Friday, 31 March 2017

जानिए भगवान के चरणों में कौन-कौन से चिन्ह हैं..

भगवान के चरण-चिह्नों का परिचय
पद्मपुराण के अनुसार–भगवान के चरणों में कमल, वज्र, अंकुश, चक्र, गदा, यव तथा ध्वजा आदि के चिह्न अंकित हैं। भगवान अपने दाहिने पैर के अँगूठे की जड़ में भक्तों को संसार-बंधन से मुक्त करने के लिए चक्र का चिह्न धारण करते हैं। मध्यमा अँगुली के मध्यभाग में भगवान श्रीकृष्ण ने अत्यन्त सुन्दर कमल का चिह्न धारण कर रखा है; उसका उद्देश्य है–ध्यान करने वाले भक्तों के चित्तरूपी भ्रमर को लुभाना। कमल के नीचे वे ध्वज का चिह्न धारण करते हैं, जो मानो समस्त अनर्थों को परास्त करके फहराने वाली ध्वजा है। कनिष्ठिका अँगुली की जड़ में वज्र का चिह्न है, जो भक्तों की पापराशि को विदीर्ण करने वाला है। पैरों के पार्श्व-भाग में बीच की ओर अंकुश का चिह्न है, जो भक्तों के चित्तरूपी हाथी का दमन करने वाला है। भगवान श्रीकृष्ण अपने अंगूठे के पर्व में भोग-सम्पत्ति के प्रतीक रूप यव (जौ) का चिह्न धारण करते हैं तथा मूल-भाग में गदा की रेखा है, जो मनुष्यों के पापरूपी पर्वत को चूर्ण कर देने वाली है। इतना ही नहीं वे अजन्मा भगवान सम्पूर्ण विद्याओं को प्रकाशित करने के लिए पद्म आदि चिह्नों को भी धारण करते हैं। दाहिने पैर में जो चिह्न हैं, उन्हीं चिह्नों को प्रभु अपने बाये पैर में भी धारण करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के चरण-कमलों का ध्यान सदैव करते रहना चाहिए।
पुष्टिमार्ग के आराध्य श्रीनाथजी के चरण-कमल
पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक श्रीमद्वल्लभाचार्यजी ने आज्ञा की है कि मन की चंचलता का विनाश भगवद्चरणारविन्दों के सेवन से ही संभव है। जो ठाकुरजी की सेवा प्रेमपूर्वक करते हैं उनके मन की चंचलता मिट जाती है और पापों का क्षय होता है। भगवान के चरण-कमलों के प्रताप से ही उनके सेवकों का मन भटकता नहीं है। ब्रह्मादिदेव जिनके चरणारविंद में सदा प्रणाम करते हैं और चरणरज की कामना करते हैं ऐसे श्रीनाथजी के चरण-कमल भक्तों के मनोरथ पूर्ण करते हैं।

Thursday, 30 March 2017

जानिए जिदंगी कैसे जिएं..

मार्गदर्शक चिंतन-

ये दुनियाँ ठीक वैसी है जैसी आप इसे देखना पसन्द करते हैं। यहाँ पर किसी को गुलाबों में काँटे नजर आते हैं तो किसी को काँटों में गुलाब। किसी को दो रातों के बीच एक दिन नजर आता है तो किसी को दो सुनहरे दिनों के बीच एक काली रात। किसी को भगवान में पत्थर नजर आता है और किसी को पत्थर में भगवान।
किसी को साधु में भिखारी नजर आता है और किसी को भिखारी में भी भी साधु। किसी को मित्र में भी शत्रु नजर आता है और किसी को शत्रु में भी मित्र। किसी को अपने भी पराये नजर आते हैं तो किसी को पराये भी अपने।
किसी को कमल में कीचड़ नजर आता है तो किसी को कीचड़ में कमल। अगर आप चाहते हैं कि हर वस्तु आपके पसन्द की हो तो इसके लिए आपको अपनी दृष्टि बदलनी पड़ेगी क्योंकि प्रकृति के दृश्यों को चाहकर भी नहीं बदला जा सकता। आप बस नजर मात्र बदलिए नजारे खुद-बखुद बदल जाएँगे।
जिन्दगी कैसी- जैसी देखो वैसी

Wednesday, 29 March 2017

जानिेए भाग्य और कर्म में क्या संबंध है..

मार्गदर्शक चिंतन-

आज का आदमी मेहनत में कम और मुकद्दर में ज्यादा विश्वास रखता है। आज का आदमी सफल तो होना चाहता है मगर उसके लिए कुछ खोना नहीं चाहता है। वह भूल रहा है कि सफलताएँ किस्मत से नहीं मेहनत से मिला करती हैं। 
किसी की शानदार कोठी देखकर कई लोग कह उठते हैं कि काश अपनी किस्मत भी ऐसी होती लेकिन वे लोग तब यह भूल जाते हैं कि ये शानदार कोठी, शानदार गाड़ी उसे किस्मत ने ही नहीं दी अपितु इसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत रही है। मुकद्दर के भरोसे रहने वालों को सिर्फ उतना मिलता है जितना मेहनत करने वाले छोड़ दिया करते हैं।
किस्मत का भी अपना महत्व है। मेहनत करने के बाद किस्मत पर आश रखी जा सकती है मगर खाली किस्मत के भरोसे सफलता प्राप्त करने से बढ़कर कोई दूसरी नासमझी नहीं हो सकती है।
दो अक्षर का होता है "लक", ढाई अक्षर का होता है "भाग्य", तीन अक्षर का होता है "नसीव" लेकिन चार अक्षर के शब्द मेंहनत के चरणों में ये सब पड़े रहते हैं।

Tuesday, 28 March 2017

कैसे भूलें बुरी घटनाओं को..

मार्गदर्शक चिंतन-

अगर आप अच्छी याददाश्त के धनी हैं तो यह अच्छी बात है मगर कभी-कभी आपकी यही अच्छी याददाश्त आपके लिए गलत साबित हो जाती है। दुनियाँ में हर बार वही नहीं घटता जिसे याद रखा जा सके यहाँ कई बार वो भी घट जाता है जिसे भुलाना अनिवार्य हो जाता है।
इस दुनियाँ में ऐसे भी लोग हैं जो मात्र यह याद कर-करके दुखी होने में लगे है कि पाँच साल पहले मेरा इतना-इतना नुकसान हो गया था, मेरा अपमान हो गया था अथवा मेरे साथ गलत व्यवहार किया गया था।
इन पाँच-पाँच साल पुरानी घटनाओं को स्मरण कर रोने वालों को देखकर लगता है, काश अगर इनकी स्मरण शक्ति इतनी तेज न होती तो ये बेचारे फिर व्यर्थ में भूतकाल (बीते समय) का रोना न रोकर वर्तमान की खुशियों का आनन्द ले रहे होते।
उस व्यर्थ को भुलाने का प्रयास करो जो आपको इस जीवन के आनन्द से वंचित करता है। गीताजी कहती हैं भूतकाल में जो चला गया और भविष्य में जो मिलने वाला है उसके बारे में सोचकर वह आनन्द का अवसर न गंवाओ जो आपको वर्तमान में मिल रहा है।

Monday, 27 March 2017

जानिए जीवन को जीने के दो रास्ते...

मार्गदर्शक चिंतन-

मनुष्य जीवन जीने के दो रास्ते हैं चिन्ता और चिन्तन। यहाँ पर कुछ लोग चिन्ता में जीते हैं और कुछ चिन्तन में। चिन्ता में हजारों लोग जीते हैं और चिन्तन में दो-चार लोग ही जी पाते हैं। चिन्ता स्वयं में एक मुसीबत है और चिन्तन उसका समाधान। आसान से भी आसान कार्य को चिन्ता मुश्किल बना देती है और मुश्किल से मुश्किल कार्य को चिन्तन बड़ा आसान बना देता है।
जीवन में हमें इसलिए पराजय नहीं मिलती कि कार्य बहुत बड़ा था अपितु हम इसलिए परास्त हो जाते हैं कि हमारे प्रयास बहुत छोटे थे। हमारी सोच जितनी छोटी होगी हमारी चिन्ता उतनी ही बड़ी और हमारी सोच जितनी बड़ी होगी, हमारे कार्य करने का स्तर भी उतना ही श्रेष्ठ होगा।
किसी भी समस्या के आ जाने पर उसके समाधान के लिए विवेकपूर्ण निर्णय ही चिन्तन है। चिन्तनशील व्यक्ति के लिए कोई न कोई मार्ग अवश्य मिल भी जाता है। उसके पास विवेक है और वह समस्या के आगे से हटता नहीं अपितु डटता है। समस्या का डटकर मुकाबला करना आधी सफलता प्राप्त कर लेना है।

Sunday, 26 March 2017

जन्म से नहीं कर्म से महान बनिए..

मार्गदर्शक चिंतन-

मनुष्य जन्म से नहीं अपितु कर्म से महान बनता है और मनुष्य चित्र से नहीं, चरित्र से सुन्दर बनता है। अच्छे परिवार में जन्म लेना मात्र एक संयोग है और अच्छे कार्यों द्वारा जीवन को उत्कृष्ट बनाना एक उपलब्धि। इसलिए इस बात पर ज्यादा विचार मत करना कि मेरा परिवार कैसा है ? लेकिन यह जरूर विचारणीय है कि मेरा व्यवहार कैसा हैआपके जीवन जीने का ढंग ही पैमाना (मापक) है आपकी महानता का। आपके जीने के ढंग से ही निर्धारण होगा कि आपने कितना सुन्दर जीवन जिया। मनुष्य की वास्तविक सुन्दरता उसका सुन्दर तन नहीं अपितु सुन्दर मन है। गुण न हो तो रूप व्यर्थ है क्योंकि जीवन रूपवान होकर नहीं, गुणवान होकर जिया जाता है।
समाज अच्छे (चित्र) रूप वालों को नहीं अपितु अच्छे चरित्र वालों को पूज्यनीय मानता है। अत: कुल और रूप कितना भी सुन्दर क्यों न हो मगर सदगुणों के अभाव में दोनों का कोई महत्व नहीं।

Saturday, 25 March 2017

खुद के जीवन की किताब पढ़ने की कोशिश करें..

मार्गदर्शक चिंतन-

दुनियाँ भर के साहित्य को पढ़ने और अनेक उपाधियों को अर्जित करने के बावजूद भी यदि आप अपने जीवन की, अपनी स्वयं की किताब पढ़ने से वंचित रह गए। तो समझ लेना आपका सारा ज्ञान, सारी विद्याएं महाभारत के उस पात्र (कर्ण) के समान हैं जो आवश्यकता पड़ने पर अपने द्वारा अर्जित ज्ञान को ही भूल गया था।
जीवन की सबसे सुन्दर और सबसे उपयोगी शिक्षा अगर कोई है तो वो है स्वयं का अध्ययन। आज का आदमी स्वाध्याय करना तो जनता है मगर स्वयं का अध्याय पढ़ना नहीं जानता। इससे वह प्रगति के बहुत पास पहुँच कर भी अपने से बहुत दूर चला गया है।
सुबह जागो तो बिचार करो कि कल मैंने ऐसा कौन सा पाप किया जो रात भर नींद नहीं आई। रात को सोते वक्त बिचार करो कि आज कौन सा पुन्य बना जिसके कारण मै शांति अनुभव कर रहा हूँ। बिचार करो मेरे कारण किसी की आँखों में आँसू तो नहीं आये। मेरे कारण कितने लोगों के चेहरे पर हँसी आई। अतः जीवन ही वो सच्ची किताब है जिसे पढ़कर आप आनन्द, शांति, और सफलता प्राप्त कर सकोगे।

Thursday, 23 March 2017

कैसे करें मान-अपमान पर विचार..मान-अपमान पर सोचने वाले होते हैं बेचारे..

मार्गदर्शक चिंतन-

मान-अपमान जीवन की कसौटी है, परीक्षा है। आज हमारी आन्तरिक स्थिति बड़ी नाजुक हो गई है। किसी कार्यक्रम में चले जाने पर आज हम अपने आप नहीं बैठ सकते। हमें दो आदमी चाहियें जो हाथ जोड़कर और हाथ पकड़कर हमें बिठा दें। अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर हम तनाव (टैंशन) में आ जाते हैं और कई दिन तक ये तनाव बना रहता है कि किसी ने हमें बैठने तक को नहीं कहा।
क्या है अपमान ? किसी व्यक्ति की वह व्यक्तिगत कल्पना जिसमें वह दूसरों से वेवजह सम्मान की चाह रखता है और उस चाह का पूरा ना होना ही अपमान कहलाता है। अपेक्षा की उपेक्षा का ही तो नाम अपमान है। हमें दूसरों से कम अपनी सोच से ज्यादा अपमानित होना पड़ता है।
किसी ने नमस्कार ना कर हमारा अपमान कर दिया, यह सिर्फ हमारी सोच है। उसने तुम्हारा अपमान नहीं किया, उस बात को बार-बार सोचकर तुम खुद अपना अपमान करते हो। 
जो लोग मान और सम्मान पर ज्यादा विचार करते हैं वही तो बेचारे कहलाते हैं। अतः अपनी सोच का स्तर ऊपर उठाकर मान-अपमान से मुक्त होकर प्रसन्नता के साथ जिन्दगी जीओ।

Wednesday, 22 March 2017

जानिए भगवान श्राीराधाकृ्ष्ण जी के विवाह स्थल की महिमा..

जानें, कहां हुआ था 

भगवान श्रीराधाकृष्ण का

 विवाह


अक्सर लोगों के मन में यह प्रश्न बना रहता है कि भगवान कृष्ण का श्रीराधा जी के साथ विवाह हुआ था कि नहीं। प्रमाण के आधार पर गर्ग सहिंता, गीत गोविंद और ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड के 13 वें अध्याय में इन दोनों के विवाह का वर्णन मिलता है।
भगवान श्रीराधाकृष्ण का विवाह ब्रज में ही संपन्न हुआ था। श्रीराधा-कृष्ण के विवाह सम्बन्ध का साक्षी है भांडीरवन। भाण्डीर वन में भाण्डीरवट के नीचे ही श्रीकृष्ण और श्रीराधाजी का विवाह संस्कार पूर्ण हुआ था। मथुरा की मांट तहसील के छाहेरी गांव से भांडीरवन का रास्ता गया है। इस वन में स्वयं ब्रह्मा जी ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ श्रीराधाकृण का विवाह संस्कार पूर्ण कराया था। भांडीरवन में वन बिहारी जी के दर्शन मिलते हैं।.
श्रीमदभागवत महापुराण सहित अनेक ग्रंथों में भगवान कृष्ण की अष्टायाम लीला के माध्यम से 8 विवाह का वर्णन मिलता है। यानि भगवान कृष्ण की 8 पटरानी थी। साथ ही वर्णन मिलता है कि उनकी 16 हजार 108 रानियां थीं। शास्त्रों में भगवान कृष्ण की आल्हादिनी शक्ति के रुप में श्रीराधा जी को बताया गया है। यानि भगवान श्रीराधाकृष्ण दो देह एक प्राण थे। शास्त्र तो यहां तक कहते हैं कि भगवान कृष्ण का श्रीराधा जी के बिना और श्रीराधाजी का भगवान कृष्ण के बिना ध्यान करना भी महापाप है।
भगवान श्रीकृष्ण के नाम के आगे जो श्री शब्द लगा है। वही राधा जी का स्वरुप है। यानि जब आप श्रीकृष्ण बोलते हैं तब राधाकृष्ण दोनों का ही भजन होता है। दोनों का ही ध्यान करना चाहिए। भगवान कृष्ण स्वयं अपने श्रीमुख से श्रीराधाजी की महिमा का गुणगान करते हैं।
राधा राधा नाम को सपनेहूँ जो नर लेय।
ताको मोहन साँवरो रीझि अपनको देय।।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि राधा नाम मुझे सबसे अधिक प्रिय है। राधा शब्द कान में पड़ते ही मेरे हृदय की संपूर्ण कलियां खिल उठती हैं। कोई भी मुझे प्रेम से राधा नाम सुनाकर अपना बना सकता है। श्रीराधा जी सदा-सर्वदा मेरे हृदय में निवास करती हैं। जो लोग श्रीराधाजी के नाम का उच्चारण करते हैं, मैं न सिर्फ उनके सभी मनोरथ पूर्ण कर देता हूं बल्कि वह भक्त मेरा प्रिय हो जाता है।
राधा तुम बड़ भागिनी, कौन तपस्या कीन
तीन लोक तारण तरण सौ तेरे आधीन



कैसे बड़़ा होगा शुभ संकल्प का वृक्ष..

मार्गदर्शक चिंतन-

जितना बड़ा वृक्ष होगा उसके बीज के अंकुरित होने की यात्रा भी उतनी ही लम्बी होगी। ठीक उसी प्रकार जीवन के शुभ संकल्प जितने श्रेष्ठ होंगे उनको साकार रूप लेने में उतना ही समय लगेगा। 
शुभ संकल्प रुपी बीज ऐसे ही फलित नहीं हो जायेंगे, परिश्रम रुपी जल से नित इन्हें सिंचित करना पड़ेगा। संकल्प रुपी खाद डालनी पड़ेंगी, कुसंग रुपी कीड़ा से बचाना होगा और झंझावत रुपी घोर निराशा से भी बचाना होगा।
उसके बाद आपके सामने बीज नहीं अपितु एक विशाल वृक्ष होगा जिसकी शीतल छाया तले अनेकों लोग विश्राम व मधुर फलों से तृप्ति पा रहे होंगे। और आपको मिल रहा होगा एक परम धन्यता का अनुभव और जीवन की सार्थकता का आनन्द।

Tuesday, 21 March 2017

परिश्रम से मिलता है श्रेष्ठ फल...

मार्गदर्शक चिंतन-

प्रकृति अपने नियम से कभी नहीं चूकती। अगर पौधे को आप पानी देते हैं तो वह स्वत: हरा भरा रहेगा और यदि आपने उसकी उपेक्षा शुरू की तो उसे मुरझाने में भी वक्त नहीं लगने वाला है। जिन लोगों ने इस दुनियाँ को स्वर्ग कहा उनके लिए यही प्रकृति उनके अच्छे कार्यों से स्वर्ग वन गई और जिन लोगों ने गलत काम किये उनके लिए यही प्रकृति, यही दुनियाँ नरक बन गई।
यहाँ खुशबू उनके लिए स्वत:मिल जाती है जो लोग फूलों की खेती किया करते हैं और यहाँ मीठे फल उन्हें स्वत: मिल जाते हैं जो लोग पेड़ लगाने भर का परिश्रम कर पाते हैं।
अत: यहाँ चाहने मात्र से कुछ नहीं प्राप्त होता जो भी और जितना भी आपको प्राप्त होता है वह निश्चित ही आपके परिश्रम का और आपके सदकार्यों का पुरुस्कार होता है।

Monday, 20 March 2017

जानिए जिंदगी में किन दो चीजों से दूर रहना चाहिए..

मार्गदर्शक चिंतन-

जिन्दगी में जितना हो सके दो चीजों से हमेशा दूरी बना के रखना। पहला दिखना और दूसरा दुखाना। दिखना यानि दिखावा, जो कुछ आप हैं नहीं दूसरों के सामने वो बनना, अथवा वो क्षणिक व्यवहार जो आप द्वारा एक व्यक्ति को प्रभावित करने के लिए उसके साथ किया जाता है।
दुखाना यानि अपने दुर्व्यवहार से दूसरे आदमी को हतोत्साहित करना, अपमान करना, किसी की उपेक्षा करना। वाणी का वाण बन जाना ही दुखाना है।
इबादत घर छोड़कर ही नहीं होती, घर जोड़कर भी हो जाती है। इबादत भेष बदलने से ही नहीं होती, भाषा बदलने से भी हो जाती है। और बहुत बड़ा भंडारा लगाकर ही नहीं होती, किसी भूखें को एक रोटी खिलाकर भी हो जाती है।

Sunday, 19 March 2017

स्वयं से लड़ना सीखें..फिर देखें क्या हासिल होगा..

मार्गदर्शक चिंतन-

हारना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई अपनों से हो और जीतना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई अपने से हो। अपनों से जीत जाना एक सजा है और अपने को जीत जाना एक मजा। आपकी वो जीत किसी काम की नहीं जो अपनों को हराने के बाद प्राप्त हुई है और आपकी वो हार भी जीत है जो अपनों के लिए स्वीकार करली जाती है।
इस दुनिया में अगर लड़ने लायक कोई है तो वो आप स्वयं हो। जो व्यक्ति स्वयं से लड़ना सीख जाता है, निश्चित ही वह अन्य लड़ाईयों से, व्यर्थ के झंझटों से और दुनिया की तकलीफों से बच निकलता है।
अपनी उस विचारधारा से लड़ो जो अपनों से मेल नहीं खाती, अपने उस अहंकार से लड़ो जो अपनों के सामने झुकने नहीं देता और अपनी उन कमजोरियों से लड़ो जो तुम्हें अपनों के सामने कमजोर बना रही हैं।

Saturday, 18 March 2017

जानिए "कल " पर काम टालने से क्या फल मिलता है..

मार्गदर्शक चिंतन-

किसी भी कार्य को समय पर न कर उसे " कल " पर छोड़ देना यह आज के आदमी का स्वभाव बन गया है। शायद इसीलिए इस युग का नाम " कल युग " यानि कलियुग रखा गया है। कलयुग यानि वो युग जिसमें प्रत्येक आदमी अपने काम को कल पर टाल दे। कलयुग यानि वो युग जिसमें आदमी अपने वर्तमान को बेचकर, वर्तमान का दुरूपयोग कर भविष्य में सुख से जीने की कल्पना करता है। 
कार्य कोई भी क्यों ना हो, चाहे वो व्यवसाय का हो, आत्मसुधार का हो, पुण्यार्जन करने का हो चाहे अन्य सामजिक कार्य हो, आज मेरे पास समय नहीं है, मै कल इस काम को जरूर करूँगा। यह बार-बार उच्चारण करना अब हमारी आदत बन गई है। 
अगर आप भी अपने कार्यों को " कल " के भरोसे छोड़ देने के आदी हैं तो फिर समझ लेना आप जीवन में बहुत कुछ खोने जा रहे हो। सत्कर्मों, शुभकर्मों और अपने कार्यों को आज और अभी से अपने जीवन में स्थान दें। आप " कल-युग " में रहें कोई बात नहीं मगर " कल-युग " आप में ना रहे।

Thursday, 16 March 2017

दूसरों की गलती निकालने से पहले अपना मूल्यांकन करें..

मार्गदर्शक चिंतन-

किसी के कार्यों का मूल्यांकन करना बड़ा ही आसान है मगर उन कार्यों का स्वयं करना बड़ा ही कठिन है। हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि दूसरों के द्वारा किये गए कार्यों से हमें संतुष्टि नहीं होती और स्वयं हम कार्य करना नहीं चाहते। किसी के भी कार्य को हम बड़ी आसानी से नकार देते हैं कि यह कार्य ऐसे नहीं होना चाहिए था। इसे ऐसे ढंग से करते तो और अच्छा होता।
अक्सर हम जिन्दगी में इसलिए पिछड़ जाते हैं क्योंकि दूसरों की जिन्दगी में दखल देने में इतने व्यस्त रहते हैं कि अपनी जिन्दगी को आगे ले जाने का और उसके बारे में सोचने का वक्त ही नहीं बचता।
कमीं निकालना बड़ी बात नहीं अपितु उस कार्य को स्वयं करके दिखाना या उसमे सहयोग करना ये बड़ी बात है। कभी भी किसी व्यक्ति का आकलन करने से पूर्व और आलोचना करने से पूर्व यह जरूर सोच लेना क्या आप स्वय में परिपूर्ण हैं ?
अपने ऐब देखता नहीं कोई ।
हर शख्स कह रहा है कि जमाना ख़राब है॥

Wednesday, 15 March 2017

कैसे दूर होगा भविष्य का भय..

मार्गदर्शक चिंतन-

भविष्य का भय सदैव केवल उनके लिए सताता है जो वर्तमान में भी संतुष्ट नहीं। जिस व्यक्ति को वर्तमान में संतुष्ट रहना आ गया फिर ऐसा कोई दूसरा कारण ही नहीं कि उसे भविष्य की चिंता करनी पड़े।
हमारे जीवन की सारी प्रतिस्पर्धाएँ कवेल वर्तमान जीवन के प्रति हमारी असंतुष्टि को ही दर्शाती हैं। व्यक्ति जितना संतोषी होगा उसकी प्रतिस्पर्धाएँ भी उतनी ही कम होंगी। अक्सर लोग़ भविष्य को सुखमय बनाने के पीछे वर्तमान को दुखमय बना देते हैं।
लेकिन तब वो जीवन के इस साश्वत नियम को भी भूल जाते हैं कि भविष्य कभी नहीं आता, वह जब भी आयेगा वर्तमान बनकर ही आयेगा। याद रखना जिया सदैव वर्तमान में ही जाता है। अत: वर्तमान के भाव मे जियो ताकि भविष्य का भय मिट सके।

Friday, 10 March 2017

जीवन में परिवेश ( आस-पास का माहौल ) का क्या होता है असर..

मार्गदर्शक चिंतन-

परिवेश का हमारे जीवन में जाने- अनजाने में बहुत फर्क पड़ता है। अच्छे माहौल में रहने पर ना चाहते हुए भी उसके शुभ चिन्ह हमारे मन- मस्तिष्क पर पड़ने लगते हैं और वह धीरे-धीरे हमारे आचरण में भी झलकने लगता है।
ठीक इसी प्रकार बुरे माहौल का भी हमारे चित्त पर असर पड़ता है। हम चाहे कितना भी तटस्थ रहने का प्रयास करें मगर एक ना एक दिन हमारा स्वभाव, हमारा आचरण बिगड़ता ही है।
अपना वेश ही नहीं परिवेश भी अच्छा रहे। परवेश यानि माहौल पर ही व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्भर करता है। हमारा व्यक्तित्व ही यह झलकाता है कि हम कौन से माहौल में रहते होंगे ? एक सुखमय जीवन के लिए केवल महल (घर) ही नहीं अच्छे माहौल का भी होना आवश्यक है।