Monday, 31 July 2017

जीवन में क्यों जरुरी है धैर्य..

मार्गदर्शक चिंतन-

अनन्यता शब्द आपने जरूर सुना होगा। इसका अर्थ है अपने आराध्य देव के सिवा किसी और से किंचित अपेक्षा ना रखना। आपने उपास्य देव के चरणों में पूर्ण निष्ठ और पूर्ण समर्पण ही वास्तव में अनन्यता है।
एक भरोसो एक बल , एक आस विश्वास।
समय कैसा भी हो, सुख- दुःख, सम्पत्ति, विपत्ति जो भी हो हमें धैर्य रखना चाहिए। धर्म के साथ धैर्य जरूरी है। प्रभु पर भरोसा ही भजन है। अनन्यता का अर्थ है अन्य की ओर ना ताकना। 
श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि जो मेरे प्रति अनन्य भाव से शरणागत हो चुके हैं। मै उनका योगक्षेम वहन करता हूँ अर्थात जो प्राप्त नहीं है वो दे देता हूँ और जो प्राप्त है उसकी रक्षा करता हूँ। अनन्यता का मतलव दूसरे देवों की उपेक्षा करना नहीं अपितु उनसे अपेक्षा ना रखना है।

Sunday, 30 July 2017

शास्त्र हमें कैसे बचाते हैं पाप कर्मों से..

मार्गदर्शक चिंतन-

जिस प्रकार एक माँ का हाथ में डंडा लेने का उद्देश्य अपनी संतान को पीटना नहीं अपितु उसे थोडा सा भय दिखाकर गलत काम करने से रोकना होता है। ठीक इसी प्रकार हमारे शास्त्रों में भी दंड विधान का मतलव किसी को आतंकित करना अथवा भयभीत करना नहीं, थोडा सा भय दिखाकर मनुष्यों को कुमार्ग पर चलने से बचा लेना है।
शास्त्रों का काम डराना नहीं है , जीवन को अराजकता से बचाना है। शास्त्र पशु बने मनुष्यों के लिए उस चाबुक के समान है जो सही दिशा में जाने को बार- बार प्रेरित करता है। शास्त्रों का उद्देश्य भयभीत करना नहीं आपितु भयमुक्त कर देना है।
शास्त्र घर में सजाकर रखने के लिए नहीं होते, जीवन में उतारकर कर्मों को सुन्दर बनाने के लिए होते हैं। अतः शास्त्रों से डरो नहीं बल्कि उनके बताये मार्ग पर चलो। ताकि आपको समझाने के लिए कोई विरोध रुपी शस्त्र का सहारा ना ले।

Saturday, 29 July 2017

तृष्णा (इच्छाएं) ही जन्म-मरण का कारण हैं...

मार्गदर्शक चिंतन-

यहाँ प्रत्येक वस्तु, पदार्थ और व्यक्ति एक ना एक दिन सबको जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना है। जरा (जरा माने -नष्ट होना, बुढ़ापा या काल) किसी को भी नहीं छोड़ती।
"
तृष्णैका तरुणायते "लेकिन तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती सदैव जवान बनी रहती है और ना ही इसका कभी नाश होता है। घर बन जाये यह आवश्यकता है, अच्छा घर बने यह इच्छा है और एक से क्या होगा ? दो तीन घर होने चाहियें , बस इसी का नाम तृष्णा है।
तृष्णा कभी ख़तम नहीं होती। विवेकवान बनो, बिचारवान बनो, और सावधान होओ। खुद से ना मिटे तृष्णा तो कृष्णा से प्रार्थना करो। कृष्णा का आश्रय ही तृष्णा को ख़तम कर सकता है।
ख्वाव देखे इस कदर मैंने
पूरे होते तो कहाँ तक होते

Thursday, 27 July 2017

जानिए सुखी रहने का मंत्र..

मार्गदर्शक चिंतन-

ऐसी बात नहीं है कि आदमी दुखों व क्लेशों से मुक्त नहीं होना चाहता हो। वह अतिशीघ्र इन द्वंदों से छुटकारा और जीवन में परिवर्तन चाहता है मगर मन बदलकर नहीं मन्त्र बदलकर। आज का आदमी हर समस्या के लिए मन्त्र चाहता है। 
मन्त्र में भी उसे ज्यादा विश्वास नहीं है मगर वो उस समाधान से बचना चाहता है जो यथार्थ में होना चाहिए। आदमी की चतुराई तो देखो, पूरा दिन बैठे- बैठे बात निकालकर निकाल देता है और फिर कहता फिरता है कि हमें कोई ऐसा मन्त्र या दवा बतादे जिससे दिन में भूख लग जाये और रात में नींद आ जाए।
इसका एक ही मन्त्र है और वो है " परिश्रम " उन लोगों से जाकर पता करो जो सड़क पर बड़ी गहरी नीद में सोते हैं। वो किसी मन्त्र का जप नही करते, उनका दिन भर का परिश्रम ही उनकी भूख व नींद का कारण है। अतः मन बदलने का प्रयास करो मन्त्र बदलने का नहीं।

Wednesday, 26 July 2017

जीवन में हर पल आनंद मनाओ, उत्सव मनाओ..

मार्गदर्शक चिंतन-

जीवन को ढोओ मत जिओ। पल पल उत्सव मनाओ, आनन्द मनाओ। हर स्थिति में खुश रहने का प्रयास करो। यहाँ सदैव एक जैसी स्थितियां तो किसी की भी नहीं रहती।
अभाव में भी खुश रहना सीखो क्योंकि जिसको रोने की आदत पड़ जाए तो वह कुछ पाने के बाद भी रोता ही रहता है। जीवन क्षणभंगुर है, यह तो विश्राम है, यात्रा तो इससे आगे भी होनी है। जीवन को क्षणभंगुर समझने का मतलब यह नहीं कि कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा विषयोपभोग कर लिया जाए।
बल्कि यह है कि फिर दुवारा अवसर मिले ना मिले इसलिए इस अवसर का पूर्ण लाभ लेते हुए इसे सदकर्मों में व्यय किया जाए

Tuesday, 25 July 2017

किस का मन में करें चिंतन..

मार्गदर्शन चिंतन-

आदमी के भीतर कोई ना कोई चिंतन और किसी ना किसी का संग चलता ही रहता है। यदि चिंतन और संग करना ही है तो क्यों ना श्रेष्ठ का किया जाए। दुनिया में ऐसे व्यक्ति बहुत हैं जो बिना प्रयोजन का चिंतन और संग करके अपना दिमाग और समय दोनों ख़राब करते रहते हैं।
अच्छे चिंतन और संग से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। दुनिया ऐसे बहुत व्यक्तियों से भरी पड़ी है जिनका पूर्व जीवन दुष्प्रवृत्तियों से भरा रहा लेकिन कालांतर में सही संगति और सही वातावरण से ना केवल उन्होंने स्वयं का उद्धार किया अपितु लाखों लोगों के लिए वे प्रेरणास्रोत भी बने।
सही मार्गदर्शन सही समय पर और सही व्यक्ति के द्वारा मिले तो परिणाम भी श्रेष्ठ निकलता है। सत्प्रवृत्तियाँ अच्छे माहौल में ही जन्म लेती हैं। यदि परिस्थितियाँ आप पर हावी हो रही हैं तो असहाय मत बनो। सद साहित्य को अपना साथी बनालो और अपने बिचारों को दृण संकल्प में बदल कर शून्य से शिखर तक पहुँच जाओ।

Monday, 24 July 2017

कैसे दूर होंगी जीवन की बाधाएं..

मार्गदर्शक चिंतन-

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ का व्यक्तित्त्व उन बाधाओं से और निखर जाता है तो कुछ बाधाओं से घबड़ाकर उनके आगे घुटने टेक देते हैं। बाधाओं का रोना रोने वालों की कोई कमीं नहीं है। अब जीवन है तो समस्याएं तो जरूर आएँगी। 
जितनी बड़ी बाधा होती है उससे कहीं अधिक संघर्ष हमें करना पड़ता है। दुनिया का कोई भी लक्ष्य व्यक्ति के संकल्प से बड़ा नहीं होता है। बाधाएं तो कुछ नहीं करती, करने बाले तो हम होते हैं। 
समस्या उपस्थित होने से पहले ही कई लोग अपने दिमाग में उसे इतना हावी कर लेते हैं कि उसका समाधान निकालने के लिए उनके पास पर्याप्त विवेक और सोच बचती ही नहीं है। निर्णय लेने की उनकी क्षमता प्रभावित हो जाती है। मुस्कुराकर हर स्थिति का सामना करो।
संघर्ष - संग हर्ष। हर्ष के साथ, शांत चित्त से, प्रभु पर भरोसा रखकर हर बाधा का सामना करो, समाधान तुम्हारे पास है, बस हिम्मत हार रहे हो।

Sunday, 23 July 2017

मैं (अहंकार) से कैसे बचें..

मार्गदर्शक चिंतन-

मै शब्द में बड़ी बिचित्रता है। सुबह से शाम तक आदमी कई बार मै मै करता है। इस मै के कारण ही बहुत सारी समस्याएं जन्म लेती है। आश्चर्य की बात यह है कि मै के कारण उत्पन्न समस्याओं के समाधान के लिए आदमी फिर " मै " को प्रस्तुत करता है।
समस्त हिंसा और अशांति के मूल में " मै " ही है। जीवन बड़ा आनंदमय और उत्सवमय बन सकता है लेकिन यह अहंवाद उसमे सबसे बड़ी बाधा है। मै " के ज्यादा आश्रय से ह्रदय पाषाण जैसा हो जाता है। जबकि जीवन का वास्तविक सौंदर्य तो उदारता, विनम्रता, प्रेमशीलता और संवेदना में ही खिलता है।
मै माने स्वयं में बंद हो जाना, पिंजड़े में कैद हो जाना, आकाश की अनंतता से बंचित रह जाना। एक बात बिलकुल समझ लेना " मै " की मुक्ति में ही तुम्हारी समस्याओं की मुक्ति है।
साहव जो बात "हम" में है,वो ना तुम में है ना मुझ में है॥

Saturday, 22 July 2017

खुद को जाने बिना नहीं होगा कल्याण..

मार्गदर्शक चिंतन-

वर्तमान समय में हर आदमी आपको यह कहता हुआ मिलेगा कि लोग उसे समझ नहीं रहे है। जबकि यह चिंता का विषय बिलकुल भी नही है। तुम स्वयं अपने आप को अगर नहीं समझ पा रहे हो तो यह जरूर चिंता का विषय है।
प्रकृति ने सबको अलग स्वभाव, अलग उद्देश्य और अलग आदतें प्रदान की हैं। हर आदमी अपने जैसा स्वभाव वाला, समान उद्देश्य वाला व्यक्ति ही ढूँढता है। एक प्रकार से कहें कि वह खुद अपने अक्स को हर शख्स में देखना चाहता है। यहीं से सही गलत की धारणाएं प्रारम्भ हो जाती हैं। जो दुःख ना होने पर भी दुःख का अकारण आभास कराती रहती हैं।
दूसरों को ज्यादा जानने में व्यक्ति स्वयं से बहुत दूर हो जाता है। "स्वस्मिन् तिष्ठति इति स्वस्थः"। जो स्वयं में स्थित है वहीँ स्वस्थ है। खुद को जाने बिना खुदा को नहीं जाना जा सकता है।

Thursday, 20 July 2017

कैसा हो आपका व्यवहार..

मार्गदर्शक चिंतन-

यह बिलकुल सत्य है कि दूसरों के साथ हम जैसा व्यवहार करते हैं वैसा ही व्यवहार वे हमारे साथ करते हैं। हम अकारण रूप से दूसरों के जीवन में बाधक नहीँ बनेंगे तो वे भी हमारे जीवन में बाधक क्यों बनेंगे ? यह बड़ी विचित्र बात समाज में देखने को मिल रही है कि हम अपने जीवन से ज्यादा दूसरों के जीवन को देखने में व जानने में व्यस्त हैं। 
जब हम सब उस एक ही ईश्वर की संतान हैं और सब अपनी मेंहनत और कर्म करके उन्नति कर रहे हैं तो फिर क्यों हमारे भीतर ईर्ष्या और द्वेष बढ़ता जा रहा है ? दूसरों की समृद्धि देख कर जलो नहीँ अपितु उन्हें और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करो।
यदि हमने अपना स्वभाव विनम्र, दयालु, प्रिय सत्यभाषी, परोपकारी और मधुर बना लिया तो बड़ी मात्रा में ना सही तो थोड़े अंश में ही सही दूसरों का व्यवहार भी आपको इसी रूप में प्राप्त होना शुरू हो जायेगा। सद वृत्तियों में बड़ा आकर्षण होता है। लोग आपकी तरफ खिंचे चले आएंगे।

Wednesday, 19 July 2017

कैसा होता है लोभी व्यक्ति का जीवन...

मार्गदर्शक चिंतन-

हमारे शास्त्रों ने लोभ को ही समस्त पाप वृत्तियों का कारण कहा है। महापुरुषों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि,
कामी तरे क्रोधी तरे, लोभी की गति नाहीं

अर्थात कामी के जीवन में भी बदलाव सम्भव है, क्रोधी व्यक्ति भी एक दिन परम शांत अवस्था को प्राप्त कर सकता है मगर लोभी व्यक्ति कभी अपनी वृत्तियों का हनन कर इस संसार सागर से तर जाए यह बहुत मुश्किल है।
जिस व्यक्ति की लोभ और मोह वृत्तियाँ असीम हैं उस व्यक्ति को कहीं भी शांति नहीं मिल सकती। बहुत कुछ होने के बाद भी वह खिन्न, रुग्ण, और परेशान ही रहता है। लोभी अर्थात वो मनुष्य जिसे वहुत कुछ पाने की ख़ुशी नहीं अपितु थोडा कुछ खोने का दुःख है। अत: बहुत लोभ से बचो यह आपको बहुत पापों से बचा लेगा।

Tuesday, 18 July 2017

श्रीकृष्ण ने क्या दिया सन्यासी और यीगी पर संदेश..

मार्गदर्शक चिंतन-

गीता जी में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के समक्ष सन्यासी और योगी की जो परिभाषा रखी है, वह बड़ी ही अदभुत और विचारणीय है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन सन्यास आवरण का नहीं अपितु आचरण का विषय है।
जिह्वा क्या बोल रही यह सन्यासी होने की कसौटी नहीं अपितु जीवन क्या बोल रहा है, यह अवश्य ही सन्यासी और योगी होने की कसौटी है।
अनाश्रित: कर्म फलं कार्यं कर्म करोति य:स सन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चा क्रिया।
जो पुरुष कर्म फल की इच्छा का त्याग कर सदैव शुभ कर्म करता रहता है, परोपकार ही जिसके जीवन का ध्येय है, वही सच्चा सन्यासी है। कर्मों का त्याग सन्यास नहीं, अपितु अशुभ कर्मों का त्याग सन्यास है। दुनियाँ का त्याग करना सन्यास नहीं है अपितु दुनियाँ के लिए त्याग करना यह अवश्य सन्यास है।

Monday, 17 July 2017

माया रुपी संसार में कैसे रहें..

मार्गदर्शक चिंतन-

माया अवेद्य है, वह जाल पर जाल बुनती रहती है इसके मोहक चित्रों का कोई अंत नहीं है। यह ऐसी जादूगरनी है कि कई-कई बार धोखा खाया जीव पुनः इसके जाल में फंस ही जाता है। परमात्मा जिसने सारा संसार रचा, हमें जीवन दिया, सहारा दिया इसके प्रभाव के कारण जीव को वह भी पराया लगने लगता है।
यह जानने के बाद भी कि सब कुछ यहीं छूट जाना है, साथ नहीं जाने वाला फिर भी मनुष्य मूढ़ों की तरह धन-संपत्ति-पद इत्यादि के पीछे पड़कर जीवन गवां रहा है।
सत्संग के आश्रय से ही प्रज्ञा चक्षु खुल सकते हैं और ये भ्रम का पर्दा हट सकता है। माया के ज्यादा चिंतन के कारण ही जीव दुःख पा रहा है। माया नहीं मायापति का आश्रय करो। लक्ष्मी नहीं लक्ष्मी नारायण के दास बनो, तो ये लोक भी सुधर जायेगा और परलोक भी।

Sunday, 16 July 2017

भगवान बुद्ध ने क्या बतायी जीवन जीने की कला..

मार्गदर्शक चिंतन-

इस दुनिया में सदैव ही दो तरह जी विचारधारा के लोग जीते हैं। एक इस दुनिया को निः सार समझकर इससे दूर और दूर ही भागते हैं। दूसरी विचारधारा वाले लोग इस दुनियां से मोहवश ऐसे चिपटे रहते हैं कि कहीं यह छूट ना जाए। कुछ इसे बुरा कहते हैं तो कुछ इसे बूरा (मीठा) कहते हैं।
भगवान् वुद्ध कहते हैं जीवन एक वीणा की तरह है। वीणा के तारों को ढीला छोड़ेगो तो झंकार ना निकलेगी और ज्यादा खींच दोगे तो वो टूट जायेंगे। मध्यम मार्ग श्रेष्ठ है , ना ज्यादा ढीला और ना ज्यादा खिचाव।
अपनी जीवन रूपी वीणा से सुख -आनंद की मधुर झंकार निकले इसलिए अपने इन्द्रिय रुपी तारों को ना इतना ढीला रखो कि वो निरंकुश और अर्थहीन हो जाएँ और ना इतना ज्यादा कसो कि वो टूटकर आनंद का अर्थ ही खो बैठें। जिसे मध्यम मार्ग में जीना आ गया वो सच में आनंद को उपलब्ध हो जाता है

Thursday, 13 July 2017

जानिए कैसे होते हैं भगवान के दर्शन..

मार्गदर्शक चिंतन-

भगवान् नहीं ह्रदय में पहले भाव आता है। भाव आ जाएगा तो भगवान् को आते देर ना लगेगी। भाव से ही भव बंधन कटते हैं। भाव से भव सागर पार होता है। पदार्थ को नहीं भक्त के भाव को ठाकुर जी ग्रहण करते हैं।
भाव भगवान् की कृपा से प्रगट होता है या सत्संग और संतों की कृपा से प्रगट होता है। दुनिया में कुछ भी छूटे छूट जाने देना, कथा का त्याग मत करना। शास्त्रों के सूत्र संत की कृपा से जल्दी ह्रदय में उतरकर आचरण बन जाते हैं। 
रसिक बनना है तो भैया संतों के चरणों में बैठना आना चाहिए। संत सत तक पहुंचा देता है। उर ( ह्रदय ) के मैल को संत कृपा करके दूर कर देते हैं। भाव भी संत की कृपा से प्रगट होता है। सत के आश्रय के साथ-साथ संत आश्रय और हो जाये तो कल्याण होते देर ना लगेगी। 

Wednesday, 12 July 2017

जीवन में मिलने वाले सुख-दुख रुपी भोगों को कैसे जीएं..

मार्गदर्शक चिंतन-

भोग बुरे नहीं हैं अपितु उनकी आसक्ति बुरी है। भोगों को इस प्रकार भोगो कि समय आने पर इन्हें छोड़ा भी जा सके। श्री कृष्ण से बड़ा अनासक्त कोई नहीं हुआ। द्वारिका में राजसी सुखों में रहे तो वहीं जरुरत पड़ने पर अर्जुन का रथ भी हाँकने लगे। कभी सुदामा के चरणों में बैठ गए तो कभी विदुर की झोंपड़ी में डेरा डाल दिया।
जब तक द्वारिका की सत्ता पर आसीन रहे पूरी प्रजा को पुत्रवत पाला पर जब स्थिति, कुल और धर्म दोनों में से किसी एक को चुनने की आ गई तो बिना कुलासक्ति के धर्म को चुन लिया। विवाह किये तो इतिहास ही रच ड़ाला और त्यागने का समय आया तो ऐसे त्याग दिया जैसे उनसे कभी कोई सम्बन्ध ही ना रहा हो।
यह अनासक्ति ही भगवान् श्री कृष्ण की प्रसन्नता का कारण बनी। इस दुनिया में जो भी अनासक्त भाव से कर्म में लिप्त रहते हैं उन्हें आनंद प्राप्ति से कोई नहीं रोक सकता।

Tuesday, 11 July 2017

कब सत्य और झूठ बोलना होता है कल्याणकारी..

मार्गदर्शक चिंतन-

सत्य हर बार शुभ और मंगलकारी नहीं होता है और झूठ भी हर बार अशुभ और अमंगलकारी नहीं होता है। भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन में यह सीख सबको दी कि झूठ और सत्य का निर्धारण कभी भी इस बात से नहीं होता कि आपने क्या कहा ? अपितु इस बात से होता है कि आपने क्यों कहा महाभारत में युधिष्ठिर को समझाते हुए भगवान श्री कृष्ण यही कहते हैं कि हे युधिष्ठिर जिस सत्य को बोलने और जिस सत्य पर चलकर अधर्म को, अनीति को और अमंगल को प्रश्रय (प्रोत्साहन) मिलता हो, वह सत्य भी किसी काम का नहीं।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, सर्वं भूत हितं प्रोक्तं , इति सत्यम "सभी प्राणियों का जिसमे हित हो, ऐसा वचन बोलना ही सत्य है। जिससे लोक कल्याण हो वही सत्कर्म है।

Monday, 10 July 2017

समाज के प्रति कर्तव्य का निर्वहन करें..

मार्गदर्शक चिंतन-

यह महत्वपूर्ण नहीं कि आपकी नजरों में समाज की छवि क्या है अपितु यह जरूर महत्वपूर्ण है कि समाज की नजरों में आपकी छवि क्या है ? जहाँ एक सज्जन व्यक्ति समाज के लिए ईश्वर का वरदान स्वरुप है, वही एक दुर्जन व्यक्ति किसी अभिशाप से कम नहीं।
आचार्य चाणक्य बिना किसी संकोच के स्पष्ट कह रहे हैं कि साँप एक दुष्ट और क्रूर प्रकृति वाला जीव है मगर साँप से भी खतरनाक एक बुरे स्वभाव वाला मनुष्य यानि दुर्जन है। क्योंकि सर्प तो संयोगवश अवसर आ जाने पर काटता (डंसता) है मगर दुर्जन व्यक्ति तो पग- पग पर कारण- अकारण डंसता ही रहता है।
कड़वे शब्द ही दुर्जन का जहर है और यह जहर जिसके मुँह में घुलने लगता है वह मनुष्य अपना और अपने संसर्ग में आने वालों का जीवन नरक तुल्य बना देता है। अत: मीठा बोलने का प्रयास करो, कड़वा वोलने से रिश्तों में कटुता आ जाती है। रोग सिर्फ मीठा खाने से होता है, मीठा बोलने से नहीं।