेते हैं।
गलत व्यवहार, क्रोध, ह्रदय में अशांति और भय पैदा करता है। वाह्य ख़ुशी तो व्यापार दे देगा पर भीतर की प्रसन्नता, आनंद और निर्भीकता तो मधुर व्यवहार ही देगा। व्यपार के लिए ही नहीं व्यवहार के लिए भी चिंतन किया करो।

Wednesday, 11 October 2017

जानिए कैसे करें धन खर्च..कभी न हो धन की कमी..

मार्गदर्शक चिंतन-

बात बड़ी सामान्य और छोटी सी लेकिन समझने लायक है। सब जानते हैं कि भगवान विष्णु जी ही माँ लक्ष्मी के स्वामी हैं। 
अर्थात् सरल अर्थों में समझा जाए तो वह ये कि, जिस भी धन और संपत्ति को हम अपना समझ बैठे हैं, उसके वास्तविक पति तो केवल और केवल स्वयं भगवान नारायण ही हैं। 
जिस प्रकार लक्ष्मी पर अपना एकाधिकार जताने के प्रयास में दुर्बुद्धि रावण को अपना सर्वनाश देखना पड़ा, ठीक इसी प्रकार प्रभु द्वारा प्रदत्त संपत्ति का सदुपयोग न कर उसे अपना समझकर भोग और विलासिता में व्यय करना अपनी अल्प बुद्धि का परिचय देते हुए अपने विनाश को निमंत्रण देना ही है। 
जिस दिन लक्ष्मी पर हमारी भोग दृष्टि पड़ जाती है उस दिन पहले सन्मत्ति और फिर संपत्ति का हरण प्रभु द्वारा कर लिया जाता है। इसलिए सम्पत्ति को प्रभु कार्य में, नारायण की सेवा में और परमार्थ में ख़र्च करना ही उसकी सार्थकता है।
अतः याद रहे - संपत्ति सब रघुपति की...

Tuesday, 10 October 2017

जानिए कैसे दूर होगा आपका दुःख...

मार्गदर्शक चिंतन-

यह इस प्रकृति का एक शास्वत नियम है यहाँ सदैव एक दूसरे द्वारा अपने से दुर्बलों को ही सताया जाता है। और अक्सर अपने से बलवानों को उनसे कुछ गलत होने के बावजूद भी छोड़ दिया जाता है।
दुःख के साथ भी ऐसा होता है जितना आप दुखों से भागने का प्रयास करोगे उतना दुःख तुम्हारे ऊपर हावी होते जायेंगे। स्वामी विवेकानंद जी कहा करते थे कि दुःख बंदरों की तरह होते हैं जो पीठ दिखाने पर पीछा किया करते हैं और सामना करने पर भाग जाते हैं।
समस्या चाहे कितनी बड़ी क्यों ना हो मगर उसका कोई न कोई समाधान तो अवश्य ही होता है। समस्या का डटकर सामना करना सीखो क्योंकि समस्या मुकाबला करने से दूर होगी मुकरने से नहीं।

Monday, 9 October 2017

जानिए कब, कैसे और कितना बोलें..

मार्गदर्शक चिंतन-

वह आदमी जरूर महा अज्ञानी है, जो ऐसे हर सवाल का जबाब दे जो कि उससे पूछा ही न जाए। वास्तविक तौर पर ज्ञानी वही है जो केवल दूसरों की माँगी गयी सलाह पर ही सुझाव दे।
अक्सर व्यवहार में यह बात देखने को मिलती है कि प्रश्न किसी और से किया जाता है और उत्तर किसी और से सुनने को मिलता है। अथवा प्रश्न एक किया जाता है और उत्तर चार मिल जाते हैं। भारतीय दर्शन में यह शब्दों का अपव्यय कहलाता है। 
जब शब्द ब्रह्म है, तो इसका अपव्यय करना कभी भी ज्ञानी का लक्षण नहीं हो सकता है। भगवान बुद्ध कहते हैं कम बोलना और काम का बोलना बस यही तो वाणी की तपस्चर्या है।

Sunday, 8 October 2017

क्या है जीवन में धैर्य धारण करने का लाभ..

मार्गदर्शक चिंतन-

कठिनतम और जटिलतम परिस्थितियों में भी धैर्य बना रहे इसी का नाम सज्जनता है। केवल फूल माला पहनने पर अभिवादन कर देना ही सज्जनों का का लक्षण नहीं। यह तो कोई साधारण से साधारण मनुष्य भी कर सकता है। मगर काँटों का ताज पहनने के बाद भी चेहरे पर सहजता का भाव बना रहे, बस यही सज्जनता व महानता का लक्षण है।
भृगु जी ने लात मारी और पदाघात होने के बाद भी भगवान विष्णु जी ने उनसे क्षमा माँगी। इस कहानी का मतलब यह नहीं कि सज्जनों को लात से मारो अपितु यह है कि सज्जन वही है जो दूसरों के त्रास को भी विनम्रता पूर्वक झेल जाए।
सज्जन का मतलब सम्मानित व्यक्ति नहीं अपितु सम्मान की इच्छा से रहित व्यक्तित्व है। जो सदैव शीलता और प्रेम रुपी आभूषणों से सुसज्जित है वही सज्जन है।

Saturday, 7 October 2017

कैसे चलें अध्यात्म के पथ पर...

मार्गदर्शक चिंतन-

अध्यात्म मजबूरी से पकड़ा जाने वाला मार्ग नहीं अपितु मजबूती से पकड़ा जाने वाला मार्ग है। बहुधा लोगों द्वारा द्वारा यही सोचा जाता है कि अध्यात्म को मजबूर लोग पकड़ते हैं। मगर सच तो यह है कि अध्यात्म को मजबूत लोग पकड़ते हैं।
मजबूरी आपको मार्ग तो पकड़ा सकती है मगर लक्ष्य की प्राप्ति नहीं करा सकती क्योंकि लक्ष्य तक पहुँचने के लिए मजबूती की जरूरत होती है मजबूरी की नहीं।
अध्यात्म एक सागर है। भक्ति अध्यात्म की सैर करने वाली नौका है और प्रार्थना भक्ति नौका को अपने लक्ष्य की तरफ खींचने वाली पतवार है। लेकिन इस पतवार को चलाने की सामर्थ्य मजबूत हाथ ही रखते हैं मजबूर नहीं।

Thursday, 5 October 2017

जानिए कैसे जिएं जिंदगी..

मार्गदर्शक चिंनत

जीवन जीने की दो शैलियाँ हैं। एक जीवन को उपयोगी बनाकर जिया जाए और दूसरा इसे उपभोगी बनाकर जिया जाए। जीवन को उपयोगी बनाकर जीने का मतलब है उस फल की तरह जीवन जीना जो खुशबू और सौंदर्य भी दूसरों को देता है और टूटता भी दूसरों के लिए हैं। 
अर्थात कर्म तो करना मगर परहित की भावना से करना। साथ ही अपने व्यवहार को इस प्रकार बनाना कि हमारी अनुपस्थिति दूसरों को रिक्तता का एहसास कराए। 
जीवन को उपभोगी बनाने का मतलब है उन पशुओं की तरह जीवन जीना केवल और केवल उदर पूर्ति ही जिनका एक मात्र लक्ष्य है। अर्थात लिवास और विलास ही जिनके जिन्दा रहने की शर्त हो। मानवता के नाते यह परमावश्यक हो जाता है कि जीवन केवल उपयोगी बने उपभोगी नहीं।

Wednesday, 4 October 2017

जानिए महारास में भगवान कृष्ण ने अपनी बंसी से किस शब्द का नाद किया..

महारास रहस्य..
शरद पूर्णिमा वह पावन दिवस जब भगवान श्रीकृष्ण ने वृन्दावन में असंख्य गोपिकाओं के साथ "महारासरचाया था। शास्त्रों में कहा गया कि "रसो वै स:"अर्थात परमात्मा रसस्वरूप है अथवा जो रस तत्व हैवही परमात्मा है।
श्रीकृष्ण द्वारा उसी आनंद रूप रस का गोपिकाओं के मध्य वितरण ही तो "रासहै। यानि एक ऐसा महोत्सव जिसमें स्वयं ब्रह्म द्वारा जीव को अपने ब्रह्म रस में डुबकी लगाने का अवसर प्रदान किया जाता है। जीवन के अन्य सभी सांसारिक रसों का त्याग कर जीव द्वारा ब्रह्म के साथ ब्रह्मानन्द के आस्वादन का सौभाग्य ही "महारासहै। 
काम तभी तक जीव को सताता है जब तक जीव जगत में रहेजगदीश की शरण लेते ही उसका काम स्वतः गल जाता है। अतः "महारासजीव और जगदीश का मिलन ही है। इसीलिए श्रीमद् भागवत जी में कहा गया कि जो काम को मिटाकर राम से मिला देवही "महारासहै। महारास के समय भगवान ने जब बेणुनाद किया तो..उसमें क्लीं शब्द का नाद किया...क्लीं भगवान कृष्ण का बीज मंत्र है...इसके साथ ही यह काम बीज मंत्र भी है...काम ( इच्छा ) यानि भगवान से मिलन की तीव्र इच्छा जगाने वाला है क्लीं बीज मंत्र...यही वजह है कि क्लीं बीज मंत्र का नाद सुनते ही...सारी गोपियों के मन में भगवान कृष्ण से मिलने की तीव्र इच्छा जाग्रत हुई...वे जिस अवस्था में थीं..उसी अवस्था में सबकुछ छोडकर उस परम ब्रह्म नाद की ओर खिंची चली आयीं....जब जीव सबकुछ त्याग कर प्रभु से मिलने के लिए निकल पड़ता है तो भगवान भी उसे अंगीकार करते हैं...महारास की लीला आत्मा के परमात्मा से मिलन की दिव्य लीला है...

Tuesday, 3 October 2017

कर्म हमारा परछाई की तरह पीछा नहीं छोड़ते..

मार्गदर्शक चिंतन-

सत्य समझ लेना हमारे द्वारा किये गए कर्म ही हमारी अच्छाई का निर्माण करते हैं। जिस प्रकार चाहकर भी हम परछाई को अपने से अलग नहीं कर सकते ठीक इसी प्रकार हमारे द्वारा किये गए कर्म भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते।
जिस प्रकार प्रकाश के अभाव में परछाई नहीं दिखती ऐसे ही अज्ञानान्धकार में हमें अपने कर्मों का परिणाम भी नजर नहीं आता। तब हम यह मान लेते है कि शायद हम कर्म फल से बच गए हैं।
जैसे प्रकाश हो जाने पर अदृश्य परछाई भी हमारे सामने उपस्थित हो जाती है। ठीक ऐसे ही ज्ञानरुपी दीपक जल जाने पर हमें विलुप्त अपना कर्म प्रभाव भी साफ-साफ नजर आने लग जाता है। हमारी परछाई हम ही को न डराएं और हमारे कर्म हम ही को न सताये इसके लिए आचरण अवश्य सुधार लेना।

Monday, 2 October 2017

क्या है चेहरे का वास्तविक सौंदर्य..

मार्गदर्शक चिंतन-

चेहरे का वास्तविक सौंदर्य प्राकृतिक सौंदर्य है कृत्रिम प्रसाधन नहीं। प्रसाधनों के प्रयोग से केवल चेहरे का रंग बदला जा सकता है। चेहरे का रंग नहीं ढंग भी बदलें। इसके साथ एक प्यारी सी मुस्कराहट होनी ही चाहिए।
चेहरे पर मुस्कान दिखे और चेहरे पर मुस्कान रहे दोनों अलग-अलग स्थितियाँ हैं। चेहरे पर मुस्कान दिखाना तो केवल दिखावट है। मगर चेहरे पर मुस्कराहट रहना यह चेहरे की वास्तविक सजावट है।
चेहरा ही हमारे भीतर का वास्तविक दर्पण है, माना कि आपके जीवन में अनेक कष्ट हैं। एक बार अपने मन को प्रभु चरणों में अर्पण करके तो देखो, आपके चेहरे रुपी दर्पण पर चमक अवश्य आएगी।

Sunday, 1 October 2017

क्या है सुखद गृहस्थ जीवन का सूत्र...

मार्गदर्शक चिंतन-

सुखी गृहस्थ जीवन के लिए केवल यही पर्याप्त नहीं कि आपकी आर्थिक स्थिति ठीक हो अपितु यह भी आवश्यक है कि आपकी मनस्थिति भी ठीक हो। जिंदगी में खुशियाँ आपके पास पैसा कितना है इस बात पर कम व आपके पास पैशन (धैर्य) कितना है, इस बात पर ज्यादा निर्भर करती है।
महत्वपूर्ण यह नहीं कि आपके पास बैंक बैलेंस कितना है ? अपितु यह है कि आपके पास ब्रेन बैलेंस कितना है। संपत्ति के अभाव में तो समझ से भी गृहस्थी चल जाती है मगर समझ के अभाव में केवल संपत्ति से जिंदगी चलना संभव ही नहीं है।
अत: आपके प्रयत्न केवल आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए ना हों अपितु मनस्थिति मजबूत करने के लिए भी हों ताकि एक खुशहाल गृहस्थ जीवन का निर्वाहन किया जा सके।